द्वारा : सुब्रतो चटर्जी
सबसे बड़ी समस्या-“लंपट दक्षिणपंथी तथाकथित बुद्धिजीवियों की है, ग़रीबों और लाचार लोगों की नहीं! यही वे लंपट हैं जिनको गाँधीवाद में फासीवाद का जवाब दिखता है.
दरअसल, कुछ कायर लोग गाँधीवाद के अहिंसक दृष्टिकोण को कायरता का पर्याय मान कर, अपनी नपुंसकता का आड़ बना लेते हैं, जबकि अहिंसा कायरता नहीं है!
एक कम्युनिस्ट विचारधारा का पक्षधर के होने के नाते, मैं विश्वास नहीं करता कि गाँधीवादी तरीक़े से फासीवाद को हराया जा सकता है, लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं है कि मैं अनावश्यक ख़ून ख़राबे का समर्थक हूँ या उसीको क्रांति समझता हूँ!
क्रांतिकारी का मूल स्वभाव रचनात्मक होता है, न कि विध्वंसक. खूनी संघर्ष को प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ, अपरिहार्य बना देतीं हैं, क्योंकि वे अपने वर्गस्वार्थ की बलि, स्वेच्छा से नहीं देते.
वर्ग-संघर्ष का उन्मूलन ही वामपंथ का ध्येय है, जबकि इसे बनाए रखने के लिए ही प्रतिक्रियावादी ताक़तें सदैव लगीं रहतीं हैं.
कौन शांति के पक्ष में है और कौन युद्ध के पक्ष में है, शायद आप समझ गए होंगे.