द्वारा : हितेन्द्र उपाध्याय
मंदिर से मस्जिद
मस्जिद से मंदिर
बैठने वाले परिंदों को
धर्म के ठेकेदारों
ने देख लिया अल सुबह
बोलो ये अपवित्र हो
गए अब
सांझ ढलते ढलते
मेरे शहर में बस लाशें थी
और हवा में धुंआ ही धुंआ
बड़े परिंदे बच्चों को समझा रहे
पेड़ की टहनियों में छुपकर
भूल कर भी मंदिर मस्जिद
मत जाना कभी
ये जहरीली जगह बना दी हैं
इंसानों ने ।