ज्ञानवापी और शिवलिंग:-

दैनिक समाचार
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ज्ञानवापी मस्जिद से आए इस फोटो और वीडियो को शिवलिंग बता कर मीडिया और सोशल मीडिया पर हंगामा काटा जा रहा है.

दरअसल जब कभी 200-500 साल बाद आज का इतिहास लिखा जाएगा तो कोई ईमानदार इतिहासकार लिखेगा कि कैसे मीडिया, सरकार, व्यवस्था,आंख पर पट्टी बांधे एक देवी और आईटी सेल ने मिलकर एक धर्म विशेष पर अत्याचार करने का ताना-बाना बुना था!

मौजूदा दौर में मुसलमानो के साथ‌ वही सब हो रहा है जो पुष्यमित्र शुंग के दौर में बौद्धों के साथ हुआ था, बस तौर तरीका बदल‌ गया है.

जो काम पुष्यमित्र शुंग ने खुलेआम स्वर्ण मुद्राओं को इनाम स्वरुप देने की घोषणा करके किया था‌, ठीक वही काम अब के‌ शासक मौजूदा‌ लोकतांत्रिक तंत्र का इस्तेमाल करके कर‌ रहे हैं‌ और इनाम में स्वर्ण मुद्राओं की जगह पद दे रहे हैं.

उद्देश्य समान है और यही इनका चरित्र है.

हैरानी की बात तो यह है कि प्रतिदिन शिवलिंग पर दूध चढ़ाता देश का बहुसंख्यक समाज, उस शिवलिंग को ही नहीं पहचानता!

वह ठीक उसी तरह प्रोपगंडे का शिकार है, जैसे 10 जगहों पर हज़ारों साल से पूजे जाने‌वाले रामजन्म स्थान को नकार कर, वह एक राजनैतिक दल द्वारा बताए स्थान को ही राम जन्म स्थान मानने लगा!

वैसे ही अब यही संघ और उसका राजनैतिक दल‌, हज़ारों साल‌ से पूजे जा रहे शिवलिंग के साथ करने जा रही है और अपने राजनैतिक लाभ के लिए वह शिवलिंग के स्वरूप को बदलकर, ज्ञानवापी में मिले फव्वारे जैसा बना रही है‌ और देश की बहुसंख्यक जनता एक दिन, उसी फव्वारे पर दूध चढ़ाने लगेगी!

फिर देश‌ के हर चौराहे पर मौजूद फव्वारों को यही राजनैतिक दल‌ और संघ शिवलिंग बता कर, इनपर दुग्धाभिषेक कराएगी क्यों कि उसे धर्म और उसकी मान्यताओं से कोई लेना-देना नहीं, उसे तो जड़ बुद्धि हो गये एक समाज को बरगला कर बस वोट लेते रहना है!

दरअसल शिवलिंग की पूरी परिकल्पना को समझने की ज़रूरत है, जिसे सनातन मान्यता में इसलिए पूजा जाता है क्योंकि शिवलिंग को सृष्टि की उत्पत्ति और निर्माण के जनक के प्रतीक के रुप में माना जाता है!

दरअसल शिवलिंग को ध्यान से देखिए, तो उभरे आकार की आकृति के नीचे, चिपटी नालीनुमा भी एक आकृति साथ में होती है, जो दरअसल योनि होती है और इसी के अंदर यह उभरी आकृति होती है. इसी जननांग और गुप्तांग के मिलन की आकृति को सृष्टि के सृजन के रूप में मानकर पूजा जाता है!

इस पूरी परिकल्पना में ऊभरी हुई आकृति सदैव‌ ही चिपटी आकृति से लगभग 10गुना अधिक बाहर निकली हुई होती है.

जबकि ज्ञानवापी मस्जिद के “वजूखाने” के फव्वारे में उभरी हुई आकृति, चिपटी आकृति से बहुत छोटी है बल्कि उसके अंदर ही है!

इस प्रकार की तकनीक फव्वारे में ही प्रयोग की जाती है. बाकी आज के दौर में संघ और भाजपा जो कहे वही सच है वही धर्म है!

यह भी भविष्य का सच है कि आने वाले समय में काशी विश्वनाथ मंदिर के मौजूदा ज्योतिर्लिंग की जगह, इस फव्वारे का धार्मिक महत्व अधिक हो जाएगा!

रामलला की तरह, 1949 के पहले रामलाला का भी कहां वजूद था?

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