आज पता नहीं क्यों मुझे नौशाद की बहुत याद आ रही है.वह मेरे अखबार में काम करता था. प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में. मजहब का पाबंद. पांच वक्त का नमाज़ी. सीधासादा गरीब आदमी. इतना सीधा कि उसे चपरासी भी हड़का लेते थे. गलती किसी की हो, उसका ठीकरा अक्सर उसी के सर पर फूटता. और, वह मान भी जाता. सिलबिल्ला!
मेरे संपादकीय विभाग के कुछ कर्मचारी भी उसे सताने में कम न थे, मगर यह सताना अलग किस्म का था. जैसे ही किसी काम से वह मेरे कमरे में आता, ये नए ट्रेनी लड़के उसको अपने पास बुलाते और उससे बात करने लगते और वह कुछ समझ पाता कि कम्प्यूटर स्क्रीन पर सनी लियोनी या मिया खलीफा टाइप एक चित्र उभर आता; और, वह मजहबी मुसलमान शरमा कर ‘राम राम राम’ कहते हुए आंख ढक लेता. तब उससे पूछा जाता, “तुम्हारे कितने बच्चे हैं, नौशाद?”
“चार लड़कियां हैं.”
“अबे, xxx के! ये बच्चे क्या ऐसे ही शरमाते शरमाते पैदा किए? क्यों मियां, हैं तो तुम्हारे ही?”
वह इन बातों का बुरा न मानता और लड़कों को अश्लीलता के खिलाफ़ समझाने लगता.
गाहे बगाहे उसे “अबे पाकिस्तानी” भी कह दिया जाता. वह हंस कर टाल देता. यह बात दीगर है कि वह रोज़ाना गंगा में डुबकी लगाने के बाद ही फज्र की नमाज़ अदा करता था.
हां, तो बात थी मंत्र की. तो हुआ यह कि एक दिन भारत और पाकिस्तान का मैच चल रहा था. कमरे में टीवी चल रहा था. भारी भीड़ थी. इसी भीड़ का हिस्सा था नौशाद भी. शामत भी उसी की थी.
“…साला पाकिस्तानी…देखना ये आज मैच हरवा के रहेगा…भगाओ xxx वाले को…”
वह सब कुछ मुस्करा कर सुनता रहा. मैच चलता रहा और आखिरी ओवर में सिचुएशन कुछ ऐसी बनी जिसमें भारत को जीतने के लिए सात या आठ रन की जरूरत थी.
तभी एक साथी को अचानक शरारत सूझ गई. वह नौशाद से बोला, “मियां, एक घंटे से पाकिस्तानी होने की गाली खा रहे हो…है कोई मंत्र तुम्हारे इस्लाम में जो यह मैच भारत को जितवा दे?”
नौशाद कुछ न बोला. हमेशा की तरह वह मुस्कुराता रहा.
मैच आगे बढ़ा. जीत के लिए चार बॉल में अब चार रन चाहिए थे.
अचानक मेरी नज़र नौशाद पर पड़ी. वह भी पता नहीं क्यों मेरी तरफ़ देख रहा था. मैंने आंखों आंखों में इशारा किया. उसने मुस्कुरा कर हामी भरी और खड़ा होकर बोला, “देखो, भइया कह रहे हैं सो मैं मंतर पढ़ रहा हूं. और, समझ लो यह मंत्र खाली नहीं जाता.”
नौशाद ने मंतर पढ़ना शुरू किया…”अल्ला हुमा सल्लै…”
इसी के साथ भीड़ ने जयकारा लगाया…”बोलो भारत माता की जै…”
उधर मैच चलता रहा. चौथी बॉल डक. पांचवी बॉल दो रन. आखिरी बॉल…दो रन चाहिए. बॉल डिलीवर हुई और वो रहा चौका !!
भारत माता के जयकारों के बीच नौशाद ने मंतर यानी दरूद शरीफ का पाठ पूरा किया. भीड़ एक्सटेसी में चीख रही थी. उधर, नौशाद सजदे में जमीन पर पड़ा था!
बाद में कई लोगों ने नौशाद से दरूद शरीफ लिखवाया. कई लोग गायत्री मंत्र के साथ इस इस्लामी मंत्र का भी पाठ करते रहे. मगर मंत्र ने कभी किसी का साथ नही दिया. शायद मंत्र भी सुपात्र को ही सिद्ध होता है. भगवान ने सिलाबिल्ले नौशाद को ही सुपात्र माना था शायद.
(यह एक सत्यकथा है. थोड़ा gloss जरूर पैदा किया है इसमें, बाकी कहानी सौ फीसदी सही है. कहानी पढ़ने के बाद यह भी न भूलिएगा कि भारत ने कई cliff hanger मुकाबले जीते हैं, जिनमें नौशाद ने दरूद शरीफ का पाठ नही किया था. नौशाद ज्यादा दिन नहीं जिया. उसकी मौत की भी एक दर्दभरी कहानी है. सुनेंगे आप?)