,,,,, मुनेश त्यागी
शासक वर्ग द्वारा आजकल धर्मांधता, अंधविश्वास और पाखंडों को बढ़ावा दिया जा रहा है, वैज्ञानिक संस्कृति को तिलांजलि दे दी गई है, लोगों में अज्ञानता का माहौल पैदा किया जा रहा है और उन्हें देवी देवता और भगवान के नाम से डराया जा रहा है। इस विषय में स्वामी पेरियार ने मनुष्य को एक सभ्य मानव बनाने की बात की है और इस विषय में अपने विचार व्यक्त किए हैं। उनका कहना है कि इस संसार में कोई अलौकिक शक्ति नहीं है, धर्म तर्क की कसौटी पर खरा उतरे, हमारा धर्म मानवता का कल्याण करे, उसका विनाश न करे।
उन्होंने कहा है कि जातिवाद देश को तबाह करने वाला है, इसके रहते हमारा देश उन्नति नहीं कर सकता। वे कहते हैं मनुष्य ने ही देवी देवताओं और ईश्वर की रचना की है। वे कहते हैं कि धर्म मानव को सच्चाई और ज्ञान के मार्ग पर ले जाए। उनका कहना है कि गीता और कृष्ण के रहते भारतीय समाज में जातिवाद का अंत नहीं होने वाला। उन्होंने लोगों का आह्वान किया है कि वे अपने व्यवहार और आचरण को मानवीय बनाएं। उन्होंने भेदभाव रहित समाज की कामना की है। उनका मानना है कि सभी मनुष्य सभ्य मनुष्यों की तरह रहें। वे यह भी कहते हैं कि सभी मनुष्य को अपने परिश्रम का फल मिलना चाहिए और सभी लोग बुद्धि वादी और मानवतावादी बनें। उन्होंने लोगों का आह्वान किया है कि समाज को मूर्ख बनाने वाले धर्म शास्त्रों से दूर रहें। आइए, उनके विचारों में के बारे में थोड़ा विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं, उनके विचारों पर चलकर ही एक बेहतर भारत का निर्माण किया जा सकता है,,,,
,,, वे लोग जो धन, दौलत, पद, प्रतिष्ठा के लिए ही भागते रहते हैं और सामाजिक कार्य नहीं करते,वे समाज में टीबी रोग के समान ही हैं,ये सब असामाजिक तत्व है।
,,,,मनुष्य जब मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो उसका यहां-वहां यानी संसार से कोई संबंध ही नहीं रहता।
,,, प्रत्येक धर्म को,,, धन, दौलत और प्रचार ही जीवन देते हैं उनके अतिरिक्त कोई देवी या अलौकिक शक्ति नहीं, जो धर्म को जिंदा रख सके।
,,, समाज के कुछ चरित्रहीन और तथाकथित बड़े लोगों के साथ साथ अखबार ही धार्मिक प्रचार करके लोगों को मूर्ख बना रहे हैं,
,,, जो धर्म प्रयोग और तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरता तो फिर संसार में या संसार के लिए उसकी जरूरत ही क्या है?
,,,, हमें एक ऐसा धर्म ग्रहण कर लेना चाहिए जो मानवता की भलाई में सहायक सिद्ध हो,
,,,, समय और स्थान के अनुसार विकास होते रहते हैं विकास और परिवर्तन बुद्धि के अनुसार ही होते हैं, धार्मिक गुरु या पंडित की भविष्यवाणी पर आधारित नहीं होते।
,,, राष्ट्र को या देश को जातिवाद ने ही तबाह किया है।
,,,, ब्राह्मणों ने हमें अनंत काल तक मूर्ख बनाने का षडयंत्र रचा, जिसके परिणाम स्वरूप हमें आर्य धर्म का गुलाम बनाया गया और उन्होंने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर, ईश्वर और देवी देवताओं की रचना की।
,,,, धनवान लोग, शिक्षित लोग, व्यापारी लोग और पुजारी वर्ग जातिवाद, धर्म शास्त्रों एवं ईश्वर से लाभान्वित होते हैं। इनकी वजह से ही वे मुसीबतों से बचते हैं और उच्च पद प्राप्त करते हैं।
,,,, नेता लोगों को जनता की संचित धन राशि पर मौज मस्ती करने का कोई अधिकार नहीं है। लोगों का यह हक है कि वे इसका हिसाब मांगे और नेताओं को भी इसमें कोई शंका या आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
,,,, धर्म की प्रवृत्ति प्रेम का पोषण और दूसरों की सहायता करने वाली होनी चाहिए, धर्म का स्वभाव मनुष्य को सच्चाई के मार्ग पर ले जाने वाला होना चाहिए।
,,,, याद करो कि धर्म और राजनीति ने ही गांधी वध का नेतृत्व किया था जब तक यह दोनों नहीं बदलते और मानवीय नहीं हो जाते तब तक मानव जीवन सुरक्षित नहीं रह सकता।
,,,, हम समस्त देवताओं को चुनौती देकर पूछ रहे हैं कि उन्होंने लोगों की भलाई के लिए क्या किया है?
,,,, ब्राह्मण आपको भगवान के नाम पर मूर्ख बनाकर अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है और स्वयं आरामदायक जीवन जीता है और तुम्हें अछूत कहकर निंदा करता है।
,,,, जब तक गीता और कृष्ण है तब तक जातिवाद का अंत होने वाला नहीं है।
,,,, जातियां बिल्कुल नहीं होनी चाहिए, धर्म के आधार पर कोई भी उच्च या नीच नहीं पुकारा जाना चाहिए, हमारे ऐसा कहने में क्या गलत है?
,,,, हमारे देश के लोगों ने शिष्टता का महत्व खो दिया है क्योंकि हमारी आदत पत्थर की मूर्ति या देवता की प्रशंसा करने की है और मनुष्य पशु की तरह यह सारी बातें मान रहा है।
,,, हमें बुद्धिमान व्यक्ति की तरह व्यवहार और आचरण करना चाहिए, जो हमारे आचार व्यवहार को मानवीय बनाएं ,यही प्रार्थना का सार है।
,,, धर्म के नाम पर भंडारे में खाना बांटने से गरीबी दूर नहीं हो सकती।
,,,, हमें भेदभाव रहित समाज चाहिए ।
,,,, दक्षिण भारत के सभी मुसलमान द्रविड़ हैं।
,,, अगर देवी देवता ही हमें निम्न जाति बनाने का मूल कारण है तो ऐसे देवताओं को नष्ट कर दो।
,,,, हमारे देश को आजादी मिल गई, तभी मानना चाहिए, जब ग्रामीण लोग देवता ,धर्म, जाति और अंधविश्वास से छुटकारा पा जाएंगे।
,,,, अगर हम निष्ठावान और परिश्रमी हैं फिर चाहे अल्प संख्या में ही क्यों न हो, फिर भी हम लोगों की सहायता करने की काबिलियत रखते हैं।
,,,, एक आत्मसम्मान व्यक्ति तर्क की कसौटी पर यह निश्चित करता है कि अमुक बात अच्छी है या बुरी। तर्क बुद्धि उसे सच खोजने में सहायता करती है किसी महात्मा ,देवता ऋषि, पुराण का कथन सच खोजने में हमारी मदद नहीं करते।
,,,, हम गुलाम बने रहने को तैयार नहीं है हमारा एकमात्र लक्ष्य इसी जीवन में सभ्य मनुष्य की तरह जीना चाहते हैं यही हमारा अंतिम उद्देश्य है।
,,,, समाजसेवा ही व्यक्ति का सर्वोच्च और सर्वप्रथम कर्तव्य है।
,,,, दुनिया में कोई भी पुरुष नहीं है या कोई भी व्यक्ति नहीं है जो अपने द्वारा किए गए परिश्रम का फल ने चाहे।
,,,, यह मजदूर ही है जिसने संसार को बनाया है ,संसार का अस्तित्व उसी की मेहनत का फल है परंतु दूसरी तरफ देखें तो यह वही मजदूर है जो चिंताओं, मुसीबतों और दुखों से ग्रसित है।
,,,, आप सभी धोखाधड़ी वाले काम बंद कर दो तथा बुद्धि वादी और मानववादी बनने का प्रयास करो।
,,,, समाज में पूंजीपतियों का होना ही गरीबी का मुख कारण है अगर समाज में धनवान लोग नही होंगे तो गरीबी भी नहीं होगी।
,,,, अगर हम मंदिरों की आय और उनकी संपत्ति को नए उद्योग धंधे स्थापित करने में लगाने में कामयाब हो जाएं तो ना तो भिखारी होंगे ,ना अशिक्षित होंगे ना कोई गरीबी रेखा के नीचे ही रह पाएगा और समानता पर आधारित समाजवादी समाज की स्थापना हो जाएगी।
,,,, आर्य धर्म के मूल में स्वर्ग-नरक, वर्णाश्रम और जातियां भेद के अतिरिक्त है ही क्या?
,,,, मूर्तियां और वेद जो अज्ञानता फैलाते हैं उपनिषद ,मनुधर्म और अन्य साहित्य जो लोगों को मूर्ख बनाते हैं और मूड बनाए रखना चाहते हैं, उन्हें समाज से दूर रखना होगा।