इमरान खान ने अपने तख्तापलट की आशंका में “फॉरेन हैंड” को ज़िम्मेदार ठहरा दिया है. कह ये भी दिया कि मैं भुट्टो नहीं.
कमाल देखिए कि उसी भुट्टो की पार्टी,.उनके कथित तख्तापलट में सक्रिय है.
कोई शक़ नहीं कि उनमें और भुट्टो में बहुत समानताएं हैं और ये भी ठीक है कि वो अमेरिका से उसी तरह छिटके थे जैसे आज इमरान.
जिस “फॉरेन हैंड” की बात इमरान ने कही है,.उसका छिपा हुआ मतलब अमेरिका ही है; वही अमेरिका जिसके राष्ट्रपति उन्हें फोन पर बात करने लायक भी नहीं समझते.
इमरान के दौर में बहुत सारी चीज़ें ऐतिहासिक रूप से शिफ्ट हो रही हैं.
वो चीन की गोद में हैं और रूस की बगल में बैठना चाहते हैं.
आर्थिक तौर पर मुल्क घिसट रहा है.
भारत से उनके संबंध बहुत खराब हैं.
अमेरिका से और खराब हैं.
सेना से बिगड़ रही है.
जो कभी साथ न हुए वो पीपीपी और पीएमएल-एन साथ हैं.
उनके दौर में भारत आराम से धारा 370 हटा सका है, पीओके में आतंकी शिविर तक धावा बोल आया है, अपने पकड़े गए पायलट को वापस लिवा लाया और जेल में कैद एक कथित जासूस की फांसी तक रुकवा रखी है.
इमरान पाकिस्तान के चुने हुए तीसरे पक्ष हैं, उनका अपने देश के लिए पता नहीं भारत के लिए नौसिखियापन मुनाफे का सौदा है.
भारत के लिहाज़ से अच्छा है कि इमरान बने रहें. कम से कम साज़िश से ना हटाए जाएं जैसे कभी भुट्टो हटाए गए थे और हटानेवाले ज़िया रहस्यमयी क्रैश में मारे गए थे.
हम थोड़ी राहत ये जानकर ले सकते हैं कि उनका विकल्प नवाज़ शरीफ के भाई शाहबाज़ हैं जो पके हुए सियासतदां हैं. वो कम से कम बिलावल से बेहतर हैं जिनके पास अभी कोई तजुरबा नहीं.
बाकी अगले दो दिन दिलचस्प हैं. इस्लामाबाद फिर से वही महसूस कर रहा होगा जैसा कई बार पहले कर चुका.
मैं पाकिस्तान से जुड़ी किताबें पलट रहा हूं, जिसका राजनीतिक इतिहास “चंद्रकांता” के प्लॉट से भी ज़्यादा रहस्यमयी और रोमांचकारी है.