- रिचर्ड डॉकिन्स-
आज 26 मार्च, महान नास्तिक रिचर्ड डॉकिन्स जी की जन्मदिन की अभिनंदन जन्म- 26 मार्च 1941) एक ब्रिटिश एथोलॉजिस्ट, विकासवादी जीवविज्ञानी, नास्तिक विचारक और लेखक हैं। वह न्यू कॉलेज ऑफ ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में 1995 से 2008 तक विज्ञान की प्रोफेसर थे।
1976 में इन्होंने एक किताब लिखी थी जिसका नाम था ‘द सेल्फिश जीन’। इसमें उन्होंने बताया है कि किस तरह से क्रमिक विकास में जीन्स की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और वे एक दूसरे से प्रतियोगिता करते हुए सर्वाइव करने की कोशिश करते हैं। जो बच जाते हैं, वो ही आगे विकास का हिस्सा बनते हैं।
रिचर्ड डॉकिन्स की 2006 में प्रकाशित-
‘द गॉड डिलुज़न’ (“भगवान का भ्रम”) में उन्होंने कहा है कि किसी दैवीय विश्व-निर्माता के अस्तित्व में विश्वास करना बेकार है और धार्मिक आस्था एक भ्रम मात्र है।
इस किताब में वो कहते हैं कि किस तरह की भगवान या किसी ऊपरी शक्ति का अस्तित्व नहीं है। और जो लोग उसमें भरोसा करते हैं, वो भ्रम का शिकार हैं।
डॉकिन कहते हैं कि कुछ भौतिकविदों ने ‘ईश्वर’ को ब्रह्मांड की रहस्यों के लिए ‘रूपक’ के रूप में उपयोग किया है, जो लोगों के बीच भ्रम और गलतफहमी का कारण बन गया है, वे गलत तरीके से सोचते हैं कि कोइ एक रहस्यमय अस्तित्व की उपस्थिति है, जो इंसान को बनाता है, जो पापों को क्षमा करता है और वे मरने के बाद कहां रहते हैं, आदि आदि । रिचर्ड डॉकिंस -धर्म को दुनिया की महान बुराइयों में से एक मानते हैं।
कुछ साल पहले रिचर्ड डॉकिंस काफी विवादों में फंस गए थे, जब उन्होंने धर्मों की आलोचना करते हुए कहा था की –
मुस्लिमों और दूसरे धार्मिक समूहों का तुष्टिकरण बंद करिए। किसी भी तरह की धार्मिक प्रिविलेज को पूरी तरह ख़त्म किया जाना चाहिए। उन स्कूलों से सरकारी सहायता वापस ले लीजिए, जो बच्चों को एक खास धर्म का पालन करना सिखाते हैं। धार्मिक संस्थानों को अपने-आप चैरिटेबल स्टेटस मिल जाने के अधिकार को ख़त्म कीजिए। बिशपों के ऑटोमेटिकली हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में बैठने का अधिकार भी खत्म होने चाहिए।
रिचर्ड डॉकिंस के इसी तरह मानववादी व नास्तिक विचारों की वजह से कट्टर धार्मिकों की तरफ से कई तरह के विरोध होते रहते हैं।
2006 में इन्होंने “Richard Dawkins Foundation for Reason and Science (RDFRS)” नाम के फाउंडेशन की स्थापना की।
“रिचर्ड डॉकिंस अवार्ड”- एक वार्षिक पुरस्कार है जिसे जुलाई 2019 में अमेरिका के नास्तिक गठबंधन द्वारा प्रस्तुत किया गया था। ये पुरस्कार प्रसिद्ध अंग्रेजी विकासवादी जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिंस के नाम पर दिया जाता है।
रिचर्ड डॉकिंस अवार्ड क्या है और क्यों मिलता है –
रिचर्ड डॉकिंस अवॉर्ड – शोध, विज्ञान, शिक्षा या फिर मनोरंजन जगत से जुड़े किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को दिया जाता है। जो सार्वजनिक तौर पर तर्किकता के साथ धर्मनिरपेक्षता व मानववाद की रक्षा के लिए कोशिश करता है।
इस अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार को पाने वाले प्रथम भारतीय हैं
जावेद अख्तर –
2020 का रिचर्ड डॉकिंस अवॉर्ड से मशहूर गीतकार जावेद अख्तर को सम्मानितकिया गया है। जावेद अख्तर को ये पुरस्कार उनकी तार्किक सोच, धार्मिक जड़ता की स्क्रूटनी, मानव प्रगति और मानवतावादी मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए दिया गया है। जावेद अख्तर की पत्नी शबाना आजमी न
ने कहा कि-“आज के वक्त में जब धर्मनिरपेक्षता खतरे में है, तो इस पुरस्कार का महत्व काफी बढ़ जाता है। जावेद के लिए रिचर्ड डॉकिंस एक नायक की तरह प्रेरणादाता रहे हैं।” सबसे बड़ी बात है कि खुद रिचर्ड डॉकिंस ने ईमेल करके जावेद अख्तर को बधाई दी है ।
आज हम कई तरह के मीम्स इंटरनेट पर देखते हैं, एक तस्वीर पर कई अलग अलग तरीकों से मीम बनते हुए दिखते हैं। इस शब्द को नाम देने वाले वैज्ञानिक रिचर्ड डॉकिंस ही हैं। इनके मीम शब्द का मतलब किसी भी ऐसी कल्चरल चीज से है, जो एक आइडिया या आइडिया के समूह को बार-बार दुहराता दिखता है।
क्रमिक विकास के इसी दुहराव को क्लियर करने के लिए डॉकिंस ने ये शब्द दिया था। और अपनी पुस्तक ‘द स्वार्थी जीन’ में, डॉकिन्स ने इस मेमे शब्द को- एक जीन की व्यवस्थिति व उपस्थिति के रूप में प्रोत्साहित करने के लिए व समझने के लिए तरीका बताया है ।
रिचर्ड डॉकिंस के लिखित पुस्तकें- -“वाइरस ऑफ़ द माइंड” (1991), “द व्यू फ्रॉम माउंट इंप्रूवबल” (2005),
“द एवोल्यूशन ऑफ़ लाइफ” (1996),
“द एक्सटेंडेड फेनोटाइप” (1982),
“अनवाइविंग द रेनबो” (1998) ), “द ग्रेटेस्ट शो ऑन अर्थ” (2009), “द ब्लाइंड वॉच मेकर” (1986), “द मैजिक ऑफ रियलिटी” (2011),
“द अनसोरर्स टेल” (2004),
“एन एपेटाइट फॉर वंडर” (2013) ),
“ब्रीफ कैंडल इन द डार्क” (2015), “साइंस इन द सोल” (2017)
रिचर्ड डॉकिंस के और भी कई अनेक उत्कृष्ट रचनाएं उपलब्ध हैं।