यादव वोट बीजपी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।जिस दिन उसका बड़ा हिस्सा बीजपी से जुड़ गया,उस दिन से न सिर्फ बीजेपी के मनुस्मृति आधारित व्यवस्था वाला हिन्दू राष्ट्र का एजेंडा साकार हो जाएगा बल्कि पिछड़े,वंचितों,दलितों के अधिकार व समाजवाद का कोई नामलेवा नहीं बचेगा। सारी ओबीसी क्रांति एक भ्रांति की तरह खत्म हो जाएगी। अब पिछड़ो के नाम पर जाति आधारित पार्टी बनाकर जो लोग हिस्सा मांग रहे हैं वो नैपथ्य में चले जायेंगे और बीजेपी का उत्तर भारत में कोई प्रतिरोध नही रह जायेगा। यहां पर ये समझना जरूरी है कि यादव स्वभाव व मान्यताओं से पूर्ण सनातन हिन्दू है लेकिन वो हमेशा समाजवादी धारा से जुड़ा रहा है, और 80-90 के दशक से उनका लामबंद होना बहुत हद तक मुलायम व लालू जी के राजनीतिक पटल पर स्थापित होने के कारण हुआ। इस लामबंदी का असर सिर्फ इतना ही नहीं था कि 90 में जनता दल व जनमोर्चा की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने ओबीसी आरक्षण लागू किया, बल्कि पिछड़े, दबे- कुचलो,वंचितों को आज़ादी के बाद वास्तविक आवाज मिली, सामाजिक समरसता व हिस्सेदारी तथा शहरों में फंसा विकास गाँवों तक पहुँचा और हासिये पर पहुँचाये गए अन्य लोग भी मुख्यधारा में आये और अधिकारों व हिस्सेदारी की एक नई बहस शुरू हुई। लेकिन पिछले 5 सालों में जब से उम्र व अन्य कारणों से लालू व मुलायम सिंह की पकड़ कमजोर हुई और उनकी जगह उनकी वंशबेल ने ली, बीजपी को एक मौका मिला इसमें सेंधमारी की। बीजपी के इस सेंधमारी के सफलता के बड़े हद तक जिम्मेदार राजद व सपा का वर्तमान नेतृत्व है जो सामूहिक नेतृत्व को नजरअंदाज कर रहा है व बड़े दृष्टिकोण को साथ लेने में लगातार डर रहा है और लगातार आत्मकेंद्रित और एकाकी होता जा रहा है। अगर देखा जाए तो तथाकथित यादवलैंड में बीजेपी ने जबरदस्त सेंधमारी की और समाजवादी पार्टी को सिर्फ ग़ाज़ीपुर, आज़मगढ़, अम्बेडकरनगर,जौनपुर के अंदर सिमट कर रख दिया।मैनपुरी,कन्नौज,एटा,बदायूं में भाजपा काफी मजबूत हो गयी है,जो खतरे की घण्टी है।
अगर वर्तमान स्थिति देखा जाय तो यादवों का एक बड़ा हिस्सा संपन्न व सत्तासीन सुविधाभोगी हो चुका है।उसे अब ओबीसी आरक्षण कोई बहुत जरूरत नही है,वो जेनेरल में सीधे प्रतियोगिता कर रहा है, व्यापक स्तर पर व्यापार व ठीकेदारी कर रहा है और वो ज्यादा समय तक सत्ता से दूर रहकर अपना बलिदान नही दे सकता क्योंकि बदले उसे सिर्फ अन्य वर्गों (जिनके लिए लड़ रहा है ) द्वारा हकमारी का आरोप ही झेलना पड़ रहा है। अब यादव सपा में सिर्फ नैतिकता या व्यक्तिगत रूप से नेताजी मुलायम सिंह के प्रति सम्मान या पुराने लगाव के कारण ही जुड़ा है। ऐसे में अगर शिवपाल जी बीजेपी के साथ जाते हैं तो यादवों का एक बड़ा हिस्सा तो बीजेपी के साथ नहीं जुड़ जाएगा बल्कि यादव परिवार की फूट का जनमानस में गलत संदेश जाएगा। सिर्फ समाजवादी पार्टी ही नही बल्कि पूरे समाजवादी आंदोलन, पिछड़ो, दलितों,वंचितों के समायोजन व धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई खतरे में पड़ जाएगी। ये समय है सभी समाजवादियों व संविधान,सामाजिक न्याय तथा धर्मनिरपेक्षता में आस्था रखने वाली सभी संस्थाओं व व्यक्तियों की वर्तमान परिस्थितियों में दखल दें समाजवादी पार्टी को सामूहिक नेतृत्व व सबके समायोजन के मार्ग पर वापस लाएं।वरना अंजाम बहुत बुरा हो सकता है,ये अब सिर्फ पार्टी की नहीं,एक विचारधारा के बचाने की लड़ाई है। अखिलेश जी एकात्मवाद से बाहर आएं व विशेषरूप से उनके सलाहकार अपनी नीति,नियत व भाव में समग्रता लाएं। क्योंकि अब उनका भविष्य भी तहस नहस होने के कगार पर है। अगर यादव टूटा तो सपा को बसपा होने में समय नही लगेगा।फिर मायावती जी की स्थिति में अखिलेश जी भी न पहुंच जाएं।समय से हस्तक्षेप करिए और समाजवादी धारा को बचाइए। बिना समाजवादी पार्टी को बचाये संविधान, समाजवाद व धरनिर्पेक्षता को नही बचा सकते। बीजपी व संघ अपने वास्तविक लक्ष्य के करीब है,अखंड हिंदुत्व वाली मनुस्मृति आधारित व्यवस्था की स्थापना का उसका सपना साकार होने के बहुत करीब है।राज्यसभा में भाजपा को बहुमत के लिए 123 सीट चाहिए ,इस समय उसके पास 101 राज्यसभा सांसद हैं और राजग के 117 हो गए हैं। सभी समाजवादी जल्दी चेते व समाजवादी नेतृत्व को इस बड़े खतरे से आगाह करें। पार्टी व विचारधारा के प्रति निष्ठावान बने नेता के प्रति नहीं,यह विचारधारा व पार्टी को बचाने का समय है।
सपा नेतृत्व को हृदय विशालता का परिचय देते हुए गैर यादव पिछड़ी-निषाद, लोधी,शाक्य,कुशवाहा,मौर्य,किसान,प्रजापति,चौहान,विश्वकर्मा,सबिता,राजभर,कुर्मी,साहू,पासी,कोरी,चमार,धोबी,जाट,गुजर जैसी जातियों को मजबूती से सपा के साथ जोड़ने का प्रयास किया जाय।यादव वर्ग को अतिपिछड़ों, वंचितों के प्रति नरमी का रुख अपनाना होगा,बड़े भाई की भूमिका में आना होगा।
सपा नेतृत्व को बिना देरी किये प्रदेश नेतृत्व में बदलाव का निर्णय लेना समीचीन होगा।प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम के भाव-बिचार में न तो कोई आकर्षण है और न कोई प्रभावशालिता है।इनके बोली-भाषा से कार्यकर्ताओं को निराशा व उपेक्षा का ही अहसास होता है।यादव जाति के कमजोर होने से सामाजिक न्याय व समाजवाद की विचारधारा कमजोर होगी और सामंती अत्याचार 70 के दशक से अधिक बढ़ जाएगा।पार्टी नेतृत्व को अब खुलकर सामाजिक न्याय की अम्बेडकरवादी-मंडलवादी पिच पर बैटिंग करना होगा।मण्डल व परशुराम दोनों का मोह कहीं का नहीं छोड़ेगा।मण्डल,कर्पूरी की पिच पर ईमानदारी से खेलना होगा।पार्टी के अंदर जो सामंती व संघीय विचारधारा के हैं,उनकी बेहिचक छँटनी करने व दरकिनार करने में देरी ठीक नहीं है।इस बार ऐसा लग रहा था ब्राह्मणों का बड़ा हिस्सा सपा के साथ आ रहा है,पर क्या हुआ,5% भी ब्राह्मण सपा को वोट नहीं दिया।उनको महत्व देने से अन्य जातियों का वोट दूर हो गया।ब्राह्मणों ने परशुराम का फरसा पकड़ाकर मृगमरीचिका दिखाकर समाजवादी पार्टी को सत्ता से दूर कर दिया।
जब शेर,चिता या लकड़बग्घा जानवरों का शिकार करने को आतुर होता है तो वह पहले मजबूत को जानवरों के झुंड से अलग कर उसका शिकार करता है,जिससे उसके शिकार करने में आसानी हो जाती है।बर्तमान में ठीक वैसी ही कमोबेश स्थिति पिछड़ों,दलितों की बनी हुई है।सच कहने में कोई गुरेज नहीं कि जानवरों के झुंड में यादव ताकतवर व मजबूत है।संघ व भाजपा तरह तरह के मिथ्यारोप लगाकर यादव को खलनायक बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा।भाजपा को अच्छी तरह पता है कि उसको मुंहतोड़ जवाब यादव ही दे सकता है।यादव पिछड़ों,दलितों के झुण्ड से अलग हो गया तो गैरयादव पिछड़ों,दलितों को निरीह बनाना बिल्कुल आसान है।यादव ही ऐसी जाति रही है,जिसने सामन्तों से दो दो हाथ कर ओबीसी,एससी के लिए पिल्लर व मजबूत दीवाल का काम कर आड़ दिया,सम्मान से कुर्सी,खटिया पर बैठने का साहस दिया।
यादवों को यादवों से तोड़ने में जुटा संघ
भाजपा मातृसङ्गठन आरएसएस यादवों को आगे कर यादवी एकता को कमजोर करने व पिछड़ों को छिन्न भिन्न करने में जुटा हुआ है।उसने रामकृपाल यादव, भूपेंद्र यादव,डॉ. रीता यादव,अन्नपूर्णा देवी यादव,नन्दकिशोर यादव,नित्यानंद रॉय,लक्ष्मीनारायण यादव,हुकुमदेव नारायण यादव,धर्मेन्द्र प्रधान आदि यादव नेताओं को अपनी शिकारी टोली का पाला हुआ सैनिक तैयार कर लगा दिया है।ये ऐसे भाजपाई व संघीय सैनिक है जिन्हें यादवों की मौत पर तो दूर खुद इनके भाई-भतीजे,पुत्र-पुत्री की भी हत्या कर दी जाय तो चूं नहीं बोलेंगे।
संघीय सपाई ने ही यादवों को खलनायक बना दिया-
देवेंद्र सिंह गोरखपुर स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से सपा का एमएलसी था।जिसने बिल्कुल झूठा बयान दिया कि लोक सेवा आयोग द्वारा 86 में 56 यादव एसडीएम बना दिये गए,जबकि सच्चाई थी कि 30 में 5 यादव एसडीएम बने थे,जो उनकी काबिलियत व जनसँख्यानुपतिक भागीदारी का परिणाम था।लेकिन क्या पिछड़े दलित उस कहावत को चरितार्थ कर यादव को नायक से खलनायक मां बैठे कि-“कउआ तेरा कान ले गया तो ये अपने कान को न देखकर पेड़ की दाल पर देखने लगे कि कौवा मेरा कान लेकर कहां चला गया,क्योंकि निषाद, राजभर,चौहान,लोधी,विश्वकर्मा, प्रजापति,कोयरी,काछी,कुर्मी,पासी,दुसाध,कोरी,बिन्द आदि कान के कच्चे होते हैं।
उदयवीर उवाच-पिछड़ों का काम पीछे चलना है,नेतृत्व करने अगड़ों का-
एक बार कुछ यादव बुद्धिजीवी उदयवीर सिंह को सपा का शुभचिंतक व अखिलेश यादव जी का अत्यंत करीबी समझकर कहे कि एमएलसी साहब!राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से कहिये कि वे अतिपिछड़ों, दलितों को जोड़ने का विशेष कदम उठाएं,तो उदयवीर का जवाब था-नेतृत्व करना अगड़ों व सवर्णों के बश की बात है,पिछड़ों का काम पीछे चलना है।सच कहा जाय तो उदयवीर सिंह,अभिषेक मिश्रा, अनुराग भदौरिया,आनंद भदौरिया,सन्तोष पांडेय,पवन पांडेय आदि आरएसएस कैडर के हैं और ये दुश्मन टोली के लिए भेदिया का काम करते हैं।
भेदिया बैठा सपा के द्वार-
समाजवादी पार्टी ने अपने कार्यालय के मुख्य द्वार पर ही सवर्णीय संघीय मानसिकता के व्यक्ति को बैठा दिया है,जो दुश्मन टोली को सारी गोपनीय बातें भेदिया की तरह लीक आउट करता है,वह भेदिया है अरबिंद कुमार सिंह।
काश हम सपा से दूर न होते-
इस लेख के लेखक समीक्षक ने अपना नाम गोपनीय रखते हुए कहा कि काश वह सपा से दूर नहीं होता तो सपा की यह स्थिति नहीं होती।ऐसा भी परिणाम आता तो आज उसके चलते 30 से 40 सीटें और आतीं।दुर्भाग्य रहा कि पिछड़ों,दलितों को जोड़ने,समझाने की कला से सामाजिक न्याय विरोधी मनुवादियों के पेट में दर्द होने लगा और वे चाल चलकर पार्टी से दूर करा दिए। अखिलेश यादव जी उसका मोल नहीं समझ पाए और दरकिनार कर दिए।चुनाव से पूर्व उसे 10 करोड़, 5 करोड़ गाड़ी, पद आदि का भाजपा की ओर से प्रस्ताव आया, पर सीधे टाल दिया कि हम अपने लिए नहीं अपनो के लिए जीते हैं। हम अम्बेडकरवादी, मंडलवादी, पेरियारवादी हैं, निजस्वार्थ में सामाजिक न्याय की जड़ों में गर्म पानी व मट्ठा नहीं डालेगा। बीती ताहि बिसार दे,आगे की सुधि लेऊँ की कहावत के अनुसार नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो कुछ काम करो कि तर्ज पर भविष्य के आकोश में सुखद परिणाम की राह तलासने का प्रयास करने का आत्मविश्वास जागृत कर सपा की बुनियाद को मजबूत करने को उद्यत होना होगा।