सर विलयिम जोन्स कई भाषाओं के जानकार थे, बड़े विद्वान् थे, सुप्रीम कोर्ट के जज बनकर आए थे, वे संस्कृत सीखना चाहते थे लेकिन कोई संस्कृत का विद्वान् उनको संस्कृत पढ़ाने को तैयार नहीं था.
उस समय संस्कृत के विद्वान् यह मानते थे कि “एक विधर्मी और विदेशी को संस्कृत पढाना पाप है,” फलतःकोई पढाने वाला नहीं मिला.
अंत में बड़ी मुश्किल से एक अ-ब्राह्मण वैद्य ने सशर्त पढ़ाने की जिम्मेदारी ली, जोन्स ने उनकी सारी शर्तें मान लीं.
सारे यूरोप को संस्कृत साहित्य की झलक जोन्स के जरिए ही मिली!
उन्होंने बंगाल एशियाटिक सोसायटी की स्थापना की, जो बाद में रॉयल एशियाटिक सोसायटी कहलायी.
भारत के प्राचीन साहित्य की खोज में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है.