- यूक्रेन अब अधिक व्यावहारिक दिख रहा है, पर उसके नाटो हैंडलर उसे रोकते लग रहे हैं.
ऐसा नहीं होता, तो इस अहम बातचीत के बीच यह ख़बर क्यों फैलायी गयी कि ‘यूक्रेन को नाटो विदेश मंत्रियों की बैठक में बुलाया जाएगा.’
- रूस ने सकारात्मक रूख दिखाते हुए दो बड़ी बातें कही हैं- एक, सैनिक कार्रवाई को मद्धिम कर दिया जाएगा और यूक्रेन के यूरोपीय संघ में शामिल होने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है.
पर, अभी रूस संतुष्ट नहीं है, और उसे होना भी नहीं चाहिए.
पर अभी बातचीत जारी है, सो उम्मीद रखना चाहिए. तुर्की बहुत मेहनत कर रहा है.
- एक महीने से अधिक की सैन्य कार्रवाई में यह पहला मौक़ा है, जब यूक्रेन ने लिख कर कुछ दिया हो. और लिखना चाहिए.
- अमेरिका का इरादा ख़तरनाक दिख दिख रहा है.
पहले राष्ट्रपति बाइडेन ने (वारसा में) रूस में रिजीम चेंज यानी सत्ता बदलने का आह्वान किया, पर व्हाइट हाउस के समझदारों ने इससे किनारा किया.
अब वे फिर कह रहे हैं कि उन्हें अपने कहे का अफ़सोस नहीं.
यह सब मामला उलझाने के लिए किया जा रहा है.
साल 2007-08 के वित्तीय संकट के समय से ही अमेरिका को यूरोप में एक बड़े युद्ध की ज़रूरत है ताकि उसका वर्चस्व फिर स्थापित हो सके.
इसलिए वह रूसी सैन्य कार्रवाई को युद्ध में बदलना चाहता है.
- शेयर बाज़ार जयादा समझदार है, उत्साह में आ गया है. रूबल में लगातार सुधार हो रहा है.
अब गैस के बदले रूबल देने की रूसी शर्त लागू हो जाएगी.
देखते हैं, यह अध्याय कहाँ तक जाता है.