श्री लंका में आज हालात ये हैं की जनता दाने दाने को तरस रही है। देश में भूखमरी के हालात बन गए हैं महंगाई आसमान छू रही है श्री लंका के लोग छोड़ छोड़कर दूसरे देशों को भाग रहे हैं। सरकार दिवालिया होने की कगार पर खड़ी है। बुरी तरह से कर्ज मैं डूबे इस देश पर 51 बिलियन डॉलर का विदेशी कर्ज पहले ही मौजूद है। हालात इतने खराब है कि कागज की कमी के चलते श्रीलंका में सभी परीक्षाओं को अनिश्चितकाल के लिए रद्द करना पड़ा है।
इसके कई कारण है.. लेकिन हालात खराब होने के पीछे सबसे अहम कारण है राष्ट्रवाद के नाम पर बुद्धिस्ट आतंकियों को सरकार का समर्थन जिससे मुस्लिम अल्पसंख्यको के प्रति सरकार की सहमति से नफरत बड़ाई गई और धार्मिक वैमनस्यता फैलाई गई मुस्लिमो को देश के लिए घातक साबित किया गया मुसलमानो की लिंचिंग की जा रही थी मस्जिदों में तोड़ फोड़ की जा रही थी। नमाज़ियों पर फ़ौज की सहायता से गोलियां बरसाई गई, हिजाब/बुर्के को बैन कर दिया गया उनके नरसंहार की तैयारियां की जाने लगी।
इससे श्री लंका मे आर्थिक विकास रुक गया, दूसरे देशो ने advisory जारी की और अपने नागरिकों को श्री लंका जाने से मना किया जिससे टूरिज़्म stop हो गया (इसी तरह की advisory भारत के लिए भी जारी हो चुकी है) नए उधोग नही लगे, बिजनेस ठप्प हो गए।
अघोषित रुप से सरकार की नीति रोजगार के साधन बढ़ाने के बजाए मुस्लिम मुक्त श्री लंका पर काम करना रहा।
कटु सत्य है जिस जगह के भी हालत खराब होते है वँहा से व्यापारी पहले भागता है। आज यही हालत भारत के होते जा रहे है 2014 से अभी तक 35 हज़ार के करीब करोड़पति देश छोड़ चुके है। नए investment नही आ रहे है। बेरोजगारी, महंगाई बढ़ रही है। सरकारी कर्मचारियों को देने के लिए सैलेरी नही है। नोकरिया खत्म हो रही है। सरकार, सरकारी सम्प्पति बेच कर पैसा इक्ट्ठा कर रही है।
नोटबन्दी के बाद से ही छोटे उधोग खत्म होने लगे नए आर्थिक विकास के रास्ते के बजाए सरकार शमशान – कब्रस्तान में लगी रही।
इतिहास गवाह है जिस देश मे भी अंदरूनी अस्थिरता रही वो हमेशा गुलाम बना है।