भारत सरकार ने सार्वजनिक कंपनी इंडियन ऑयल को डिस्काउंट पर रूसी पेट्रोलियम खरीदने से रोक दिया, पर रिलायंस खरीद रही है.
रिलायंस, अपनी रिफाइनरी में डीजल व जेट ईंधन बना निर्यात करती है. उसे खुले बाजार में कुछ डिस्काउंट पर, पाबंदी लगाने वाले देशों की कंपनियों को बेचने से उसका भी मुनाफा है.
अमरीका यूरोप में रिटेल डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं. 10 अमरीकी राज्यों में 6 डॉलर प्रति गैलन (3.78 लीटर) के पार पहुंच चुके हैं. रिलायंस व ऐसी और कंपनियों से सस्ता डीजल खरीद कर बेचने से, वहां की कंपनियों को भी फायदा है. उनका खुद का उत्पादन तो पहले ही महंगा बिक रहा है.
पाबंदी का क्या हुआ?
पेट्रोलियम व्यापार का बडा हिस्सा मुल्कों की सरहदों के बाहर खुले समुद्रों में होता है. कहां का माल कहां गया, कौन हिसाब रखता है?
पूंजीपतियों को तो मुनाफे के हिसाब किताब से मतलब है. उक्रेनी जनता युद्ध झेले उन्हें क्या, रूसी अमरीकी यूरोपीय एशियाई सभी पेट्रोलियम कंपनियों के मुनाफे रिकॉर्ड तोड रहे हैं.
शेल को एक तिमाही में 9 अरब डॉलर का मुनाफा हुआ तो बीपी को 6 अरब डॉलर का.
युद्ध से सभी पूंजीपति खुश हैं. कम से कम इस बात पर उनके बीच कोई युद्ध नहीं है.
भारतीय विदेश नीति व रिलायंस
उक्रेन युद्ध के संदर्भ में रूस व पश्चिम के बीच पुल बनने के दावे वाली भारतीय विदेश नीति को, रिलायंस इंडस्ट्रीज के कारोबार के साथ जोडकर समझा जा सकता है.
रिलायंस ने मान ही लिया कि वह रूसी पेट्रोलियम व पश्चिमी देशों की डीजल मांग के बीच ‘आरबिट्रेज डील’ का लाभ ले रहा है.
रूस का डिस्काउंट वाला पेट्रोलियम और अमरीका यूरोप में डीजल के आसमान छूते दामों के बीच पुल है जामनगर में रिलायंस की दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी!
और इस पुल के लिए जरूरी है मोदी सरकार की खास विदेश नीति, जो उसने रूस उक्रेन युद्ध में अपनाई है. और इसमें पूंजीपतियों के तीनों समूहों का लाभ है – रूसी, पश्चिमी, भारतीय.
मार्क्स तो बहुत पहले बता गये हैं कि पूंजीवाद में सरकार पूंजीपति वर्ग की प्रबंधन समिति होती है.