भारत देश के युवाओं को आजकल एक बहुत बड़ी पीड़ा है कि ईसाइयों के 100 से अधिक राष्ट्र हैं, मुसलमानों के 50 से अधिक राष्ट्र हैं,यहां तक बुद्धिस्ट, यहूदियों इत्यादि तक के धार्मिक राष्ट्र हैं तो फिर एक हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं? यदि वह हिन्दुराष्ट्र भारत हो जहां हिन्दू बहुसंख्यक है तो उसमें बुराई क्या? उनका मानना है कि हिन्दुराष्ट्र की बुराई वही करेगा जो हिन्दू नहीं है या हिन्दू विरोधी है।
उन धार्मिक समर्थकों का यह भी मानना है कि सैकड़ों अन्य बाहरी धार्मिक राष्ट्रों पर तो भारत के सेक्युलर लोग मुहँ में दही जमाये बैठा है लेकिन भारत की बात पर आपत्ति दर्ज करते हैं ऐसा क्यों? उनका यही विचारधारा समेटे असंख्य अथवा बहुसंख्य लोग भाजपा के साथ हर परिस्थिति और हर वजह से खड़े हैं। उन्हें लगता है एक न एक दिन भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा तब देश तरक्की करेगा,विश्वगुरु बनेगा और सब समस्याएं तभी खत्म होगी। उनकी इन आशाओं को आरएसएस व भाजपा मिलकर समय समय पर हवा भी दे रहे हैं।
अब आपको बताता हूँ धार्मिक राष्ट्र की उपलब्धियों के बारे में। जापान, इजरायल और सऊदी अरब अथवा कुछ खाड़ी देशों को छोड़कर कोई भी धार्मिक राष्ट्र कभी सफ़लता हासिल नहीं कर सका जानते हो क्यों? क्योंकि धर्म एक खोखला और सीमित आधार है और जो धार्मिक राष्ट्र सफल हुए हैं वह इत्तेफाक से ही धार्मिक है जबकि उसके पीछे पूरा साइंस खड़ा है। जैसे कि आप घर की कोई भी मशीनें देखो सब मेड इन जापान है और सेना के हथियार सब मेड इन इजराइल। यह धर्म नहीं कर्म है जो कलयुग में ही इत्तेफाक से हुआ है।
इसी तरह यह तकनीक भी धर्म की नहीं बल्कि विज्ञान की है। दुबई में तेल का खेल है जिसने खुद को तेल या इस्लाम तक सीमित नहीं रखा तभी वह बुर्ज खलीफा या मजबूत दीनार अथवा जीडीपी स्थापित कर सका। अब भी यदि आपको मेरी बातों से सहमति नहीं तो बहुत दूर मत जाओ बल्कि भारत के करीब आओ और भारत के सीमावर्ती देशों श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान इत्यादि धार्मिक राष्ट्रों पर नजर डालो और निष्कर्ष निकालो कि वे असफ़ल क्यों हैं? जबकि वे सभी अलग अलग धर्मों के मानने वाले हैं जिनमें हिन्दू धर्म भी सम्मिलित है।
भारत ने आज़ादी के बाद प्रगति की रफ़्तार पकड़ी थी और आज आप भावनात्मक नजरिये से पूरा अस्वीकृत मुड़ बनाये बैठे हैं मगर सत्य यह है कि वह प्रगति रुकी पड़ी है क्योंकि भारत ने वर्तमान में धर्म को तरजीह देनी शुरू की है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चीन इत्यादि देश आज विश्वगुरु हैं क्योंकि चाइना जैसे खुरापाती और एकमात्र कन्फ्यूशियस बहुसंख्यक वाले देश ने कभी नहीं कहा कि कन्फ्यूशियस धर्म के मानने वालों का कोई राष्ट्र नहीं है इसलिए हम चीन को कन्फ्यूशियस धर्म राष्ट्र बनाएंगे!
यदि आपको कभी जरूरत से ज्यादा गलतफहमी पनप उठे कि भारत गुलामी की वजह से इस हाल में है तो अपने पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से सबक लेना जो न कभी इस्लामी शक्तियों के द्वारा परास्त हुआ और न अंग्रेजों के सीधे अधीन रहा। यदि गलतफहमी हो कि आज़ादी के बाद यदि हिन्दू राष्ट्र होता तो तस्वीर अलग होती तो पाकिस्तान से सबक लेना क्योंकि उन्हें यह अवसर मिला लेकिन 5 वर्ष पूरी तरह सत्ता नहीं चला सके। फिर भी यदि धार्मिक कीड़ा काटे जा रहा हो तब एड्स की भांति रिलिजियस मेनिया का भी कोई इलाज़ नहीं सिवाय मृत्यु के।
फिर भी अडिग हो तो सभी बातों को दरकिनार कर श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल,भूटान की धार्मिक राष्ट्र की श्रेणी में सम्मिलित होने हेतु लड़ते जाएं लेकिन हमें अलग रखकर। क्योंकि हम हिन्दू राष्ट्र हो, बुद्धिस्ट राष्ट्र हो, कन्फ्यूशियस राष्ट्र हो या यहूदी तथा इस्लामिक राष्ट्र हो हम सबके खिलाफ मिलेंगे। हमारी तरक्की ज्ञान, विज्ञान और संविधान में है। हम उसी के पक्षधर हैं। जो इनसे बाहर की बात करे या समझे कि हम बेहतर करके दिखाएंगे, उसे मैं भावनात्मक बीमार समझता हूँ। उसे मैं अज्ञानी और इतिहास से सबक न सीखने वाला एक व्यर्थ शरीर आंकता हूँ। कोई भी धार्मिक व्यवस्था इतनी ही मजबूत होती तो वह कभी ध्वस्त न होती भले ही कारण कोई भी हो। विचार करें। #आरपीविशाल।