कश्मीर फाइल्स के पीछे की साजिश और कश्मीर त्रासदी का सच

दैनिक समाचार

भाग- 11

वी.पी. सिंह की सरकार 2 दिसम्बर 1989 में सत्ता में आयी थी और 8 दिसम्बर को कश्मीरी उग्रवादियों ने राज्य की फारूख़ अब्दुल्ला सरकार में गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का अपहरण कर लिया था। भारत सरकार ने गृहमंत्री की बेटी को छोड़ने की एवज में अपहरणकर्ताओं के मांग के अनुसार 5 उग्रवादीयों को रिहा किया था, आतंकवादियों की इस शर्त को फ़ारूख़ अब्दुल्ला मानने को कतई तैयार नहीं थे किन्तु केन्द्र सरकार के दबाव में आतंकवादियों के सामने फ़ारूख़ अब्दुल्लाफा को घुटने टेकने के लिये मजबूर होना पड़ा जिसके बाद से कश्मीर घाटी में उग्रवादीयों का बोलबाला हो गया था क्योंकि इससे आतंकवादियों को लगने लगा ये तो बड़ा आसान है, इस तरह से सरकार को झुकाकर अपनी मांगे मनवाई जा सकती है। इसके बाद आतंकवादीयों ने कई बार अपनी मांगे मनवाई।

इस बात की सत्यता आप ए एस दुलत के बयान से लगा सकते हैं। आई बी के संचालक और रा के बड़े अधिकारी रहे ए एस दुलत अपनी पुस्तक कश्मीर द बाजपेयी इयर्स नामक पुस्तक में लिखते हैं कि “1989-90 के जाड़ों में श्रीनगर एक भयानक भुतहा शहर जैसा था जो युद्ध के तांडव का आरम्भ देख रहा था। रूबिया सईद के अपहरण ने बगावत का बाँध खोल दिया हत्याएँ रोजमर्रा की चीज़ बन गई। बमबाजी और फायरिंग अब मुख्यमंत्री के आवास के पास के सबसे सुरक्षित इलाकों में भी होने लगी थी। ट्रकों में बन्दूकें लहराते हुए युवा कैंट क्षेत्र के पास दिखाई देने लगे थे। आतंकवादियों द्वारा शहर के केन्द्रीय इलाकों में मिलिटरी परेड होते थे”

11 फ़रवरी 1984 को भारतीय और पाकिस्तानी कब्जे वाले समूचे कश्मीर की आजादी की माँग को लेकर सशस्त्र संघर्ष के हिमायती नेता मकबूल बट को तिहाड़ जेल में फाँसी दे दी गयी थी, जिसने कश्मीरी युवाओं में असन्तोष बढ़ाने का काम किया। जुलाई 1984 में इंदिरा गाँधी ने जम्मू कश्मीर की राज्य सरकार को बरख़ास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जिससे कश्मीर घाटी में एक बार फिर असन्तोष बढ़ने लगा। श्रीनगर में 72 दिनों तक कर्फ़्यू लगा रहा। लेकिन 1986 में फारूख अब्दुल्ला ने कांग्रेस से सांठ-गांठ करके मुख्यमंत्री बन गये और आगामी चुनाव में कांग्रेस से गटबंधन भी किया और 1987 में जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा के चुनाव में जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) और कांग्रेस ने गठबन्धन कर बहुमत हासिल कर फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री पद पर बने रहे।

गुलाम मोहम्मद शाह उर्फ जीएम शाह उर्फ गुल शाह 1984 में अपने बहनोई फारूक अब्दुल्ला की सरकार गिराकर मुख्यमंत्री बने। जीएम शाह 2 जुलाई 1984 को पार्टी के 12 विधायकों के साथ नेशनल कांफ्रेंस से दलबदल कर फारूक अब्दुल्ला की सरकार गिरा दी, जीएम शाह ने 26 सदस्यीय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस विधायक दल से हाथ मिलाया और मुख्यमंत्री बन गये। मुख्यमंत्री बनने के बाद जीएम शाह ने एक ऐसा निर्णय लिया, जिसने कश्मीरी पण्डितों और मुस्लिमों के बीच नफरत की आग में तेल डालने का काम किया। दरअसल जीएम शाह ने घोषणा की थी कि जम्मू के न्यू सिविल सेक्रेटेरिएट एरिया में एक पुराने मंदिर को गिराकर भव्य शाही मस्जिद बनवाई जाएगी। गुलाम मोहम्मद शाह के फैसले के विरोध में कश्मीरी पण्डितों ने प्रदर्शन शुरू कर दिये। कश्मीरी पण्डितों के प्रदर्शन को लेकर कट्टपंथियों ने मुस्लिमों को बरगलाना शुरू किया कि इस्लाम खतरे में है। इसका नतीजा यह हुआ कि पूरे जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पण्डितों पर हमले होने लगे। हत्याएं और बलात्कार की घटनाएं आम हो गई। जीएम शाह की सरकार को 12 मार्च 1986 को तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने दक्षिण कश्मीर में सांप्रदायिक 1986 के अनंतनाग दंगों के बाद बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था।

शेष अगले भाग में….

अजय असुर
राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा

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