इस ब्लॉग में एक और अहम मुद्दे पर चर्चा की गई है। बात समझने में आसानी हो इसलिये पहले एक कहानी पढ़िये।
पुराने समय की बात है। एक अच्छा-भले और गोरा-चिट्टे आदमी का रंग बदलकर काला हो गया। उसने कई डॉक्टरों को दिखाया, जांचें करवाई लेकिन सब नॉर्मल; दवाइयां लीं, स्किन फेयरनेस ट्रीटमेंट लिया मगर कुछ फायदा नहीं हुआ उल्टे दवाइयों के रिएक्शन से कुछ नई बीमारियां पैदा हो गईं। परेशान होकर उसने एलोपैथिक ट्रीटमेंट बंद कर दिया।
उसे किसी ने कहा कि बुरी नज़र लग गई है, किसी ने कहा बुरी रूहों का साया है। उसने तावीज़ बनवाए और दम -झाड़ भी करवाया, लेकिन उसका नतीजा भी कुछ नहीं निकला।
सुकून की तलाश में वो अपने पुश्तैनी गाँव चला गया। गाँव में एक पुराने हकीम साहब रहते थे जिनके परिवार के साथ उसके बाप-दादा के समय से अच्छी प्रीत थी। एक दिन वो आदमी हकीम साहब के दवाख़ाने में चला गया। हकीम साहब को अपना दुखड़ा सुनाया। हकीम साहब के लिये यह एक चैलेंजिंग और दिलचस्प केस था।
हकीम साहब ने उस आदमी से कहा, अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालकर बताओ जब तुम्हारा रंग बदलकर काला हुआ उससे पहले क्या तुम किसी जगह पर गये थे? क्या तुमने रूटीन से हटकर कोई चीज़ खाई या पी थी?
उस आदमी ने काफ़ी देर तक सोचा और उसके बाद बोला, जहाँ तक मुझे याद पड़ता है उसके मुताबिक़ मैं जंगल में गया था। वहाँ मैंने एक मोर का शिकार किया था और उसका गोश्त खाया था। हालांकि ऐसा मैंने पहले भी कई बार किया था।
हकीम ने कुछ जड़ी-बूटियों का पाउडर मिलाकर दवाई की कुछ पुड़िया बनाई। माजून और ख़मीरा दिया और एक महीने बाद वापस आने को कहा।
उस आदमी ने दवाइयों का इस्तेमाल किया, हकीम साहब के बताए हुए परहेज़ की पाबंदी की। एक महीने बाद वो आईना देखकर हैरान हो गया। उसका रंग फिर से गोरा हो गया था। वो शुक्रिया अदा करने और कारण जानने के लिये हकीम साहब के मतब (दवाख़ाने) की ओर भागा।
हकीम साहब ने कहा, मोर साँप खाता है। हो सकता है कि तुमने जिस मोर का गोश्त खाया, उसके अंदर साँप के ज़हर का थोड़ा-बहुत असर चला गया हो। यही सोचकर मैंने ज़हर का असर ख़त्म करने वाली दवाइयां तुम्हें दी। अल्लाह का शुक्र है जिसने मुझे हिकमत का इल्म दिया और उसके ज़रिए तुम्हें शिफ़ा दी।
अब बात मुस्लिम समाज की बदहाली की।
◆ कभी सरबुलंदी के शिखर पर रही यह क़ौम आज ज़िल्लत और रुस्वाई की शिकार है। इसके वजूद पर सवाल उठाया जा रहा है। इसकी जीवन-शैली और खान-पान को लेकर विवाद पैदा किये जा रहे हैं। इसकी धार्मिक आस्थाओं और तौर-तरीकों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह क़ौम फ़िज़ूल के मुद्दों में उलझी है।
◆ कोई अतीत की शानो-शौकत को याद कर रहा है तो कोई जिन्नागिरी करके अलग पॉलिटिकल दुकान में अपना इलाज तलाश रहा है। पढ़े-लिखे दानिश्वर लोग आधुनिक सुविधाओं का उपयोग-उपभोग करते हुए अपने आलीशान ड्राइंग रूम में बैठकर “चिंता” कर रहे हैं।
◆ देर रात तक चाय की होटलों बैठने वाले लोगों को कोसने वाले लोगों ने क्या कभी सोचा कि ये लोग किन समस्याओं से मुंह चुराने के लिये देर रात को घर जाते हैं?
हमारी क़ौम समस्या की जड़ की तरफ़ ग़ौर नहीं कर रही है। कुछ दिन बाद जब माहौल नॉर्मल हो जाए, तब हम सर जोड़कर बैठेंगे। समस्या की जड़ और उसके समाधान के लिये ग़ौर-फ़िक्र करेंगे। जोधपुर के लोगों के साथ रूबरू बैठकर चाय पर चर्चा करेंगे और जोधपुर से बाहर वाले लोगों के साथ ऑनलाइन वीडियो मीटिंग करेंगे, इं-शा-अल्लाह! अगर आप इस फ़िक्र के साथ जुड़ना चाहें तो प्लीज़ हमारे नम्बर पर पर्सनल में व्हाट्सएप पर सम्पर्क करें क्योंकि सबकी कॉल अटैंड करना हमारे लिये मुमकिन नहीं है।