द्वारा : अरुण सिंह
कांग्रेस ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में 1943 में भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया था. लेकिन उस वक्त कम्युनिस्टों की सोच अलग थी. यह एक ग़लत फ़ैसला था और यह तबसे उन्हें सताता रहा है.
उन्होंने अपने आधिकारिक दस्तावेज़ों में यह स्वीकार किया है कि उस वक्त लिया गया फ़ैसला सही नहीं था. यह दूसरे विश्व युद्ध का समय था. तब नाज़ी सेनाएं सोवियत संघ को निशाना बना रही थीं. इसका असर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर भी साफ़ था जो उस वक्त सोवियत संघ के गहरे प्रभाव में थी.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने विश्व युद्ध को ‘जनता का युद्ध’ कहा. इस युद्ध में जर्मनी, इटली और जापान की सेनाएं एक तरफ थीं तो दूसरी तरफ सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस और अमरीका की सेनाएं थीं. यानी ब्रिटेन सोवियत संघ का सहयोगी था.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी विश्लेषणों के बाद इस नतीजे पर पहुंची कि ब्रिटेन के ख़िलाफ़ भारत छोड़ो आंदोलन चलाने से नाजी सेनाओं को हराने के लिए मित्र राष्ट्र की सेनाओं की कोशिशों को धक्का लगेगा।