आज (29 मार्च) विश्व प्रसिद्ध रूसी लेखक गोर्की का जन्मदिन है. वे दुनिया में बेहद याद किये जानेवाले लेखक हैं. जो थोड़ा भी रूसी साहित्य से परिचित है उन्हें उनका उपन्यास माँ की याद जरूर आएगी.
इस उपन्यास की कथा वास्तविकता के करीब है.यह कृति रूस के सामाजिक आंदोलन पर आधारित है.
टालस्टाय, चेखव और गोर्की की तिगड़ी रूस में मशहूर थी, ये तीनों एक दूसरे के बहुत करीब थे.
एक बार टालस्टाय ने गोर्की से कहा था कि हमने इतना लिखा, पढ़ा लेकिन दुनिया नही बदली!
गोर्की को कई बार नोबुल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था लेकिन उनकी कीर्ति और प्रतिष्ठा इन सम्मानों से ऊपर थी.
44 साल की उम्र पाकर वे अपने लेखन से विश्व साहित्य में अमर हो गये.
गोर्की के जीवन और लेखन को जानने के लिए उनकी तीन खंडों में प्रकाशित आत्मकथा -माई चाइल्डहुड,.इन दि वर्ल्ड और माई यूनिवर्सिटीज़ पढ़ने योग्य है.
गोर्की के पिता का देहांत उस समय हो गया जब उनकी उम्र पांच साल की थी. उनकी माँ ने पुनर्विवाह कर लिया, इस तरह उनका पालन पोषण और बचपन नाना नानी के साथ व्यतीत हुआ था.
नानी उन्हें बहुत प्यार करती थी और गोर्की भी उससे गहरे जुड़े हुए थे. नाना क्रूर तबियत के थे, गोर्की की थोड़ी शरारत से उसे पीटते रहते थे.
दोस्त कहते कि तुम शरारत ही क्यों करते हो तो वह कहते नाना किसी न किसी तरह से पीटने की वजह खोज लेते थे.
उनका जीवन अनेक मार्मिक और कटु वृत्तांतों से भरा हुआ था, लेकिन उनकी एक मार्मिक संस्मरण पढ़ कर अब भी दिल भर आता है.
नाना की मृत्यु के बाद नानी दुनिया में अकेली हो गयी थी, उन दोनों का जीवन बहुत कठिनाई में गुजरा था. नानी चर्च के सामने भीख मांग कर अपना और गोर्की का गुजारा करती थी, उनके अंतिम दिन बेहद कष्टप्रद थे. एक दिन नानी भी उन्हें छोड़ कर चली गयी.
उन्होंने लिखा है कि ऐसे दारुण क्षण में उन्हें चेखव की कहानी ग्रीफ की याद आयी. यह एक इक्कावान की कहानी है जो घोड़ागाड़ी चलाकर जीवन यापन करता था. एक दिन उसके बेटे की मृत्यु हो गयी, वह मुसाफिरों से अपना दुख कहता लेकिन कोई नही सुनता था.
अंत में वह अपने घोड़े के गले लग कर अपना दुख कहता है और राहत महसूस करता है.
आज का दौर कितना कठिन है यहां तो अब मानव- घोड़े (?) कहां हमारा दुख सुनते है.
गोर्की लिखते है कि उनके पास अपने दुख सुनाने के लिए घोड़ा भी नही था, उनके घर में रहनेवाले चूहे उनके दुख कहां सुन सकते हैं!
जीवन के कठिन क्षणों में उनकी यह कहानी बार बार याद आती है और यह पता चलता है कि *कोई किसी के साथ नही खड़ा होता, अपना दुःख खुद झेलना पड़ता है.
अप्रतिम लेखक गोर्की की स्मृति की ह्रदय से नमन.