आइन्स्टीन की पुण्यतिथि पर विशेष
18 अप्रैल 1955, को प्रिंसटन मेडिकल कॉलेज ,न्यू जर्सी, संयुक्त राज्य अमेरिका में अल्बर्ट आइन्स्टीन का निधन हुआ था। अल्बर्ट आइंस्टीन दुनिया के महानतम वैज्ञानिक थे । प्रिंसटन हॉस्पिटल अमेरिका ने उनका दिमाग अध्ययन के लिए संरक्षित कर लिया है। बताया जाता है कि उनका मस्तिष्क सामान्य इंसानों के मस्तिष्क से हटकर था। उनके असामान्य रूप से बुद्धिमान होने पर कई शोध किए गए हैं।
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के कमरे में दो तश्वीर लगी थीं। एक महान मानवतावादी अल्बर्ट श्रवाइटजर और दूसरे विश्व अहिंसा के प्रवर्तक महात्मा गांधी की। जब उनसे पूछा गया कि आपने न्यूटन और मैक्सवेल की तश्वीर हटाकर क्या संदेश दिया है तो आइंस्टीन ने कहा कि ‘पश्चिम में अकेले अल्बर्ट श्वाइटज़र ही ऐसे हैं जिनका इस पीढ़ी पर उस तरह का नैतिक प्रभाव पड़ा है, जिसकी तुलना महात्मा गांधी से की जा सकती है। गांधीजी ने दुनिया को अपने जीवन से यह उदाहरण पेश किया कि साधारण से साधारण आदमी भी महानता के शिखर को छू सकता है।
आइंस्टीन की बौद्धिक उपलब्धियों ने “आइंस्टीन” शब्द को “बुद्धिमान” का पर्याय बना दिया था। जब आइंस्टीन से पूछा गया कि आप बुद्धिमानी के पर्याय हैं और गांधीजी एक दार्शनिक हैं तो अगर बुद्धिमान और दार्शनिक में से एक का चयन करना हो तो लोग किसे चुनें? आइंस्टीन ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि
बुद्धिमान व्यक्ति यह दावा नहीं करता कि वह हर विषय पर अपनी राय दे सके। बुद्धिमान व्यक्ति में दृष्टि का विस्तार , विचार की स्वतंत्रता और मनोभावों को समझने की शक्ति तो होती है, पर चकाचौंध और उजाले के पीछे छिपे अंधेरे की सच्चाई एक दार्शनिक की आँखों के सामने बिजली की तरह कौंधने लगती है।
आइंस्टीन ने न्यूटन के सिद्धांत को चुनौती देते हुए कहा कि मैं न्यूटन के सिद्धांत से असहमत हूँ क्योंकि न्यूटन का सिद्धांत यूक्लिड की ज्यामिति पर आधारित है। यूक्लिड की ज्यामिति जिसे दो हज़ार वर्ष तक परम शाश्वत सत्य माना जाता था, वास्तव में बहुत सीमित सिद्धान्त है, जो सिर्फ समतल पर लागू होता है। यूक्लिड की ज्यामिति समग्र सत्य नहीं, सिर्फ सम (तल) सत्य है।
मेरे सापेक्षता सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्माण्ड गैर-यूक्लिडीय है और उसमें ‘अधिक-कोण’ ज्यामिति लागू होती है। जो स्पेस-टाइम कन्टीनम की पेचीदी धारणा पर विज्ञान में बहुत बड़ी क्रांति करता है।
ठीक इसी समय गांधीजी कह रहे थे कि असहमत होना कोई बुरी चीज नहीं है। असहमत होने का हक ही लोकतंत्र का हासिल है। असहमतियों ने ही उस राजा को बदला था, जो दुनिया में लोकतंत्र के विचार आने के पहले हुआ करता था। दुनिया को चलाने की बदली हुई यह व्यवस्था असहमतियों से होती हुई यहां पहुंची है। सहमति एक तरह की सुविधा है, एक तरह का सुकून है- ताकतवर के साथ खड़े होने का सुकून, सत्ता के साथ अड़े होने का सुकून। सहमति बदलाव की गुंजाइश को ख़त्म करती है।
जब आइंस्टीन को हिटलर ने देश निकाला दे दिया तो वे अमेरिका चले गए। यहाँ से गांधी और आइंस्टीन का लंबा पत्र व्यवहार चला। गांधी ने आइंस्टीन के जर्मनी से देश निकाले पर उन्हें उधृत करते हुए हरिजन में लिखा कि ‘ इंसान अपनी मिट्टी से जुड़ा होता है उसको उखाड़कर दूसरी मिट्टी में नकली ढंग से स्थापित नहीं किया जा सकता। यह काम तानाशाह (हिटलर) करते हैं। यह सच है कि इंसान अपने देश की सीमाओं के बाहर भी जाता है ,उसमें उड़ने के लिए पंख भी होते हैं लेकिन उसकी जड़ें भी होती हैं। वह उड़ना भी चाहता है और जुड़ना भी चाहता है।
महात्मा गांधी भारत में जिस समय अपने वैचारिक विरोधियों से यह कह रहे थे कि राष्ट्र एक संकुचित अवधारणा नहीं है, यह एक अन्तरराष्ट्रीय अवधारणा है। अगर यह अंतरराष्ट्रीय अवधारणा नहीं है तो वह अंततः असफल होने के लिए वाध्य है। लगभग उसी समय आइंस्टीन अमेरिका में कह रहे थे कि न्यूटन की गुरुत्वाकर्षण अवधारणा एक संकुचित अवधारणा है जबकि गुरुत्वाकर्षण एक वृहद धारणा है जो ब्रह्मांड की हर घटना पर लागू होती है। अगर न्यूटन के अनुसार गुरुत्वाकर्षण एक सीमित अवधारणा है तो इसे असफल होने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि यह यूक्लिड की ज्यामिति पर आधारित है जबकि ब्रह्मांड गैर यूक्लिडिय है।
जब भारत में गांधीजी कह रहे थे कि विचारों के क्षेत्र में सेल्फ वेलिडेशन नहीं चलता। अगर आपका कोई विचार है तो आप ही उसे वेलीडेट नहीं करेंगे। ऐसा नहीं होगा कि आप ही कोई बात कहें और उसकी जांच करने का अधिकार किसी को न दें। यह वैचारिक क्रूरता है।
लगभग उसी समय आइंस्टीन कह रहे थे कि जब हम किसी भी नए सिद्धांत का दावा करते हैं, हम यह मानकर चलते हैं कि कल उसे गलत सिद्ध किया जा सकता है। हर नया वैज्ञानिक सिद्धांत अपना खंडन कराने को वाध्य होता है। विज्ञान तभी आगे बढ़ता है जब उसकी पर्याप्त आलोचना होती है। यही विज्ञान का नियम है।
कितना अजीब संयोग है कि एक दार्शनिक और एक भौतिक विज्ञानी समान वैचारिक धरातल पर बात कर रहे हैं , जिन्होंने एक दूसरे को देखा भी नहीं है।
महात्मा गांधी से उम्र में केवल 10 साल छोटे आइंस्टीन कभी उनसे व्यक्तिगत रूप से नहीं मिले थे। लेकिन दोनों के बीच पत्रव्यवहार अवश्य होता रहा। आइंस्टीन ने 27 सितंबर, 1931 को गांधी को लिखी चिट्ठी में कहा- ‘’आपकी मिसाल से मानव समाज को प्रेरणा मिलेगी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग व सहायता से हिंसा पर आधारित झगड़ों का अंत करने और विश्वशांति को बनाए रखने में सहायता मिलेगी। मैं आशा करता हूं कि मैं एक दिन आपसे आमने-सामने मिल सकूंगा।”
18 अक्टूबर, 1931 को लंदन से गांधी ने पत्र का जवाब आइंस्टीन को लिखा- ‘प्रिय मित्र, इससे मुझे बहुत संतोष मिलता है कि मैं जो कार्य कर रहा हूं, उसका आप समर्थन करते हैं। सचमुच मेरी भी बड़ी इच्छा है कि हम दोनों की मुलाकात हो और वह भी भारत-स्थित मेरे आश्रम में।
2 अक्टूबर, 1944 को गांधी के 75वें जन्मदिवस पर आइंस्टीन ने अपने बधाई संदेश में लिखा- ‘’आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था।”
यह वाक्य गांधी को जानने-समझने वाली कई पीढ़ियों के लिए एक सूत्रवाक्य ही बन गया और आज भी इसे विभिन्न अवसरों पर उद्धृत किया जाता है।
30 जनवरी, 1948 को गांधीजी की हत्या का समाचार सुनकर आइंस्टीन फ़ूट फूट कर रो पड़े।
उन्होंने लिखा वे सभी लोग जो मानव जाति के बेहतर भविष्य के लिए चिंतित हैं, वे गांधी की दुखद मृत्यु से अवश्य ही बहुत विचलित हुए होंगे। अपने ही अहिंसा के सिद्धांत का शिकार होकर उनकी मृत्यु हुई। उनकी मृत्यु इसलिए हुई कि देश में फैली अव्यवस्था और अशांति के दौर में भी उन्होंने किसी भी तरह की निजी सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया था।अपनी पूरी जिंदगी महात्मा गांधी ने अपने इसी विश्वास को समर्पित कर दी और उन्होंने एक महान राष्ट्र को उसकी मुक्ति के मुकाम तक पहुंचाया। उन्होंने जो कहा वह करके दिखाया।”
उन्होंने नेहरू को लिखे संवेदना संदेश में लिखा-
” पूरी दुनिया ने गांधी के प्रति जो श्रद्धा दिखाई, वह अधिकतर हमारे अवचेतन में दबी इसी स्वीकारोक्ति पर आधारित थी कि नैतिक पतन के हमारे युग में वे अकेले ऐसे स्टेट्समैन थे, जिन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में भी मानवीय संबंधों की उस उच्चस्तरीय संकल्पना का प्रतिनिधित्व किया जिसे हासिल करने की कामना हमें अपनी पूरी शक्ति लगाकर अवश्य ही करनी चाहिए।”
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन को उनकी पुण्यतिथि पर नमन।
गांधी दर्शन
18 अप्रैल 2022
गांधिविचारो के साहित्य और उपक्रम में जुड़ने हेतु अपने जिल्हे के Knowing Gandhi Global Friends के whatsapp ग्रुपसे जुडे
Link-
https://forms.gle/mQkW5nxUECxTZk2y7