तेलंगाना किसान आंदोलन के हीरो – चन्द्र राजेश्वर राव

दैनिक समाचार


स्वतंत्रता सेनानी कम्युनिस्ट नेता कामरेड राजेश्वर राव को पुन्यतिथि पे याद करते हुए ❤️ ❤️
चंद्र राजेश्वर राव भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे . 6 जून 1914 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिला के मंगलपुरम गाँव में एक संपन्न किसान परिवार में जन्मे राजेश्वर राव ने MBBS की शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी और उच्च शिक्षा विशाखा-पट्टनम के एक मेडिकल कॉलेज में प्राप्त की थी । पेशे से डॉक्टर राजेश्वर राव 17 बरस की उम्र में साल 1931 को भारत की आजादी आंदोलन में शामिल होकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) में शामिल हुए । असल में ये वो दौर था जब भगत सिंह जैसे साम्यवादी क्रांतिकारियों के प्रभाव में आकर देशभर के युवा HSRA के पार्टी कार्यक्रम ” जमीदारी और पूंजीवाद ” के खात्मे आदि से सहमत होकर देश की आजादी के बाद भारत का भविष्य समाजवाद में तलाश रहे थे और भगत सिंह लोकप्रियता के मामले में गांधी के बराबर थे । भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव की फांसी के बाद अजय घोष सहित उनके सभी साथी भी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए और सामंतवाद और जमींदारी प्रथा के खिलाफ एक समाजवादी मुल्क बनाने के लिए जनता के बीच जाकर उनको संगठित किया .

भारत की आजादी नजदीक थी . कांग्रेस देश में पूंजीवाद स्थापित करना चाहती थी और भारत के बड़े बड़े सामंतों का समर्थन कर रही थी । देश के लाखों भूमिहीन किसानों और मजदूरों की हालत गुलामों जैसी थी । इसलिए 1946 में आंध्रप्रदेश के तेलंगाना में किसानो ने बड़े बड़े सामंतों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष चलाया । तेलंगाना क्षेत्र के सामंती प्रभुओं के खिलाफ इस किसान विद्रोह का सी. राजेश्वर राव और उनके साथियों ने नेतृत्व किया जो 1951 तक हैदराबाद राज्य के खिलाफ़ लड़ा गया ।
बाद में यह आंदोलन निजाम उस्मान अली खान, असिफ़ जह VII के खिलाफ एक लड़ाई में तब्दील हो गया । बेशक शुरुआत में इस आंदोलन का मामूली लक्ष्य बंधुआ श्रम के नाम पर बड़े बड़े सामंती प्रभुओं द्वारा अवैध और अत्यधिक शोषण को दूर करना था और सबसे गंभीर मांग उन किसानों के सभी ऋणों को माफ करने के लिए थी जिसमें सामंती प्रभुओं द्वारा बेइमानी से छेड़छाड़ की गई थी ।
तेलंगाना के चिट्गांव में स्थानीय कम्युनिस्टों के इस संघर्ष को इतिहास में जगह मिली. नयी पीढ़ी के नेताओं में चंद्र राजेश्वर राव के साथ ही पुछलपल्ली सुंदरैया , ईएमएस नंबुदिरापाद, एके गोपालन और बीटी रणदीवे जैसे कम्युनिस्ट नेताओं ने उभरना शुरू कर दिया .
” तेलंगाना सशस्त्र किसान संघर्ष ” के दौरान राजेश्वर राव के नेतृत्व में किसानों ने क़रीब 3,000 गांवों को निजाम के अधिकार से मुक्त कराया गया और उसका संचालन समाजवादी और साम्यवादी गांवों की तरह किया गया . देश के प्रथम किसान संगठन ” अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के बैनर तले चले इस हथियारबंद किसान आंदोलन ने राव को देश भर में चर्चित कर दिया . राजेश्वर राव 1954 और 1955 में अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने । दिसंबर 1964 में उन्हें सीपीआई का राष्ट्रीय महासचिव चुना गया . चंद्र राजेश्वर राव को बीटी रणदीवे की जगह पार्टी प्रमुख की जगह मिली . कम्युनिस्टों के नेतृत्व में तेलंगाना आंदोलन सामंती प्रभुओं से 3000 से ज्यादा गांवों में जमीनों का कब्जा और अधिकार लेने में सफल रहा और 10,00,000 ( एक लाख ) एकड़ कृषि भूमि भूमिहीन किसानों को वितरित की गई। सामंती निजी सेनाओं से लड़ने वाले संघर्ष में लगभग 4000 किसानों ने अपनी जान गंवा दी।

सी. राजेश्वर राव के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी ने किसानों को निजाम और जागीरदारों के खिलाफ गुरिल्ला रणनीति का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया और लगभग 3000 गांव और उनका लगभग 41000 किमी 2) एरिया किसान शासन के अधीन आए . अंग्रेजों के दलाल मालिकों को या तो मार दिया गया था या उन्हें बाहर निकाला गया था और भूमि को फिर से वितरित किया गया था । इन विजयी गांवों ने अपने क्षेत्र को प्रशासित करने के लिए सोवियत मिरस की याद दिलाते हुए संवाददाताओं की स्थापना की। इन सामुदायिक सरकारों को क्षेत्रीय रूप से एक केंद्रीय संगठन में एकीकृत किया गया था। विद्रोह का नेतृत्व किसान सभा के बैनर तले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने किया और
आंदोलन के सबसे आगे जाने वाले प्रसिद्ध नेताओं में राजेश्वर राव के इलावा रवि नारायण रेड्डी, मददीकायला ओमकर, मददिकाला लक्ष्मी ओमकर, पुचलापल्ली सुंदरय्या, पिल्लिपल्ली पापीरेड्डी, सुड्डाला हनमांशु, बोम्मगानि धर्म भिक्षम, मखदूम मोहिउद्दीन, हसन नासिर, मंत्राला आदि रेड्डी, भीमरेड्डी नरसिम्हा रेड्डी, नंद्यला श्रीनिवास रेड्डी, मल्लु वेंकट नरसिम्हा रेड्डी, लंकाला राघव रेड्डी, कुकुडल जंगारेड्डी, अरुथला रामचंद्र रेड्डी, कृष्णा मूर्ति, अरुथुला कमलादेवी और बिकुमल्ला सत्यम थे।
आंदोलन 1951 में तब समाप्त हुआ जब भारतीय सेना ने नेहरू के आदेश पर किसानों का नरसंहार किया और 4 हजार से ज्यादा कम्युनिस्ट नेता और इससे ज्यादा आम किसान मारे गए .
तेलंगाना का सशस्त्र आंदोलन थम गया . पार्टी के नेताओं में सशस्त्र आंदोलन को जारी रखने या बंद करने के लिए लंबी और व्यापक चर्चा हुई. पार्टी के चार नेताओं का समूह मास्को गया और इस मामले में स्टालिन से सलाह ली गई.

इस समूह में एम. बासवापुनैया, अजॉय घोष, एस.ए. डांगे और चंद्र राजेश्वर राव शामिल थे. सोवियत संघ से लौटने के बाद सशस्त्र आंदोलन की समाप्ति की घोषणा की गई और इससे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का 1952 के आम चुनाव में भागीदारी का रास्ता साफ़ हुआ. 1952 के आम चुनाव के दौरान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भारत का मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरी .

1957 में केरल के चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जीत हासिल करने में कामयाब रही. ईएमएस नंबूदरीपाद के नेतृत्व में सरकार बनी- यह वैश्विक स्तर पर दुर्लभ उदाहरण था जब कहीं कम्युनिस्टों की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार बन रही थी.
चंद्र राजेश्वर राव को 1974 में ऑर्डर ऑफ लेनिन पुरुस्कार से भी सम्मानित किया गया . आज के दिन 9 अप्रैल 1994 को इस महान स्वतंत्र सेनानी , क्रांतिकारी किसान नेता का देहांत हो गया .
ऐसे समय में जब मोदी सरकार देश में कार्पोरेट समर्थक तीन कृषि कानून लेकर आई है और किसानों की जमीनों को अंबानी अडानी जैसे चंद मुट्ठीभर पूंजीपतियों के हवाले करना चाहती है . तेलंगाना का किसान संघर्ष और कामरेड राजेश्वर राव का किसानों के लिए किया गया ऐतिहासिक योगदान किसान आंदोलन के लिए मार्गदर्शक रहेगा । बेशक हमारा रास्ता हिंसा का नहीं है और किसान मोर्चा शांतिपूर्वक ऐतिहासिक आंदोलन लड़ रहा है फिर भी राजेश्वर राव का योगदान किसान आंदोलनों में हमेशा याद किया जाएगा । आज 9 अप्रैल चंद्र राजेश्वर राव को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि . लाल सलाम ❤️
कामरेड राजेश्वर राव अमर रहे ❤️❤️
किसान आंदोलन जिंदाबाद ❤️❤️❤️

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