भू-दान आन्दोलन

दैनिक समाचार

आज ही के दिन सन 1951 में विनोबा जी को भूदान आंदोलन के लिए सर्वप्रथम आंध्र प्रदेश के पोचमपल्ली गाँव में भूमिहीन वर्ग में वितरित करने हेतु तकरीबन 100 एकड़ जमीन दान में मिली थी। भूदान आंदोलन 13 वर्ष तक निरंतर तीव्रता से चलता रहा जिसके दौरान विनोबा ने 80,000 किलोमीटर पैदल चल कर 47,00,000 एकड़ से अधिक भूमि दान मे प्राप्त कर ली। इस दौरान वह पाकिस्तान सरकार की अनुमति लेकर पूर्वी पाकिस्तान भी गए और 150 एकड़ से अधिक दान मे मिली जमीन उन्होने वहीं के भूमिहीनो में बांट दी। दुःख होता है की हमारी पीढ़ी ने विनोबा भावे जैसे महामानवों को भुला दिया है। विनोबा जी ने महात्मा गांधी की सर्वोदय की परिकल्पना पर काम करते हुए लाखों एकड़ जमीन भूमिहीन तबके में बाँट दी।

पालकोट के राजकुमार ने जब विनोबा से कहा “मैं आपके साथ दो हफ्ते रहना चाहता हूँ’ तो वहाँ उपस्थित सभी किसान, मजदूर यह सोच कर दंग रह गए कि क्या सच में राजकुमार हमारे साथ पैदल चलेंगे ?
55 वर्षीय विनोबा की पदयात्रा गाँव गाँव निकली और उस दौरान उन्होंने राजकुमार को समझाया की भूखे को भोजन प्रदान करना, प्यासे को जल देना ही ईश्वर की सच्ची सेवा है।
अंततः रांची पहुँचने पर राजकुमार ने 45 हजार एकड़ से अधिक जमीन विनोबा के भूदान में स्वेच्छा से, समर्पण भाव से दान कर दी। तब विनोबा ने राजकुमार से कहा की मुझे मात्र तुम्हारी जमीन नहीं चाहिए, बल्कि तुम्हारा हृदय (करुणा एवं समर्पण) चाहिए, अब तुम्हें अपने हिस्से का काम करना है। महलों में रहने वाले, महंगी गाड़ियों में घूमने वाले राजकुमारों, जमींदारों ने विनोबा के भूदान आंदोलन में स्वयं को झोंक दिया। आंदोलन के शुरुआती दिनों में विनोबा ने तेलंगाना क्षेत्र के करीब 200 गांवों की यात्रा की थी और उन्हें दान में 12,200 एकड़ भूमि मिली। इसके बाद आंदोलन उत्तर भारत में फैला। बिहार और उत्तर प्रदेश में इसका गहरा असर देखा गया था। भूदान आंदोलन के साथ साथ उन्होने ग्रामदान की भी अपील की। ग्रामदानी गांवों की संख्या उस समय 1,37,000 से अधिक पहुंच चुकी थी। ग्रामदान कानून के तहत लगभग 3900 ग्रामदानी गांव आज भी है। विनोबा न सिर्फ अध्यात्म, सर्वोदय एवं सामाजिक न्याय का प्रतीक हैं बल्कि हृदय परिवर्तन, मानवता एवं सेवा भाव में अदम्य विश्वास रखने वाले एक विचार का नाम भी हैं।

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