सोशल मीडिया का बहुमत चू…यो से भरा पड़ा है, इसलिए उनकी सोशल मीडिया में हुकूमत है चूंकि वो बहुतायत है..बहुमत में है..इसलिए वो अपने को इकलौता सच मान बैठते है..

दैनिक समाचार

हर राज्य चाहे पंजाब हो, गुजरात हो या महाराष्ट्र जैसा अमीर राज्य..
यहां तक कि केंद्र भी,
जितना कमाते है
उससे ज्यादा वो खर्च करते है.
यानी आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपिया..!!

इसे अर्थशास्त्र के पुराण में फिसिकल डेफिसिट कहते है..

पर चू…ओ को तो एक ही काम करना आता है. अपनी समझदारी जो कि उनके पास ना के बराबर है और इधर फेसबुक ने भी उन्हें एक हंसने का (?) इमोजी दे दिया है, अपनी मूर्खता, अपनी झेंप मिटाने के लिए….सो वो इसी तरह अपनी अज्ञानता को भूलने के लिए दिल बहलाते है..

फिर वो ये नहीं खंगालते कि उत्तर प्रदेश के हर नागरिक पर 22,442 रुपए का कर्ज है. और ये पिछले एक साल में यह प्रति व्यक्ति 1340 रुपए बढ़ा है.

राज्य सरकार पर कर्ज का बोझ 516 लाख करोड़ रुपए से अधिक होने का अनुमान है, जो राज्य के कुल बजट 512 लाख करोड़ रुपए से अधिक है!

यानी कर्ज का बोझ, बजट से भी ज्यादा..ठीक..?

अब आ जाए बिहार में –
बिहार पर कर्ज का बोझ साल 2019-2020 में यह करीब 13 फीसदी बढ़कर एक लाख नब्बे हजार करोड़ हो गया है. हालांकि केन्द्र सरकार से राज्य को मिले कर्ज में कमी आई है और 2534 करोड़ से घटकर 1279 करोड़ हो गया है. वहीं आंतरिक ऋण 16,134 करोड़ से 27,866 करोड़ हो गया.

मध्यप्रदेश में आ जाए…
कर्ज का बोझ 2 लाख 8 हजार करोड़ रुपए,
शिवराज सरकार 10 माह के कार्यकाल में 17,500 करोड़ रुपए कर्ज ले चुकी है. इस तरह म.प्र. सरकार पर कुल कर्ज का बोझ 2 लाख 8 हजार करोड़ रुपए हो चुका है. बावजूद सरकार मार्च 2021 तक 1373 करोड़ रुपए का कर्ज और ले सकती है.

और अब आ जाए गुजरात में…
यहां गुजरात मॉडल की बड़ी चर्चा की जाती है..

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को लगता था कि वह गुजरात की बहुत सेवा कर चुके हैं और अब ‘भारत माता’ का कर्ज उतारने की बारी है. इसके लिए वह जल्द से जल्द दिल्ली की फ्लाइट पकड़ना चाहते थे…और उन्होंने देश सेवा में कोई कोताही नहीं की.
फौरन दिल्ली आ गए..

लेकिन गुजरात मॉडल की हकीकत क्या है..?

मोदी ने पिछले 11 सालों के मुख्यमत्रित्व काल गुजरात को भारी कर्ज में डुबो दिया है. मोदी ने 2001 में जब पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली, तब से अब तक, गुजरात पर कर्ज का बोझ कई गुना बढ़ चुका है. गुजरात पर चढ़ा कर्ज 2001-02 में 45,301 करोड़ से कई गुना बढ़कर 2013-14 में 1.76 लाख करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है.
31 मार्च 2012 तक गुजरात पर कुल कर्ज 1,38,978 करोड़ था.

हालांकि गुजरात के मुकाबले पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश, कर्ज के बोझ तले ज्यादा दबे हुए हैं. पश्चिम बंगाल पर 1,92,100 करोड़, तो यूपी पर 1,58,400 करोड़ का है…लेकिन यहां खास बात यह है कि ये दोनों राज्य खुद को ‘आदर्श राज्य’ की तरह प्रचारित नहीं करते हैं…जैसा गुजरात में मोदी करते थे..!!

गुजरात सरकार कर्ज पर 34.50 करोड़ प्रतिदिन के हिसाब से भारी-भरकम ब्याज चुका रही है. गुजरात सरकार के बजट अनुमानों के मुताबिक इस हिसाब से 2015-16 तक राज्य पर कर्ज बढ़कर 2,07,695 करोड़ हो जाएगा.

खास बात यह है कि यह तब है, जब गुजरात में पेट्रोल पर अधितम वैट है और गुजरात उन कुछ गिने-चुने राज्यों में से है जो उर्वरकों पर भी वैट वसूलता है.

गुजरात की पूरी आबादी अगर 6 करोड़ मान ली जाए, तो हर शख्स के सिर पर करीब 23,163 हजार का कर्ज होगा.

ऐसे ही और भी बहुत सारे राज्य है..

मैने उन राज्यो का बतलाया, जहां मुफ्तखोरी को पाप समझते है भाजपाई..और इन्ही की चार चार पांच पांच बार सरकारे बन चुकी है..! वहां इनका ये हाल है.!!

अब होता ये है कि जब भी कोई राज्य का कोई दल का नेता चुनाव जीत कर औपचारिक भेंट करने केंद्र के मुखिया से मिलने आता है तो बधाई संदेश लेने देने के बाद, अपने कर्ज की लिस्ट का पिटारा खोल देता है, हर राज्य का मुख्यमंत्री..!!

अभी पंजाब के मुख्यमंत्री मदद मांगने गए..योगी ने कल शपथ ली है, वो भी ऐसा ही करेंगे. नीतीश पहले कर ही चुके है..

सवाल ये है कि इन राज्यो पर इतना कर्जा आखिर चढ़ कैसे जाता है..?

इसकी कहानी अगले पार्ट में बतलाई जायेगी.!!
पढ़ते रहिए मेरी सीरिज..!!

RajDhall

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