“हीरामण्डी” लाहौर की पुरानी कुंज गलियों के बीच स्थित है।
ऐसा कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह के मुँह बोले बेटे हीरा सिंह की हवेली इस इलाके में थी, इसी कारण इस इलाके को हीरामण्डी कहा जाता है,
इस इलाके को बाज़ार-ए हुस्न भी कहा जाता है, अनारकली बाज़ार, नगीना बाज़ार, मीना बाज़ार, सोना गाछी’ राह-ए-शाह के जीटी रोड की प्रमुख शान में शामिल रही हैं।
मुगल-मर्चेंट काल में इस इलाके में राजाओं की कनीज, दासी और मुलाजिम रहते थे, इसलिए इसे शहं-शाहों का शाही मौहल्ला भी कहा जाता था,
एक जमाने मे ये इलाका नचनैया संगीत का अड्डा होता था पर आजकल देह कारोबार के लिए जाना जाता है,
80-90 दशक तक इस जगह का एक अलग चुम्बकीय आकर्षक था।
लाहौर आने वाले नौजवान यहाँ खिंचे चले आते थे,
नौजवानों के लिए मुजरे और सम्भोग से समाधि के लिए हीरामण्डी एक मुफीद और नायाब जगह होती थी।
पहले यहाँ शास्त्रीय नगमा पर नाच-गाने होते थे, एक से बढकर एक अप्सरा (नचनैया) घरानों के उस्ताद अपना जौहर दिखाते थे और आज भी हीरामण्डी में काचा बादाम गीत बड़े चाव से सुना जाता है।
अब आप पूछेंगे कि इस सांस्कृतिक क्षेत्र से श्रध्देय अटलजी का क्या संबंध?
उनका इस इलाके में पदार्पण कब और कैसे हुआ?
तो इसके पीछे एक अत्यंत मार्मिक कहानी छिपी है मित्रों।
हुआ यूँ कि भारत छोड़ो आंदोलन की लहर में आगरा के पास किसी गांव में लीलाधर वाजपेयी सहित डेढ़ दो सौ क्रांतिकारी जंगल विभाग की एक बिल्डिंग में झंडा फहरा रहे थे।
वहीं पास में श्रध्देय अटलजी और उनके भाई प्रेम बिहारी खड़े होकर तमाशा (लीला) देख रहे थे।
पुलिस ने सबको गिरफ्तार कर लिया, श्रध्देय अटलजी और उनके भाई भी दबोच लिए गए।
फिर श्रद्धेय अटलजी और उनके भाई सरकारी गवाह बन कर छूट गए और उन्होंने बाकि लोगों के खिलाफ गवाही दी कि ये लोग सरकारी बिल्डिंग को नष्ट करने की कोशिश कर रहे थे,
परिणाम स्वरूप बाकि के लोगों को 3 साल की सजा हो गई।
अटल जी मूलतः भोले भाले भावुक व्यक्ति थे और कविता से बेहद मोहब्बत थी,
उन्हें लगता था कि वो अंग्रजों का नमक खा रहे हैं, इसलिए नमकहरामी करना ठीक नही है।
इसी कारण श्रध्देय ने महज 18 साल की उम्र में कई स्वतंत्रता सेनानियों को जेल करवा दी।
गवाही देने के बाद श्रध्देय थोड़े भयभीत हुए।
उन्होंने किस्से सुन रखे थे कि स्वतंत्रता सेनानी लोग मुखबिरों को बहुत बुरी तरह से पेलते हैं, इसलिए श्रध्देय ने सोचा कि अब अंडरग्राउंड होने का वक्त आ गया।
उस दौर में वेश्यालय, छुपने के लिए बहुत मुफीद जगह हुआ करती थी।
गांधी जी का हत्यारा नारायण आप्टे भी गांधीजी की हत्या के दिन GB रोड में रुका हुआ था’ जहाँ से उसे सरदार पटेल की पुलिस बडे प्रेम से घसीट कर लाई थी।
तो हमारे श्रध्देय ने छुपने के लिए हीरामण्डी लाहौर का चयन किया।
सन 42 में लाहौर भी हिंदुस्तान की मिट्टी ही थी।
श्रध्देय लाहौर की ट्रेन के तीसरे दर्जे में बैठे हुए थे,
भयभीत थे कि कहीं कोई पेल न दे, पर घुटनों पर उंगलियों की थाप देकर मन ही मन KL सहगल साहब का गाया हुआ “स्ट्रीट सिंगर” फ़िल्म का गीत “बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए रे” गुनगुना रहे थे..
अत्यंत मार्मिक दृश्य था मित्रों।
इस दृश्य के विषय मे सोचता हूँ तो बरबस ही मेरी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती है।
फिर श्रध्देय जैसे तैसे हीरामण्डी पहुँचे,
वहाँ का माहौल देखकर पहले तो उन्हें संकोच हुआ पर श्रध्देय सांस्कृतिक व्यक्ति थे।
उन्हें पता था कि तंत्र विद्या,भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है और भारतीय तंत्र विद्या में मदिरा, मत्स्या, माल, माँस मैथुन और मसाज का बहुत महत्व है।
यही सोचकर श्रध्देय हीरामण्डी में तपस्या भंग करने लगे और फिर अपने घुटनों का बलिदान देकर देवत्व प्राप्त किया।
अब श्रध्देय अटलजी का जिक्र किया है तो एक सस्ती कविता तो सुनानी ही पड़ेगी।
अर्ज किया है:
“हाथों में आने से पहले ‘ऐसी-तैसी’ कराएगा प्याला,
बाहों में आने से पहले एटीट्यूड दिखाएगी बाला,
जो ज्यादा ब्यूटीफुल होगी’ वही होगी सबसे घमंडी
पथिक’ न घबरा जाना, पहले मान करेगी हीरामण्डी!”
~हंसराज ढंका