सावरकर 60 रुपए के पेंशन से संतुष्ट थे

दैनिक समाचार


सावरकर अंग्रेजों से 60 रुपए पेंशन लेते थे। यह तब की बात है जब सोना 18 रुपए तोला था अब 39535 रुपए है। तो पेंशन हुई 1,30,465 रुपये।”

सावरकर ६० रुपये की पेंशन से असंतुष्ट थे

“सावरकर अंग्रेजों से 60 रुपए पेंशन लेते थे। यह तब की बात है जब सोना 18 रुपए तोला था अब 39535 रुपए है। तो पेंशन हुई 1,30,465 रुपये।”
जसविंदर सिंह जी  ने यह गणना करके अमित शाह के इन “वीर” की अंग्रेज चाकरी और मुखबिरी की महंगी दर का खुलासा किया है ।

● मगर मजेदार बात यह है कि “वीर” भाई इतने पर भी संतुष्ट नहीं थे । इसलिये उन्होंने (सावरकर ने) रत्नागिरी के कलेक्टर को ‘इसमे मेरा गुजारा नही चलता’ का याचनापत्र देकर इसे बढ़ाने की अनुशंसा सरकार से करने की गुहार लगाई थी ।
● कलेक्टर ने उसके जवाब में लिखा था कि “मैं यह अनुशंसा नही कर सकता क्योंकि खुद मेरी मासिक तनखा भी 60 रुपये से काफी कम है ।”
● ऐसी अनेक “वीरताएँ” इनके खाते में जमा हैं । ये वे ही हैं जिन्होंने “हिंदुत्व” शब्द का ईजाद किया था और स्वयं कहा था कि इस हिंदुत्व का हिन्दू धर्म या परंपरा से कोई संबंध नही है । यह मण्डली जितना सावरकर – सावरकर चिल्लाएगी, उतनी ही उनकी बची खुची भद्रा भी उतरवाएगी ।
● इनकी असल समस्या क्या है ? इनकी असल समस्या है नायकों, मनुष्यता के हित वाले विचारों, गर्व करने लायक इतिहास और देश के हित में किये गए योगदानों के मामले में इनकी अति-दरिद्रता और कंगाली ।

● संघ और भाजपा, इस देश की इकलौती – एकमात्र – राजनीतिक धारा है, जिनके पास अपने पूरे कुल कुटुंब में एक भी – जी , एक भी –  बन्दा ऐसा नही है जिसे वे बता सकें कि वे हमारे पुरखे थे और इन्होंने यह महान काम किया था । इनका अपना एक भी नाम ऐसा नही जिन पर गर्व किया जा सके ।
● ताजे इतिहास की तो छोड़िए पूरे 5 हजार साल की सभ्यता में भी एक भी ऐसा नही है ; न बुद्द न महावीर, न कपिल न कणाद, न पाणिनि न कालिदास, न कबीर न तुलसीदास, न परमहंस न विवेकानंद,  न गांधी, न भगत सिंह : न जोतिबा न अम्बेडकर, न बिरसा मुण्डा न वीरनारायण सिंह, न लेखक न उपन्यासकार, न कवि न कहानीकार, न लेखक न पत्रकार ।
● और तो और ढंग का साधु संत भी नही है ; आसारामो, गुरमीत राम रहीमो, रामदेवो , सिरी सिरियों और चिन्मयानंदो से काम चलाना पड़ता है ।
● बॉलीवुड की इत्ती भारी भीड़ में भी इनके हिस्से अनुपम खेर जैसे कनखजूरे और उठाईगीरे आते हैं । खेरों और उठाईगीरों से, ठलुओं से काम चलाना पड़ता है । सो पुअर – सो पिटी ।
● गांधी और पटेल और शास्त्री को हड़पने के लिए लपकते हैं पूरे प्रणब मुखर्जी भी हत्थे नही लग पाते । अब इतिहास की अमावस से झाड़ पोंछकर लाये भी तो माफीखोर सो भी उनके खुद के नही, हिन्दू सभा से उधार लेने पड़े ।
● इस विपन्न विरासत की वजह क्या है ? इसकी वजह यह है कि कुंठित मनुष्य, हिंसक विचार, कुत्सित व्यवहार कभी अनुकरणीय व्यक्तित्व नही गढ़ सकते । कभी अंग्रेजो, कभी ट्रम्प और हमेशा अडानी और अम्बानी की कुल्हाड़ियों पर लगे बेंट कोई उदाहरण नही रच सकते ।

??
रामसागर पटेल अध्यक्ष विधान सभा करछना अपना दल कमेरावादी ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *