“वो शलवार किसकी थी ?” : (कविता) – आबिद शाह

दैनिक समाचार

है दुनिया भर में चर्चा आम , वो शलवार किसकी थी ?करोड़ों में हुई नीलाम , वो शलवार किसकी थी ?
कि बुंदेलों , कि हरबोलों , सभी को है ये हैरानी !पहेली ये भी सुलझानी , ज़नानी थी कि मरदानी !उसी दर्ज़ी से सिलवानी, कि वो शलवार किसकी थी ?
सुना है , लोग कहते हैं , कि परचम उससे बनते हैं !सुना है , तोप में डलते हैं जो , बम उससे बनते हैं !बड़े दम-ख़म, बड़े जोखम की, वो शलवार किसकी थी ? चले हैं तीर नज़रों के , संभालो आशिक़ों के दिल !ज़माने में नहीं है कोई , अब शलवार के क़ाबिल !हैं उलझन में दिमाग़-ओ-दिल, कि वो शलवार किसकी थी ?
ये उलझन कैसी है बाबा , कि जो सुलझी अभी नाहीं!सुना बेजोड़ – कपड़ा और सिलाई है , फटी नाहीं !पहन लो फिर ,चलो इक बार , वो शलवार किसकी थी ?
तुम्हारे पर बड़ी बरकत है उस शलवार की बाबा !सुना है रखती है , वो धार भी तलवार की बाबा !कि बाबा हल करो मुश्किल , कि वो शलवार किसकी थी ?
है दुनिया भर में चर्चा आम , क़सम से कर गई बदनाम !वही छप्पन छुरी जैसी , दुधारी धार किसकी धी ?वही कमबख़्त , वो शलवार , वो शलवार किसकी थी ?करीड़ों में हुई नीलाम , वो शलवार किसकी थी ?

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