क्या हमारा काम सिर्फ सत्ताधारी पार्टी की आलोचना करना है।
भाजपा के अलावा बाकी की राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय ही जनता के बीच सक्रिय होती हैं

दैनिक समाचार

लेकिन भाजपा के सहयोगी संगठन हमेशा सक्रिय रहते हैं

भाजपा ने सैंकड़ों संगठन बनाए हुए हैं

उसके पास हज़ारों सरस्वती शिशु मंदिर हैं

एकल विद्यालय हैं शबरी विद्यालय हैं

आईएएस आईपीएस की ट्रेनिंग के लिए संस्थान हैं

उसके पास फौजी ट्रेनिंग देने वाले भी संस्थान हैं

भारत की किसी भी राजनीतिक पार्टी का एक भी स्कूल देश में चलता है क्या

सभी पार्टियां तो सत्ता में रह चुकी हैं आपने क्यों नहीं जनता के बीच ऐसे संस्थान खड़े किए जहां से आप की विचारधारा वाले बच्चे और नौजवान निकलते

आज भारत की बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीएसआर फन्ड का 90% से ज्यादा पैसा भाजपा आरएसएस और उसके सहयोगी संगठन ले रहे हैं

भाजपा को जिताने के लिए इन संगठनों संस्थानों में लाखों कार्यकर्ता दिन-रात काम कर रहे हैं

यह लोग हिंदू मुस्लिम वाली मानसिकता नफरत फैलाने वाली मानसिकता फैलाने के लिए ही काम करते हैं

और 5 साल बाद भाजपा के लिए चुनाव में जीतने का रास्ता बनाते हैं

भाजपा का एक पन्ना प्रभारी होता है

नौकरियों से रिटायर्ड लोगों को इस काम में लगाया जाता है

वोटर लिस्ट के एक पन्ने पर जितने मतदाता होते हैं उन सब से वह संपर्क करता है

उनके घर जाता है चाय पीता है हिंदू संस्कृति पर कितना खतरा है मुसलमान कितना बड़ा खतरा है ऐसी डराने वाली फर्जी बातें करता है

और चुनाव के समय भाजपा के लिए वोट डलवाता है

भाजपा के अलावा किसी पार्टी ने कभी मतदाताओं से बिना चुनाव के संपर्क किया है

यह विचार जयप्रकाश नारायण ने अपनी किताब में लिखा था इसे उन्होंने मतदाता मंडल कहा था

बाकी किसी पार्टी ने उस पर अमल नहीं किया भाजपा ने कर लिया

जिस दिन भाजपा की सरकार बनती है वे अगला चुनाव जीतने की रणनीतियां बनाने उस पर काम करने में लग जाते हैं

याद कीजिए जब भाजपा विपक्ष में थी तो प्याज का रेट बढ़ने पर गैस का रेट बढ़ने पर या पेट्रोल का रेट बढ़ने पर किस तरह यह लोग सड़कों पर उतर कर धरने प्रदर्शन करते थे

आज महंगाई बढ़ने पर या किसी भी मुद्दे पर आपको कोई राजनीतिक पार्टी सड़क पर दिखाई देती है क्या

खाली भाजपा को दोष देने से आप चुनाव नहीं जीत पाएंगे

रणनीति बनिये मेहनत कीजिए सक्रिय बनिये सड़क पर उतरिये जनता के बीच जाइए

हमारी विपक्षी राजनीति की एक दिक्कत यह भी है कि आज ज्यादातर ऐसे नेता है जो (वंश परंपरा) या एक बार कुर्सी मिलने के बाद अपनी-अपनी पार्टियों के प्रमुख बने हुए हैं

जो भी हो इस हालत का नुकसान भारत के आदिवासी, दलित, मुसलमान, गरीब, छात्र, नौजवान, नौकरी पेशा मजदूर उठा रहे हैं।

इनकी हालत सचमुच बहुत खराब है

और इन पीड़ित तबकों को राजनीति बदलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है
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