द्वारा : इं. एस. के. वर्मा
हरकोई बैचेन है मौजूदा हालातों से।
कुछ को उम्मीदें बाकी हैं, तो कुछ उन्मादी बने हैं।
कुछ तो कुछ अभी तक भी आशावादी बनें हैं!
मगर यह सच है कि अब अच्छे दिनों की तलाश तो हर किसी को है!
एक जादूगर आया था, अच्छे दिन लाने का सब्जबाग दिखाया था!
छीन लिया वो भी,जो कुछ अभी तक कमाया और बचाया था!
हर तरफ शोर है,चौकीदार वो नहीं कोई और है!
जनता परेशान हैं लेकिन ऐसी जीत पर भी हैरान हैं!
इस बार तो उसे वोट भी नहीं दिया, फिर भी इतनी वोटों से कैसे जीत गया!
उसने जरूर कहा था कि अच्छे दिन आएंगे!
मगर मूर्ख जनता समझी, अच्छे दिन उसके आएंगे!
राजनेताओं की द्विअर्थी बातों का अर्थ समझने में जब जब भी मूर्खता दिखाई है!
सच मानिए जनता ने मुँह की ही खायी है!
एक समय डायन थी जो मंहगाई, आज उसी का नाम विकास और उन्नति है भाई।
नाम बदलने में माहिर,वादों से मुकरने में माहिर।
गलती जो की है उसकी कीमत चुकानी होगी।
न जाने कितने बेगुनाहो को अपनी जान गंवानी होगी।
अच्छे दिन आये या न आये। लेकिन यह जरूर कहेंगे कि लौट के बुद्धू घर को आये।
आप कितना भी खुद को शिक्षित समझने लगे हो, मगर मानना होगा कि हमारे अनपढ़ बुजुर्ग, इन पढ़ें लिखे मूर्खो से बहुत समझदार थे!
इसीलिए आजादी के सत्तर सालों तक महाझूठे सत्ता से बाहर थे!
लालच बुरी बला है बचपन में ही पढ़ाया था, मगर अच्छे दिनों के लालच ने सबकुछ भूलाया था।
दिन तो बुरे हैं ही, रातें भी काली हैं।
जिधर भी देखिए उधर ही दंगई और मवाली है!
धर्मों के नाम पर ऐसा नंगा नाच होगा, ना कभी सुना और ना ही देखा था!
अच्छे दिनों के नाम पर इंसानियत शर्मसार होगी ऐसा किसने सोचा था!
लालच करके जो गलती की है उसके लिए पछताना भी होगा निशदिन।
तब तक मूर्खता पर अपनी गाते रहिए, कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन!