दुनिया के मज़दूरो एक हो!
पूँजीवाद-साम्राज्यवाद मुर्दाबाद!
मज़दूर शहीदों का पैग़ाम, जारी रखना है संग्राम!
1 मई को मज़दूरों का सबसे बड़ा त्यौहार अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस
जोशो-खरोश से मनाते हुए पूँजीवादी शोषण के खिलाफ़ संघर्ष आगे बढ़ाओ!
मज़दूर दिवस सम्मेलन
में बड़ी से बड़ी संख्या में पहुँचो!
1 मई 2022, (दिन रविवार), सुबह 11 बजे
स्थान- कारखाना यूनियन कार्यालय/शहीद भगतसिंह पुस्तकालय के सामने पार्क में (राशन डिपो के साथ), एल.आई.जी. कालोनी (राजीव गाँधी कालोनी और एच.ई. फ्लैटों के साथ स्थित), जमालपुर कालोनी, लुधियाणा
सम्मेलन में क्रांतिकारी नाटक और गीतों का सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होगा
पहली मई को मज़दूरों का सबसे बड़ा दिन, सबसे बड़ा त्यौहार – अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस – दुनिया के कोने-कोने में जोशो-खरोश से मनाया जाएगा। यह किसी प्रकार का कर्मकांड या रस्म-अदायगी करने का दिन नहीं हैं। पहली मई को सारे संसार के मज़दूर सम्मेलन, रैलियाँ, हड़तालें, प्रदर्शन करके महान मज़दूर शहीदों को याद करेंगे, उनके विचारों, संघर्षों, कुर्बानियों से प्रेरणा लेंगे। मज़दूर वर्ग समेत तमाम मेहनतकशों की पूँजीपति हुक्मरानों द्वारा लूट-शोषण को पूरी धरती से मिटाने के अंतरराष्ट्रीय मज़दूर वर्ग के मिशन को आगे बढ़ाने के नए संकल्प लेंगे। मौजूदा समय में पूँजीवादी-साम्राज्यवादी हुक्मरानों द्वारा पेश की जा रही चुनौतियों पर विचार करते हुए भविष्य के संघर्षों की रूप-रेखा पर विचार करेंगे। लाल झंडे और गगनभेदी नारे बुलंद करते हुए, दुनिया के कोने-कोने में सड़कों पर उतरे मज़दूर पूँजीपतियों को बताएँगे कि भले ही तुम आज ताक़त से हर किसी चीज़ पर क़ब्ज़ा जमाए बैठे हो, लेकिन तुम्हारा जु़ल्मों-सितम मज़दूर वर्ग के इंक़लाबी इरादों को, पूँजीवादी शोषण को जड़ से मिटाने के ऐतिहासिक मिशन को रौंद नहीं सकता। मज़दूर वर्ग के इंक़लाबी संघर्षों से एक दिन ज़रूर ऐसा आएगा, जब लूट पर टिकी यह पूँजीवादी व्यवस्था मिट्टी में मिला दी जाएगी। जब मेहनत करने वालों को उनकी मेहनत का पूरा फल मिलेगा। जब देश, धर्म, जाति, राष्ट्रीयता आदि के नाम पर किसी का शोषण नहीं होगा। जब इंसान के हाथों इंसान का शोषण असंभव हो जाएगा।
मौजूदा समय में जब दुनिया-भर में मज़दूरों-मेहनतकशों का पूँजीवादी-साम्राज्यवादी शोषण बेहद तीखा हो चुका है। मज़दूर एकता के न होने से कुर्बानियों भरे संघर्षों की बदौलत हासिल किए गए अधिकार हुक्मरानों द्वारा एक-एक करके छीने जाते रहे हैं। भारत में हालाँकि सभी पार्टियों की सरकारों ने मज़दूरों और अन्य मेहनतकशों के निर्मम शोषण के लिए पूरा ज़ोर लगाया है, लेकिन फासीवादी संगठन आर.एस.एस. की राजनीतिक शाखा भाजपा के सत्ता में आने से शोषण कई गुणा बढ़ गया है। लंबे कुर्बानियों भरे संघर्षों की बदौलत जीते गए क़ानूनी श्रम अधिकारों पर बड़ा डाका डालते हुए मोदी सरकार ने पुराने दर्जनों श्रम क़ानूनों की जगह चार नए श्रम क़ानून बना दिए हैं, जिसके ज़रिए मज़दूरों को पूँजीपतियों की पहले से कहीं अधिक गुलामी के गढ्ढे में धकेला गया है। देशी-विदेशी पूँजीपतियों के पक्ष में लागू की जा रही वैश्वीकरण-निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों के चलते मज़दूरों और अन्य मेहनतकशों से भोजन, दवा-इलाज, शिक्षा, परिवहन आदि ज़रूरतों से संबंधित सरकारी सुविधाएँ बड़े स्तर पर छीनी जा चुकी हैं। जनसंघर्षों को कुचलने के लिए जहाँ दमन का ढाँचा सख्त से सख्त बनाया जा रहा है, वहीं जनता को धर्म, जाति के आधार पर बाँटने, दबाने का सिलसिला भी दिन-ब-दिन तेज़ होता गया है।
ऐसे घनघोर अँधेरे समय में मज़दूर वर्ग के लिए अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस की क्रांतिकारी विरासत का महत्व बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है। यह ज़रूरी है कि हम मई दिवस की क्रांतिकारी विरासत को आत्मसात करते हुए, विशाल मज़दूर आबादी तक पहुँचाएँ। मज़दूरों के विशाल संगठन बनाएँ, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष तेज़ करें।
मज़दूर दिवस की महान क्रांतिकारी विरासत
पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूर शुरू से ही भयानक शोषण का शिकार रहे हैं। 19वीं सदी में काम के घंटों की कोई सीमा नहीं थी। ऐसे समय में अमरीका की मज़दूर यूनियनों ने आठ घंटे काम की दिहाड़ी के लिए मज़दूरों को संगठित किया। अमरीका की मज़दूर यूनियनों द्वारा लंबी तैयारी के बाद पहली मई 1886 को कई शहरों में मज़दूरों की एक बड़ी हड़ताल हुई। उन्होंने मालिकों और सरकार के सामने माँग रखी कि एक दिहाड़ी में काम का समय आठ घंटे हो। उनका नारा था – “आठ घंटे काम, आठ घंटे आराम, आठ घंटे मनोरंजन!” शिकागो शहर में तो सारे कारख़ाने ठप्प कर दिए गए। डरा-धमकाकर, लालच देकर हड़ताल तोड़ने की कोशिश हुई, लेकिन मज़दूर नहीं झुके। पुलिस ने पूँजीपतियों के इशारे पर मज़दूर जलसे पर गोली चलाई। कई स्त्री-पुरुष मज़दूर और बच्चे मारे गए। मज़दूरों का सफे़द झंडा ख़ून से लाल हो गया। इसके खिलाफ़ अगले दिन शिकागो की हे-मार्केट में मज़दूर सभा हुई। इसे विफल करने के लिए पुलिस के एजंटों ने सभा में बम फेंका जिसमें कई मज़दूर और कुछ पुलिस वाले मारे गए। दोष आठ मज़दूर नेताओं पर लगा दिया गया। अल्बर्ट पार्संस, आगस्त स्पाइस, जॉर्ज एंजेल, एडॉल्फ़ फि़शर, सैमुअल फ़ील्डेन, माइकेल श्वाब, लुइस लिंग्ग और आस्कर नीबे पर झूठा मुक़द्दमा चला। मुक़द्दमे के लंबे नाटक के बाद अदालत ने 7 मज़दूर नेताओं को सज़ा-ए-मौत और एक को पंद्रह साल कै़द बामशक्कत की सज़ा सुनाई। पार्संस, फ़िशर, स्पाइस व एंजेल को फाँसी दे दी गई। लुइस लिंग्ग को जेल में ही शहीद कर दिया गया। बाद में जब जन दबाव के कारण पुलिस की साजिश का पर्दाफाश हो गया तो जेल में बंद बाकी तीन मज़दूर नेताओं को बरी करना पड़ा। मालिकों ने सोचा था कि मज़दूरों का खून बहाकर, मज़दूर नेताओं को फाँसी पर चढ़ाकर व जेलों में ठूँसकर मज़दूरों की आवाज़ दबा देंगे लेकिन उनके मंसूबे पूरे न हो सके। शहीदों को अंतिम विदाई देने छ: लाख से अधिक मज़दूर और आम लोग पहुँचे। आगे चलकर पूरी दुनिया में मज़दूर संघर्ष और तीखा हुआ। सरकारों को आठ घंटे काम की दिहाड़ी का क़ानून बनाना पड़ा। दुनिया के विभिन्न देशों के मज़दूरों के क्रांतिकारी संगठन ‘पहली इंटरनेशनल ने 1890 से हर वर्ष पहली मई को दुनिया-भर में अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया। तब से दुनिया में मज़दूर हर वर्ष 1 मई को हाथों में क्रांति का लाल झंडा लिए मई दिवस के शहीदों को याद करते हैं और आगे के संघर्ष के लिए प्रेरणा लेते हैं।
भारत में, अंग्रेज़ी गुलामी के समय 1862 में पहली बार हावड़ा के रेल मज़दूरों ने आठ घंटे की काम की दिहाड़ी की माँग रखी। बंबे के कपड़ा मज़दूरों ने काम के घंटे घटाए जाने के लिए 1902-03 में ज़बरदस्त हड़तालों द्वारा अंग्रेज व भारतीय पूँजीपतियों को जबरदस्त टक्कर दी थी। यह संघर्ष बढ़ता ही गया। आंदोलन के दम पर ही आठ घंटे काम की दिहाड़ी, न्यूनतम वेतन, यूनियन बनाने के अलावा विभिन्न क्षेत्रों के मज़दूरों के लिए बहुत से संवैधानिक श्रम अधिकार प्राप्त किए। लेकिन मज़दूरों की एकता बिखरने से धीरे-धीरे ये अधिकार छिनते गए हैं।
हमें अपने महान इतिहास से सीखकर न सिर्फ़ अधिकारों के छीने जाने के खिलाफ़ लड़ाई लड़नी है बल्कि दूसरे मेहनतकशों को साथ में लेते हुए, उनका नेतृत्व करते हुए मज़दूर वर्ग को शोषण पर आधारित पूँजीवादी व्यवस्था को जड़ से उखाड़ फेंकना है और मज़ूदरों के राज वाले समाजवादी समाज का निर्माण करना है जहाँ उत्पादन के साधनों पर मज़दूरों-मेहनतकशों का क़ब्जा होगा, क्योंकि ऐसे समाज के निर्माण से ही मज़दूरों-मेहनतकशों के शोषण का खात्मा हो सकता है।
आयोजक संगठन
कारखाना मज़दूर यूनियन और टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन
सहयोग- नौजवान भारत सभा और पेंडू मज़दूर यूनियन (मशाल)
संपर्क नं. – 9646150249, 9888655663
लखविंदर सिंह द्वारा शहीद भगतसिंह पुस्तकालय, जमालपुर कालोनी, लुधियाना से 8 अप्रैल 2022 को प्रकाशित। उन्हीं द्वारा ब्राइट प्रिंटर्ज, जालंधर से छपवाया।