करतार सिंह सराभा जिन्हें भगत सिंह अपना गुरु मानते थे, द्वारा 15 जुलाई 1913 को ग़दर पार्टी की स्थापना (दूसरे लोग भी थे) से ही शुरू हुई, मेरी अभी तक ये ही समझ थी. इंडियन एक्सप्रेस में आज छपे इस शानदार लेख से, जिसे सभी ने पढ़ना चाहिए, उसमें सुधार हुआ.
दरअसल, ग़दर पार्टी से भी पहले एक संगठन बना था, ‘पेसिफिक कोस्ट हिंदुस्तान एसोसिएशन’. इसके संस्थापक सदस्यों में थे, पांडुरंग सदाशिव खंखोजे और विष्णु गणेश पिंगले. करतार सिंह सराभा से हुई गंभीर चर्चा के बाद उस संगठन को ग़दर पार्टी में मिला दिया गया. प्रथम विश्व युद्ध छिड़ने के बाद जब करतार सिंह सराभा इंडियन फौज़ में क्रांतिकारी विचारों को फैलाते हुए, फौज को अँगरेज़ हुकूमत के ख़िलाफ़ बगावत करने को मोटीवेट करने जब इंडिया आए और पंजाब में फौजी छावनियों में पार्टी का सन्देश पहुंचा रहे थे तो उनके साथ विष्णु गणेश पिंगले भी रहते थे और वे दोनों भगत सिंह के घर अक्सर आते थे. भगत सिंह के चाचा, किशन सिंह ने उस ज़माने में ग़दर पार्टी के प्रचार के लिए 1000 रु की मदद की थी.
करतार सिंह सराभा को 16 नवम्बर 1915 को 19 साल 5 महीने 21 दिन की उम्र में लाहौर जेल में फांसी हुई. उस दिन उनके साथ ग़दर पार्टी के जिन 6 सदस्यों को फांसी हुई उनमें विष्णु गणेश पिंगले भी थे. कुल 24 ग़दर पार्टी सदस्यों जिन्हें लोग गदरी कहते थे, को फांसी हुई थी. सराभा की उम्र को देखकर जज ने कहा था, आप अंग्रेजी राज के ख़िलाफ़ बगावत का ऐसा गरम भाषण अदालत में दे रहे हैं, सोच समझ कर बोलिए आपको फांसी हो सकती है. अगले दिन का करतार सिंह सराभा का अदालत में दिया गया क्रांतिकारी भाषण और भी ओजस्वी था.
हमारी गौरवशाली क्रांतिकारी विरासत जिंदाबाद