यदि कोई मनुष्य नास्तिक है, और वह किसी ईश्वर, अल्लाह या किसी भी धर्म के प्रति कतई भी आस्थावान नहीं है तो इसका अर्थ यह भी नहीं कि यह लड़ाई उस व्यक्ति और काल्पनिक ईश्वर के बीच की आपसी लड़ाई है।
बल्कि अपनी अपनी मान्यताएं और भावनाएं है। इसका मतलब यह भी नहीं कि आस्तिक व्यक्ति समाज और दुनिया के लिए हितैषी होगा और नास्तिक नहीं!
क्योंकि जितने भी वैज्ञानिक हुए हैं उनमें अधिकांश नास्तिक ही रहे। और उन्होंने ही देश व दुनिया के मौजूदा लोगो के लिए तमाम तरह की सुख सुविधाएं और समृद्धि प्रदान की।
समझ नहीं आता कि यहां लोगों की भावनाएं क्यों आहत हो जाती है?
यदि ईश्वर, अल्लाह, गॉड,भगवान और परमेश्वर आदि है, और सर्वशक्तिमान भी है,उनकी मर्जी के बिना यदि एक पत्ता भी नहीं हिलता है तो नास्तिक व्यक्ति को सजा भी ईश्वर ही स्वयं देगा। दूसरे लोग क्यों आग बबूला हुए जाते हैं?
ईश्वर अल्लाह और खुदा या गाड सर्वशक्तिमान है, तो उसकी रक्षा करना किसी मनुष्य के बूते की बात कैसे हो सकती है?
समझना चाहिए कि वह सर्वशक्तिमान होकर भी एक पिद्दी भर के व्यक्ति द्वारा खुद की रक्षा कराने के लिए मजबूर होगा?
मनुष्य तभी अपने द्वारा बनाए धर्म और ईश्वर की रक्षा करना चाहता है क्योंकि उनके धर्माचार्य जानते है कि ईश्वर जैसी कोई भी शक्ति संसार में विद्यमान नहीं है। बल्कि एक नियंत्रणकारी विचार थोपकर ईश्वर के नाम पर डराकर,धमकाकर लोगों का एक समूह खड़ा कर दिया है।
जो ईश्वर और अल्लाह या खुदा और गोंड के नाम पर शानोशौकत और ऐशोआराम से जिंदगी गुजारते हैं सम्मान भी पाते हैं। इसीलिए धर्म की रक्षा करने का ढोंग करते हैं।
धर्म की रक्षा आदमी इसलिए करता है क्योंकि उसने बनाया है।
यदि ईश्वर अल्लाह और गोंड द्वारा बनाया गया है तो उसकी रक्षा करने का उत्तरदायित्व क्या उस सर्वशक्तिमान का नहीं होगा? आदमी क्यों परेशान हैं?
गीता में श्रीकृष्णजी स्वयं ही कहा है
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
शब्दार्थ-
मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।
खुद सोचिए कि क्या आप भगवान के काम में टांग अड़ाने जैसा कार्य नहीं कर रहे हैं?
पाप और पापियों बढ़ने तो दीजिए, भगवान स्वयं आने का इंतजार कर रहे हैं।
और आप चाहते हैं कि भगवान प्रकट ही न हों, कैसे निष्ठुर धार्मिक और आस्थावान हो? क्या यह आपकी मानसिकता को प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि भगवान को मानते भी हो लेकिन भगवान की कही एक भी बात नहीं मानते हों?
आपको धर्म की रक्षा करने का जिम्मा किस भगवान ने दिया? वो काम तो उसने खुद के लिए आरक्षित और सुरक्षित रखा है, फिर आप कौन हो?
क्या भगवान बनने की चेष्टा कर रहे हैं अथवा भगवान जैसा शक्तिमान बनने की चाहत है?
जिसने पूरी दुनिया बनाई है, जिसकी मर्जी के बिना कुछ नहीं होता है, वह किसी नास्तिक के मन और मस्तिक में यह विचार कैसे भर सकता है कि तू ईश्वर के खिलाफ होगा?
और यदि वह नास्तिक पथ भ्रष्ट है, पापी है,तो ईश्वर उसको स्वयं सजा ही देगा?
और यदि धर्म रक्षक के नाम पर कुछ गुंडे और मवाली है तो ईश्वर उन्हें भी सजा देता मगर यहां ऐसा कुछ नहीं हो रहा है।
यहां समूहों में बंटे सब के सब लोग खुद ही ईश्वर के लठैत बनकर घूम रहे हैं।
छोटी-छोटी सी बात पर भी लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो जाती है। कुछ मवाली जिसके चलते कोई भी पाप करने से नहीं डरते हैं?
सत्य को स्वीकार करना सीखिए, कुतर्क मत कीजिए किसी के भी माता-पिता का अपमान मत करिए क्योंकि कोई भी बच्चा यह कैसे बर्दाश्त करेगा? क्योंकि माँ-बाप यथार्थ हैं, उनकी रक्षा करना बच्चों का नैतिक व सामाजिक दायित्व भी है।
परन्तु यहां विषय सर्वशक्तिमान का है।
यदि कोई ईश्वर, भगवान, अल्लाह, खुदा, गॉड, देवता इत्यादि को नकार रहे हैं तो यह नास्तिक और सर्वशक्तिमान की आपसी लड़ाई है उसकी सजा भी सर्वशक्तिमान देने में समर्थ है, मगर कुछ टट्पूंजिये खुद को भगवान और धर्म रक्षक कहें तो क्या हंसी के पात्र नहीं कहे जाएंगे?
ईश्वर और अल्लाह व खुदा और गोंड शक्तिशाली है तो उनको साबित करने का मौका तो दीजिए?
तभी तो गीता का कथन सत्य होगा!
या फिर धार्मिक उन्माद पैदा करके, खुद को धार्मिक कहने वाले लोग खुद ही इतना पाप करने लगेंगे कि भगवान को आने में विलंब हो? अथवा नास्तिको से भी बड़े पापी और सजा के हकदार वही धार्मिक हों जो भगवान और धर्म की रक्षा के नाम पर पाप कर रहे हैं?
कहीं ऐसा न हो कि सबसे बड़े पापियों जैसा व्यवहार भगवान नास्तिको के साथ नहीं बल्कि कथित धार्मिक अज्ञानी पापियों के साथ ही करने को मजबूर हो जाएं!
चिंटुओं को समझना होगा, धर्म आस्था का विषय है। इसे जबरदस्ती नहीं मनवाया जा सकता है।
नहीं तो चार सौ साल से भी अधिक मुगलों के और डेढ़ सौ साल अंग्रेजों के गुलाम रहे लोग वर्तमान में हिन्दू कैसे बचें होते?