इस समय बहुत से नीम हकीम विद्वान लोग आरएसएस से सबक लेने की बात कर रहे हैं। उससे सीखकर अलग-अलग तरीकों से गोलबंद होकर चुनाव में भाजपा को परास्त करने की बात कर रहे हैं। उसके आभामण्डल को उसकी ताकत समझ रहे हैं।
चुनाव में भाजपा भले ही जीत गयी हो, मगर 95% जनता आज भी भाजपा की नीतियों के खिलाफ है। जनता उसकी साम्प्रदायिक नीतियों से घृणा करती है। 100 साल आरएसएस को होने वाले हैं, मगर आप सर्वे करके देख लीजिए कि कितने लोग गाय, गोबर, गंगा, मंदिर, मस्जिद के नाम पर लड़ना चाहते हैं, तो आप पायेंगे कि 95-97% प्रतिशत लोग आज भी धर्म के नाम पर दंगा-फसाद नहीं करना चाहते। 95-97% जनता आज भी इनके कारनामों को पसन्द नहीं करती।
तो फिर भाजपा जैसी साम्प्रदायिक ताकतें चुनाव कैसे जीत जाती हैं?
जनता को रोजगार देने की बजाय मंहगाई बेरोजगारी को बढ़ावा देना, नोटबंदी करके, जीएसटी लगाकर, सरकारी संस्थानों को बेचकर जनता को निचोड़ लेना, पूंजीपतियों को मालामाल करना… इन कारनामों से जनता खुश नहीं हैं। इनके राम मंदिर और विश्वनाथ कारीडोर से भी जनता खुश नहीं है, यहां तक कि मुसलमानों के खिलाफ जो इन्होंने घृणा फैलाने की कोशिश किया, उससे भी 95% जनता खुश नहीं थी।
तब भी चुनाव में भाजपा की जीत कैसे हो जाती है?
इस प्रश्न को हल करने के लिए यह जानना होगा कि हमारे देश के तथाकथित लोकतंत्र में चुनाव कैसे जीता जाता है- अक्सर हर चुनाव में सत्ता पक्ष द्वारा बजट के पैसे से कुछ लोगों को राशन, पेंशन, आवास किसान सम्मान निधि आदि देकर वोट खरीदा जाता है। इसके अलावा अंधाधुंध काला धन खर्च करके हारे और जीते प्रभावशाली ग्राम-प्रधानों, बीडीसी, जिलापंचायत सदस्यों के अलावा गांव, मुहल्लों, कस्बों में असर रखने वाले वोटों के छोटे-बड़े सौदागरों को खरीदा जाता है। जाति, धर्म, क्षेत्र आदि के नाम से बनी छोटी-छोटी पार्टियों के नेताओं को खरीदा जाता है। इसके अलावा काले धन की ताकत से बड़े-बड़े चुनाव अधिकारियों को भी खरीदा जाता है। घूस लेकर अधिकारी लोग काम न करें तो उन पर जान से हाथ धोने का खतरा बनाया जाता है। चुनाव अधिकारियों को भयभीत करके काम निकालने के लिए कई स्थानीय बाहुबलियों को भी खरीदा जाता है। इन्हें खरीदने के लिए इनको ठेका, पट्टा, कोटा, परमिट, लाइसेंस, एजेन्सी, अनुदान, सस्ते कर्ज आदि आर्थिक स्रोत दिलवाया जाता है। इन बाहुबलियों के पास वैध असलहे तो होते ही हैं, उन वैध असलहों के पीछे सैकड़ों अवैध असलहे और सैकड़ों पालतू गुण्डे होते हैं। कालेधन की ताकत से प्रमुख मीडिया चैनलों, अखबारों, पत्रकारों तक को खरीद लिया जाता है। इनके माध्यम से झूठी अफवाहें बड़े पैमाने पर फैलाई जाती हैं, सूचनाओं को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है। झूठे वादे किये जाते हैं। शोषक वर्ग की मुख्यधारा की सभी पार्टियां यही करके चुनाव लड़ती हैं।
इस तरह जो लोग सबसे अधिक काला धन व्यवस्थित ढंग से खर्च कर लेते हैं अक्सर उनकी जीत हो जाती है। आरएसएस और भाजपा ने भी यही सब करके चुनाव जीता है। भाजपा उपरोक्त हथकण्डों को न अपनाए तो गाय, गोबर, गंगा, मंदिर, मस्जिद, दंगा-फसाद के नाम पर चुनाव लड़ें तो लगभग सभी सीटों पर उनकी जमानत जब्त हो जायेगी।
भाजपा की साम्प्रदायिक नीतियों से खुश होकर वोट देने वाले असामाजिक तत्वों/अंधभक्तों की संख्या 3-4% भी नहीं है। यही है आरएसएस के सौ साल की कमाई। सिर्फ 3-4 प्रतिशत अंधभक्त और काला धन। इसमें भी काला धन ही मुख्य है।
काला धन ही भाजपा की असली ताकत है। ये काला धन हटा दीजिये तो जो 3-4 प्रतिशत अन्धभक्त हैं, उनकी भी खर्चा-खुराकी बन्द हो जायेगी और मिस्ड काल से दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली भाजपा और आरएसएस इतिहास के कूड़ेदान में चली जायेगी।
आरएसएस जो तरीका सत्ता पाने के लिए अपनाती है, उसमें से आप कौन सा तरीका अपनाकर मजदूरों किसानों, बुनकरों, दस्तकारों, बेरोजगार नौजवानों का भला कर लेंगे? और कौन सी क्रान्ति कर लेंगे?
आप आरएसएस से सबक सीखेंगे तो जनहित में कुछ भी नहीं कर सकते। अगर जनहित में कुछ करना है तो आरएसएस जहां हिटलर से सबक सीख कर आगे बढ़ रही है वहीं आपको हिटलर को नेस्तनाबूत करने वाले स्टालिन से सबक सीखकर आगे बढ़ना होगा।
रजनीश भारती
राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा
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