बहिष्कृत इतिहास के सच्चे किस्से भाग-2,

दैनिक समाचार

आंध्रप्रदेश के गुन्दुर जिले के सुन्दुर गाँव में 29 दलित सवर्ण रेड्डियों के हाथों मौत के घाट उतार दिए गए थे। बात 6 अगस्त, 1991 है जब दलितों पर हमले में त्रिशूलों का प्रयोग किया गया था। यह भयानक घटना गाँव में पुलिस की मौजूदगी में सवर्णों के हाथों हुई।

बीते चुनाव में क्षेत्र की एक आरक्षित सीट घोषित होने के कारण पहले से ही वहां तनाव मौजूद था। स्थिति उस समय खराब हुई जब सिनेमा हाल में एक दलित और एक सवर्ण नौजवान के बीच बहस हो गई । कारण यह था कि दलित छात्र का पैर रेड्डी नौजवान से छू गया था। दलित लड़के ‘रवि’, जो पोस्ट ग्रेजुएशन का छात्र था, घूसों से मारा-पीटा गया।

बाद में रवि जब भाग निकला तो रेड्डियों ने उसके पिता भास्कर राव (एक स्कूल के हेडमास्टर) को पकड़ लिया और उन्हें बुरी तरह पीटा गया और तीन दिन तक कैद में रखा गया। गाँव के दलितों ने मास्टर को राय दी कि पुलिस में शिकायत दर्ज कराएँ, परन्तु उन्होंने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह विवाद आगे नहीं बढ़ाना चाहते ।

इसके बाद रेड्डी जाति के लोगों ने दलितों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया, क्षेत्र में तनाव बढ़ गया। राशन की दुकान, तालाब और स्कूल सब कुछ रेडियों के क्षेत्र में था, इसलिए इन सुविधाओं तक पहुँच असंभव हो गई। पुलिस ने हस्तक्षेप किया और 16 से 24 जुलाई तक गाँव में धारा 144 लागू कर दी गई।

5 अगस्त को एक मुस्लिम राशन दुकानदार याकूब के यहां से दलितों ने राशन लिया तो रेडियों ने उसपर त्रिशूल से हमला कर दिया। इसी दिन एक दलित युवक निजन पाल पर छेड़-छाड़ का दोष लगाते हुए हमला किया और उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया । जब सवेरे दस बजे कुछ दलित, युवक की रिहाई के लिए, थाने गए तो पुलिस ने तमाम दलित मर्दों को आदेश किया कि वह अपने-अपने घर से बाहर निकल जाएं।

जब उन्होंने घर छोड़ दिया तो रेडियों ने (जो गाँव को चारों ओर से घेरे हुए थे उनपर त्रिशूल और चाकुओं से हमला कर दिया और 24 दलितों का कत्ल कर दिया। शवों को कुछ टुकड़े करके खेतों में फेंक दिए तो कुछ बोरों में भरकर नदी में फेंक दिया गया। पुलिस वारदात के मौके पर मूक दर्शक बनी रही और घटना को 30 घण्टे तक दबाए रखा गया। एक महिला 40 मील पैदल भागकर कलेक्टर को सूचना दी तब जाकर बात सामने आई।

पुलिस ने 29 अगस्त तक केवल दस शव वापस किये थे और सरकारी दस्तावेजों में आज भी केवल 8 हत्याऐं दर्ज है जबकि घटना के 6 दिन बाद 12 अगस्त 1991 को नई दिल्ली से छपे इंडियन एक्सप्रेस में 29 दलित गांववासियों के हत्या की बात छपी थी। इतना ही नहीं घटना के लिए जिन 219 लोगों को आरोपित बनाया गया था 2007 में विशेष अदालत ने 163 को सुबतों के अभाव में बरी किया बाक़ी 21 लोगों को उम्रकैद और 35 लोगों को सश्रम करवास की सजा सुनाई थी व प्रत्येक व्यक्ति पर 2000 का जुर्माना लगाया।

बाद में आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के जज एल नरसिम्हा रेड्डी ने सबूतों के अभावों का हवाला देकर सभी आरोपियों को बरी कर दिया। पीड़ित पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तबतक सुनवाई हुई 35 आरोपियों को मृत्यु हो चुकी थी। उससे आगे सुप्रीम कोर्ट ने भी सबूतों के अभाव में सभी को बरी करते हुए निचली अदालत के फैसले को यथावत रखा। निष्कर्ष यह निकला कि इतनी मौतों का कोई जिम्मेदार नहीं था। वहां से कुल 200 दलित परिवार गाँव छोड़कर पलायन कर गए अब रेड्डियों का वहां एकछत्र राज व इतिहास है। #आरपीविशाल।

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