एक मज़दूर का पत्र

दैनिक समाचार

मैं लुधियाणा के फ़ोकल प्वाइंट में एक कारख़ाने में काम करता हूँ। हमारे कारख़ाने में आए दिन हादसे होते रहते हैं। काम का बोझ बहुत ज़्यादा है। मज़दूरों को बहुत तेज़ी से काम करना पड़ता है। कारख़ानें में सुरक्षा के इंतज़ाम नहीं हैं। सुरक्षा के कोई भी उपकरण मज़दूरों को मुहैया नहीं कराए जाते। ऐसे में हादसे होते हैं। कभी एक कभी दो अंगुलियाँ कट जाती हैं। पूरा हाथ तक कट जाता है।

अभी हाल की बात है कि एक मज़दूर पावर प्रेस पर काम कर रहा था। अचानक पावर प्रेस की स्प्रिंग टूट गई। इससे उसके बायें हाथ की दो अंगुलियाँ कट गईं। इसके पहले भी दाहिने हाथ की उंगली भी कट गई थी।

अगर मज़दूर पक्के हैं, तो उनका इलाज ई.एस.आई. अस्पताल में हो जाता है। अगर ठेका मज़दूर हैं तो उनको पट्टी कराके छोड़ दिया जाता है। इस कारख़ाने में सीटीयू (पंजाब) की यूनियन है। पहले हमारे कारख़ाने की यूनियन सीआईटीयू से जुड़ी हुई थी। ना पहले ना और ही अब यूनियन के लीडर कभी भी हादसों के बारे में आवाज़ नहीं उठाए। मज़दूरों की आवाज़ दबा दी जाती है। कथनी में तो ये बड़ी यूनियनें ठेका प्रथा का विरोध करती हैं, लेकिन हमारे कारख़ाने में ख़ुद ठेकाकरण का समर्थन कर रही हैं। मज़दूरों को अगर कारख़ाने में ठेका प्रथा ख़त्म करवानी है और हादसों को रोकना है, तो यूनियन के नेताओं की ग़लत नीति के ख़ि‍लाफ़ भी लड़ना होगा।

ई.एस.आई. अस्पताल में भी अच्छा इलाज नहीं होता है। मज़दूर मज़बूरी में प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवाते हैं। इलाज में इतने पैसे ख़र्च हो जाते हैं कि आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब हो जाती है। उनके पास रोटी खाने के पैसे तक नहीं रह जाते। मेडिकल के पैसे के लिए बार-बार चक्कर लगाने के बाद ही पैसा मिल पाता है। इसके बाद 6-6 महीने दौड़ने के बाद ही पेंशन का काम हो पाता है। कारख़ाने में प्राथमिक इलाज का कोई प्रबंध नहीं है। केवल स्टोर में कुछ गोलियाँ होती हैं।

यहाँ हालत यह है कि पीने के लिए शुद्ध पानी तक की समस्या है। कारख़ानें में जो पानी हम पीते हैं, उससे कभी-कभी बदबू आती है। फिर भी हमें वही पानी पीना पड़ता है। यूनियन नेता इसके लिए भी कभी कोई क़दम नहीं उठाते। कभी इसके बारे में कोई बात नहीं करते।

सुविधा तो कोई देनी नहीं है, लेकिन कारख़ाना मैनेजमेंट हमेशा उत्पादन बढ़ाने के लिए कहती रहती है। अगर उत्पादन नहीं बढ़ पाता तो मज़दूर का दो-तीन दिन के लिए गेट बंद कर दिया जाता है।

इन समस्याओं के हल के लिए मज़दूरों को यूनियन नेताओं की ग़लत नीतियों के ख़ि‍लाफ़ बोलना होगा। कारख़ाने की यूनियन को सही राह पर लाना होगा। सीटीयू-सीआईटीयू जैसी दलाल यूनियनों के चंगुल से निकलना होगा।

– एक मज़दूर, लुधियाणा

मुक्ति संग्राम – बुलेटिन 16 ♦ मार्च 2022 में प्रकाशित

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