अब्दुल कल पंचर बनाने का 10 रू लेता था, आज महंगाई बढने पर पंचर बनाने का 40 रू लेता है, कल और महंगाई बढने पर 50, 60, 70 भी लेगा
अब्दुल पे फर्क नहीं पङने का, जिसकी गर्ज होगी, झक मारकर पैसे देकर पंचर बनवाएगा।
फर्क किस पर पङा है?
शर्मा जी पर और शर्मा जी के लौंडे पर
शर्मा जी का लौंडा जो एक मल्टी नेशनल कम्पनी में था आज घर पर खाली बैठा है। कम्पनी नें छंटनी कर दी। शर्मा जी की पेंशन से घर चलता है इस महंगाई में।
और वो मिश्रा जी का लौंडा 6 साल से यूपीएससी की तैयारी करते करते ओवरएज हो गया मगर नौकरी नहीं निकली।
भर्ती निकली भी तो पेपर लीक हो गया या अदालत में केस हो गया। अब्दुल पर क्या फर्क पङा, वो तो पंचर बना रहा है निर्विघ्न भाव से। अब्दुल को न तो प्रमोशन की आस है न डिमोशन का डर।
और वो सिंह साहब का लौंडा, रेलवे में था, काॅन्ट्रैक्चुल। सोच रहा था कुछ सालों में परमानेंट हो जाएगा। प्राइवेटाइजेशन में पोस्ट ही खत्म हो गई।
एक अब्दुल को तबाह करने में न जाने कितने शर्मा, मिश्रा, सिंह, पाण्डेय बर्बाद हो रहे हैं। मगर अब्दुल है कि फर्क नहीं पङता, पंचर बनाए जा रहा है।