द्वारा : बी एम प्रसाद
- बदज़ुबानी से बचो | (सूरहय 3:आयत न० 159)
- गुस्से को पी जाओ | (सूरह 3: आयत न०134)
- दूसरों के साथ भलाई करो | (सूरह 4:आयत न० 36)
- घमंड से बचो | (सूरह 7:आयत न०13)
- दूसरों की गलतियां माफ करो | (सूरह 7: आयत न० 199)
- लोगों से नरमी से बात किया Oकरो | (20:आयत न० 44)
- अपनी आवाज़ नीची रखों, दिल नर्म रखो (सूरह 31:आयत न० 19)
- कभी दूसरों का मज़ाक न उड़ाओ, (सूरह 49:आयत न० 11)
- वालदैन की इज़्ज़त और उनकी फरमानबरदारी करो | (सूरह 17:आयत न० 23)
- वालदैन की बेअदबी से बचो और उनके सामने उफ़ तक न कहो,(सूरह 17:आयत न० 23)
- इजाज़त के बिना किसी के कमरे मे घर मे (निजी कक्ष) में दाखिल न हो (सूरह 24:आयत न० 58)
- आपस में क़र्ज़ के मामलात ज़रूर लिख लिया करो, (सूरह 2:आयत न० 282)
- किसी की अंधी तक़लीद यकीन मत करो | (सूरह 2: आयत न० 170)
- अगर कोई तंगी मे है तो उसे कर्ज़ उतारने में रहम राहत दो, (सूरह 2:आयत न० 280)
15.कभी ब्याज मत लो मत खाओ , (सूरह 2:आयत न० 275)
- रिश्वत मत खाओ ,धोखा मत दो, | (सूरह 2:आयत न० 188)
- अपने किए वादों को पूरा करो | (सूरह 2:आयत न० 177)
- तस्दीक के साथ आपस में भरोसा कायम रखो, (सूरह 2:आयत न० 283)
- सच और झूठ को आपस में ना मिलाओ, (सूरह 2: आयत न० 42)
- लोगों के बीच इंसाफ से फैसला करो, इन्साफ फेहलाओ (सूरह 4:आयत 58)
- हर इंसाफ पर मज़बूती से जम जाओ | (सूरह 4:आयत 135)
- मरने के बाद हर शख्स की दोलत उसके करीबी रिश्तेदारों में बांट दो | (सूरह 4:आयत 7)
- औरतों का भी विरासत में हक है, (सूरह 4:आयत 7)
- यतीमों का माल नाहक मत खाओ,(सूरह 4:आयत 10)
- बेवा व यतीमों का ख्याल रखो | (सूरह 2:आयत 220)
- एक दूसरे का माल,दौलत नाजायज़ तरीक़े से मत खाओ,दबाओ (सूरह 4:आयत 29)
- किसी के झगड़े के मामले में लोगों के बीच हमेशा सुलह कराओ, (सूरह 49:आयत 9)
28.तस्दीक से पहले ज़हनी यकीन मत करो बदगुमानीयो से (guesswork) बचो | (सूरह 49:आयत 12)
- सच्ची गवाही को मत छुपाओ ,झूठी गवाही कभी मत दो,| (सूरह 2:आयत 283)
- एक दूसरे के भेद राज़ ना टटोला करो और किसी की चुगली मत भी मत किया करो | (सूरह 49:आयत 12)
- अपने माल में से गरीबो को ज़कात खैरात करो | (सूरह 57: आयत 7)
- मिसकीन गरीबों को खिलाने की तरग़ीब दो | (सूरह 107:आयत 3)
- अपने करीब जरूरतमंद को तलाश कर उनकी मदद करो, (सूरह 2:आयत 273)
- हर कंजूसी और हर फिज़ूल खर्ची से बचा करो | (सूरह 17:आयत 29)
- अपनी खैरात ज़कात,सदका लोगों को दिखाने के लिए नही दो और एहसान जताकर उसे बर्बाद मत करो | (सूरह 2:आयत 264)
- मेहमानों की इज़्ज़त करो, ख्याल रखो (सूरह51:आयत 26)
- भलाई पर पहला अमल खुद अमल करने के बाद दूसरों को बढ़ावा दो , (सूरह2:आयत 44)
- ज़मीन पर इन्सानों प्रजा मै फुट फसाद दंगे मत होने दो, (सूरह 2:आयत 60)
- कभी भी लोगों को मस्जिदों में अल्लाह के ज़िक्र से मत रोको, (सूरह 2:आयत 114)
- सिर्फ उन से लड़ो जो तुम से लड़े, अहिंसा पर रहने का हर मुमकिन प्रयास करो, (सूरह 2: आयत 190)
- मासूम बच्चे, औरते, बुज़ुर्गो,व निहत्थे,,बेगुनाह पर वार नही किया करो,,हर जंग के आदाब नियम का ख्याल रखना ईमान है (सूरह 2:आयत 191)
- देश या धर्म के लिए सत्य सच इन्साफ के मार्ग पर अगर जंग हो, जंग के दौरान पीठ मत फेरा करो, (सूरह 8:आयत 15)
- दीन में कभी कोई किसी से ज़बरदस्ती नही किया करो (सूरह 2: आयत 256)
- सभी संसार के पहले पैगम्बरों से आखरी पैगम्बर तक सब पर ईमान लाओ (सूरह 2: आयत 285)
- हालत माहवारी में औरतों के साथ संभोग न करो (सूरह 2:आयत 222)
- मां बच्चों को दो साल तक दूध पिलाया करो (सूरह 2:आयत 233)
- खबर दार ज़िना (fornication) के पास किसी सूरत में भी नहीं जाना (सूरह 17:आयत 32)
- हुक्मरानो को खूबीे खामी देखकर उन्हे चुना करो (सूरह 2: आयत 247)
- किसी अपने पर गैर पर उसकी ताकत से ज़्यादा बोझ मत डालो (सूरह 2:आयत 286)
- आपस में फितना फूट मत डालो (सूरह 3:आयत 103)
- दुनिया की तखलीक चमत्कार पर गहरी चिन्ता करो (सूरह 3: आयत 191)
- मर्दों और औरतों को,नेकी बदी आमाल का सिला , बराबर मिलेगा (सूरह 3: आयत 195)
- खून के रिश्तों मे, एक कोक से एक बाप से पैदा सगे बहन ,भाई से,शादी निकाह मत करो (सूरह 4:आयत 23)
- अच्छा मर्द हर परिवार का रहबर है, (सूरह 4:34)
- हसद और कंजूसी से ज़रूर बचो (सूरह 4:आयत 37)
- जलन हसद मत करो,ये ना शुक्रि है (सूरह 4:आयत 54)
- कभी एक दूसरे का कत्ल मत करो (सूरह 4:आयत 92)
- अमानत मे खयानत करने वालों के हिमायती मत बनो (सूरह 4: आयत 105)
- कभी गुनाह और ज़ुल्म व ज़यादती में मदद मत किया करो (सूरह 5:आयत 2)
- इंसानियत का नेकी और भलाई में हमेशा सहयोग करो (सूरह 5: आयत 2)
- सिर्फ अक्सरियत ताकत मे होना सच्चाई का सबूत नहीं याद रखो* (सूरह 6:आयत 116)*
62.सच और इंसाफ पर कायम रहा करो(सूरह 5:आयत 8)
63.जुर्म की सज़ा मिसाली तौर में दिया करो (सूरह 5:आयत 38)
- गुनाह और बुराई बदआमालियों के खिलाफ भरपूर जद्दो जहद करो (सूरह 5:आयत 63)
- मुर्दा जानवर व खून व सूअर का मांस निषेध हैं (सूरह 5: आयत 3)
- शराब और नशीली दवाओं से खबरदार रहा करो(सूरह 5:आयत 90)
- जुआ मत खेला करो बर्बादी है, (सूरह 5:आयत 90)
- दूसरों की धर्म व आस्था का मजाक ना उड़ाया करो (सूरह 6: आयत 108)
- लोगों को धोखा देने के लिये नाप तौल मे बेईमानी मत करो ( सूरह 6: आयत 152)
- खूब खाओ पियो लेकिन हद पार ना करो ( सूरह 7:आयत 31)
- मस्जिदों में इबादत के वक्त अच्छे कपड़े पहना करो (सूरह 7:आयत 31)
- जो तुमसे मदद और हिफाज़त और पनाह के तलबगार हो उसकी मदद और हिफ़ाज़त किया करो (सूरह 9:आयत 6)
- हर तरह से पाक साफ रहा करो (सूरह 9:आयत 108)
- अल्लाह की रहमत से कभी निराश मत होना, (सूरह 12:आयत 87)
- अज्ञानता और जहालत के कारण किए गए बुरे काम और गुनाह अल्लाह माफ कर देगा, तौबा किया करो (सूरह 16:आयत 119)
- लोगों को अल्लाह की तरफ हिकमत अहिंसा और नसीहत सच के साथ बुलाओ, (सूरह 16:आयत 125)
- कोई किसी दूसरे के गुनाहों का बोझ नहीं उठाएगा, (सूरह17: आयत 15)
- मिसकीनी और गरीबी के डर से बच्चों बच्चियों की हत्या मत करो, (सूरह 17:आयत 31)
- जिस बात का इल्म न हो उसके पीछे (Argue) मत पड़ो, (सूरह 17:आयत 36)
- निराधार और अनजाने कामों से परहेज़ करो, (सूरह 23: आयत 3)
- दूसरों के घरों में बिला इजाज़त मत दाखिल हो, (सूरह 24:आयत 27)
- जो अल्लाह में यकीन रखते हैं, अल्लाह उनकी हिफाज़त करेगा, करता है (सूरह 24:आयत 55)
- ज़मीन पर आराम और सुकून से चलो, इंसानो पर रहम मोहब्ब्त से रहो (सूरह 25:आयत 63)
- अपनी दुनियावी ज़िन्दगी को अनदेखा मत करो (सूरह 28:आयत 77)
- अल्लाह के साथ किसी और को मत पुकारो, सबसे अफज़ल दोनो जहांन का बनाने वाला है (सूरह 28:आयत 88)
- समलैंगिकता से बचा करो ये प्राकृतिक सिस्टम के विरोध है, परिवारो मर्द औरत के रिश्ते को खत्म करने का शेतानी फितना है (सूरह 29:आयत 29)
- अच्छे कामों की नसीहत किया करो और बुरे कामों से रोका करो रुका करो (सूरह 31:आयत 17)
- एय लोगो ज़मीन पर शेखी और अहंकार से इतरा कर मत चलो (सूरह 31:आयत 18)
- अल्लाह सभी गुनाहों को माफ कर देगा सिवाय शिर्क के (सूरह 39:आयत 53)
- अल्लाह की रहमत से मायूस मत होना (सूरह 39:आयत 53)
- बुराई को भलाई से खत्म करो (सूरह 41:आयत 34)
- पवित्र नमाज़ से अपने काम अंजाम दो (सूरह 42:आयत 38)
- तुम सब मे ज़्यादा इज़्ज़त वाला वो है जिसने सच्चाई और भलाई इन्साफ इख्तियार किया हो (सूरह 49:आयत 13)
- दीन मे रहबानियत, हैवानियत व दहशत मौजूद नहीं (सूरह 57:आयत 27)
- अल्लाह के यहां इल्म वालों के दरजात बुलंद हैं (सूरह 58:आयत 11)
- ग़ैर मुसलमानों के साथ उचित व्यवहार प्रेम और दयालुता और अच्छा व्यवहार करो.. (सूरह 60:आयत 8)
- अपने आप को नफ़्स की हर्ष पाक रखो | (सूरह 64:आयत 16)
- अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगो, गुनाह से बचो, वो माफ करने और रहम करने वाला है, (सूरह 73:आयत 20)