बहिष्कृत इतिहास के सच्चे किस्से, भाग -1,

दैनिक समाचार

मैनपुरी जिले के थाना जसराना के गाँव देवली में दिनांक 18-11-1981 को दलितों पर आक्रमण करके 24 व्यक्तियों को गोलियों से भून डाला गया। इसमें 3 माह के बच्चे से लेकर 70 वर्ष तक के बूढ़े पुरुष और महिलाएँ भी थीं। इस गाँव में 25 घर जाटव, 40 घर ठाकुर, 15 घर मुसलमान, 10 घर धोबी तथा कुछ घर धानुक और नाइयों के थे।

नरसंहार का कारण दलितों की आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार होने के फलस्वरूप, ईर्ष्या लगती है। 1975 में दलितों को बीस सूत्रीय कार्यक्रमों के अन्तर्गत गाँव सभा की कुछ भूमि आबंटित की गई थी, जिसपर गाँव के कुछ ठाकुर काबिज थे, वे उसे छोड़ना नहीं चाहते थे। पंचम सिंह ने कहा था, “जो इस जमीन को जोतेगा उसे ज़िन्दा नहीं रहने दिया जायेगा।”

इस गाँव में लटूरी सिंह जाटव के यहाँ लकड़ी के सामान, दरवाज़े, बैलगाड़ी के पहिये बनते थे। इसलिए उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी। दो माह पूर्व राजू उर्फ़ भग्गू ठाकुर ने लटूरी सिंह से 5000 रुपये लेकर भूमि का बैनामा करने का इक़रारनामा लिख दिया और उसके बाद में भूमि का बैनामा करने को कहा था। जब लटूरी सिंह ने बैनामा करने को कहा तो राजू नाराज़ हो गया। ठाकुरों में बात फैली कि ठाकुर की भूमि जाटव लेगा तो इससे ठाकुरों की बेइज्जती होगी।

बताया गया कि डेढ़ साल पहले पंचम सिंह के घर पर थान सिंह नामक डकैत से पुलिस दबिश में 300 कारतूस, दो रायफ़लें, पिस्तौल, बड़ी टार्चे बरामद हुई थीं। डकैत राधे और सन्तोषा भाग निकले थे। पुलिस ने कुछ दलितों पर दबाव डालकर इसका गवाह बनाया था। राधे ने धमकी दी थी कि जो इसमें गवाही देगा वह परिणाम भुगतेगा। किन्तु पुलिस के दबाव से यहाँ के दलितों ने गवाही दी थी।

18-11-1981 ई० को साढ़े चार बजे शाम से 15-20 व्यक्ति ढूंढ-ढूंढकर, बस्ती में जो भी मिला, गोलियों से भून दिया गया 24 मृतकों में 14 परिवारों में कोई भी नहीं बचा। मृतकों के अतिरिक्त 7 व्यक्ति घायल होकर अस्पताल में थे। उनमें एक आशिक अली भी था। उसने बताया कि पड़ोस से बीड़ी लेने आया था, जाति का मुसलमान है, तब छोड़ दिया गया। 18 नवम्बर को छः बजे शाम तक जो मिला मार डाला गया। लटूरी सिंह के घर से रुपये तथा गहने लूटे गए। लटूरी सिंह के परिवार के 8 व्यक्ति मारे गए। चूंकि वह बाहर गया था इसलिए बच गया।

इन डकैतों में पंचम सिंह का भतीजा राधे सिंह, संतोष सिंह, कप्तान सिंह आदि 10 लोग देवली गाँव के तथा दो बाहर के थे। इन्हें पहचाना गया। कुछ बच्चे औरतें छिपकर किसी तरह बच गईं। दुस्साहस देखिए कि, 6 बजे के बाद चले गए। पंचम सिंह के घर पर खाना खाया। 9 बजे फिर घटना स्थल पर आए। सभी मृतकों को देखा, मरे हैं या नहीं। वहीं 6 औरतें मिल गई इनके कपड़े, गहने उतरवाकर नंगा खड़ाकर गोलियों से भूनने जा रहे थे कि किसी ने आवाज़ दी जिसकी आशंका से वे भाग गए।

इस घटना में थाने की पुलिस की अभियुक्तों से मिली भगत मालूम होती थी। क्योंकि 24 लोगों की मृत्यु होने के बाद भी घटना के 18 घंटे बाद पुलिस मौके पर पहुंची थी और घटना के 2-3 दिन पूर्व पुलिस सब इंस्पेक्टर पंचम सिंह के घर पर कई घंटे रहा और उसके दो दिन पूर्व छत्रपाल जाटव देवली की बन्दूक़ थाने में जमा करा ली गई थी।

घटना की सूचना पाकर राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी घटनास्थल पर गए। विश्वनाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री थे। मृतकों को पाँच-पाँच हजार रुपए दिए गए, जबकि उसी समय बेहमई में मारे गए ठाकुर परिवार के मृतकों को बीस-बीस हजार रुपये मुआवजा दिया गया। सरकार की उदासीनता से इस हृदय विदारक घटना में कुछ नहीं हो पाया। यह घटना जातीय संघर्ष था, जबकि श्री वी०पी० सिंह ने इसे डकैती बताया था। बताया गया, जाते समय डकैत मुख्यमंत्री जिन्दाबाद के नारे लगा रहे थे। #आरपीविशाल।

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