चीन की आर्थिक-राजनैतिक व्यवस्था

दैनिक समाचार

1840 से 1949 तक चीन सैकड़ों साल गुलाम रहा. जापान, अमेरिका, ब्रिटेन, जारशाही के दौर का रूस आदि साम्राज्यवादी देश, चीन के कुछ हिस्से पर प्रत्यक्ष रूप से शासन कर रहे थे, तो कहीं अप्रत्यक्ष तौर पर अपनी वित्तीय पूँजी के बल पर असमान सन्धियों के जरिये चीन को लूट रहे थे.

चीन में गाँधी, नेहरू…जैसे नेता भी थे, जिन्हें चीन की जनता ने आजमाया, परन्तु वे फेल हुये.

चीन की जनता ने 1917 की रूस की महान समाजवादी अक्टूबर क्रान्ति से प्रेरणा लेते हुए, मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा को अपनाया तथा भगत सिंह की विचारधारा से मिलते-जुलते क्रान्तिकारी-माओ त्से-तुंग- के नेतृत्व में अपनी आजादी की लड़ाई लड़ी.

आर-पार की जंग में चीन की जनता की जीत हुई और साम्राज्यवादी शक्तियाँ बुरी तरह हार गयीं.

लड़ाई के दौरान चीन में भी देश के बँट जाने का सवाल खड़ा हुआ था, जब अमेरिका ने माओ को धमकी दिया कि ‘‘अगर यांग्त्सी नदी को चीन की जन मुक्ति सेना पार करेगी तो अमेरिका परमाणु हमला करेगा.’’

यांग्त्सी नदी के उस पार का चीन यदि विरोधियों के हाथ में रह जाता तो इसका मतलब था, चीन का दो भागों में बँट जाना. माओ को किसी भी कीमत पर चीन का बँटवारा मंजूर नहीं था. उन्होंने अमेरिका को ललकारा और कहा कि, ‘हम तुम्हारे परमाणु बम को कागजी शेर समझते हैं!’

इतिहास गवाह है कि चीन की जनमुक्ति सेना ने यांग्त्सी नदी पार करके अमेरिकी साम्राज्यवाद को खदेड़ दिया.

इस प्रकार जहाँ गाँधी अपना देश बाँट देने को मजबूर होते हैं, वहीं माओ अपनी जान जोखिम में डाल कर, अपने देश को टूटने से बचा लेते हैं!

चीन की जनता ने साम्राज्यवादियों को ऐसे भगाया कि आज तक चीन में उनके पाँव नहीं पड़ सके. उनकी सारी सम्पत्ति जब्त कर ली गई!!

भारत के दलाल पूँजीपतियों की तरह साम्राज्यवादियों की राजसत्ता को माओ ने आत्मसात नहीं किया, बल्कि उनकी सेना के मुकाबले अपनी सेना, उनकी पुलिस के मुकाबले अपनी जन मिलिसिया, उनकी अदालत के मुकाबले अपनी जन अदालत, उनकी नौकरशाही के मुकाबले क्रान्तिकारी बुद्धिजीवियों की जन कमेटियाँ बनायीं और साम्राज्यवादियों और उनकी दलाली करने वाले पूँजीपतियों तथा सामंतों से युद्ध किया और उनकी राजसत्ता को उखाड़ फेंका!

चीन में समस्त विदेशी पूँजी व उनके दलालों की पूँजी जब्त कर ली गयी.

“जो जमीन को जोते-बोवे,
वही जमीन का मालिक होवे”
का सिद्धान्त लागू करके, भू-सामन्तों की सारी जमीन छीन ली गयी तथा किसानों में बाँट दी गयी. भू-सम्पत्ति का उन्मूलन कर दिया गया.

जो सामन्ती गुण्डे लड़ने पर आमादा हुये, उन्हें परास्त कर दिया गया. जिन सामन्तों ने लड़ने के बजाय आत्मसमर्पण किया, उन्हें आवश्यकतानुसार जमीन का टुकड़ा देकर आम आदमी की तरह जीने के लिये छोड़ दिया गया!

जो भूमिहीन, गरीब व मध्यम किसान थे, वे ही राजसत्ता के मालिक बन कर ऊँचे पदों पर बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियाँ संभालने लगे.

चीन में माओ त्से-तुंग की अगुवाई में ‘वैज्ञानिक समाजवादी राजसत्ता’ स्थापित की गयी अर्थात ‘समाजवादी उत्पादन पद्धति’ अपनायी गयी.

चीन के विकास की नीति, मजदूर वर्ग की कम्युनिस्ट पार्टी ने किसानों के सहयोग से बनाया और लागू किया.

चीन में जमीन का सामुदायिक मालिक बनते ही किसानों ने अधिक परिश्रम किया, और मशीनों से आधुनिक खेती से पैदावार बढ़ी. पैदावार बढ़ने से किसानों की क्रयशक्ति बढ़ी. बाजार में खरीदने-बेचने वालों की संख्या बढ़ गयी. इस प्रकार बाजार का विस्तार हुआ तथा बाजार की मांग को पूरा करने के लिये उद्योगों का विस्तार किया गया. उन उद्योगों में बेरोजगारों को काम मिल गया.

आधुनिक श्रम के बल पर उसकी अर्थव्यवस्था लगातार मजबूत होती जा रही है. उसके पास 5 ट्रिलियन डालर से ज्यादा विदेशी मुद्रा का भण्डार है, जो भारत की अर्थव्यवस्था से दो गुना से भी ज्यादा है.

चीन के बौद्ध पुरोहितों ने कभी चीन को ‘विश्वगुरू’ नहीं कहा.

सन् 1949 में क्रांति से पहले तक चीन विकास के मामले में बहुत पीछे था. 40 देश उससे आगे थे. चीन विदेशी कर्ज में डूबा हुआ था.

उस वक्त तक चीन को ‘अफीमखोरों का देश’ कहा जाता था, ‘मच्छरों का देश’ कहा जाता था, ‘वेश्याओं के देश’ के नाम से बदनाम था.

वही देश आज ‘समाजवादी अर्थव्यवस्था’ के कारण ज्ञान-विज्ञान मेंं बहुत आगे बढ़ा हुआ है..औधोगिक उत्पादन और परचेजिंग पावर पैरिटी, जीडीपी के क्षेत्र में अमेरिका तक को पछाड़ कर नं०-1 पर आ गया है, और जल्द ही नामीनल जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में भी अमेरिका को पछाड़ कर आगे निकल जाएगा.

चीन में सभी बड़े उद्योग व बुनियादी उद्योग राज्य यानी सरकारी स्वामित्व में हैं, और राज्य मजदूर वर्ग की सरकार के नियंत्रण में है, और सरकार जनता के नियंत्रण में है.

वहाँ सरकारी संस्थान मजबूती के साथ विकास कर रहे हैं..अपने विराट पैमाने के समाजवादी उत्पादन के बल पर दुनिया की लगभग आधी जरूरतें अकेले चीन पूरा कर रहा है.

चीन में जो निजी उद्यम हैं, वे आकार में छोटे हैं और सरकारी नियंत्रण में हैं जिसे राजकीय पूँजीवाद कहा जाता है. चीन में जो कुछ छोटे पूँजीपति के रूप में दिखाई देते हैं, वे सिर्फ आभासी पूँजीपति हैं..वे भारतीय पूँजीपतियों जैसे बेलगाम कारपोरेट पूंजीपति नहीं हैं! उनकी सारी पूँजी राज्य के नियंत्रण में है क्योंकि सारे बैंक राज्य के अधीन हैं और सारी जमीन सरकारी है. वे पूँजी लेकर जायेंगे कहाँ? वे मेहनतकश जनता की सरकारी पिंजड़ों में बन्द पक्षी की तरह कार्यरत हैं.

चीन में बढ़ते हुए क्रम में आयकर कड़ाई से लागू हैं, अधिक आमदनी वालों को अधिक टैक्स चुकाना पड़ता है. अगर कोई पूँजीपति भ्रष्टाचार करता है तो उसे फाँसी तक दी जा सकती है.

सन् 1949 से लेकर अब तक सैकड़ों पूँजीपतियों को फाँसी पर चढ़ाया जा चुका है, जबकि एक भी मजदूर को फाँसी पर नहीं चढ़ाया गया..उन्हें छोटी-मोटी गलतियों के लिये छोटी-मोटी सजायें देकर छोड़ दिया जाता है.

यातायात के सभी बडे़ साधन सरकार के मालिकाने में हैं. निजी मालिकाने के अधीन कार, आटो रिक्शा, जैसी छोटी-मोटी गाडि़याँ हैं..

चीन में सूचना एवं संचार तंत्र सरकार के अधीन है..राजकीय कल-कारखानों, बैंकों आदि का लगातार विस्तार होता जा रहा है उसमें निजी मालिकों का कोई दखल या नियंत्रण नहीं है.

चीन में प्रत्येक सक्षम व्यक्ति के लिये काम करने की जिम्मेदारी अनिवार्य कर दी है..काम न करने वालों को घृणा के नजरिये से देखा जाता है तथा उन्हें दण्डित भी किया जाता है, जबकि काम करने वाले मेहनतकशों को सम्मानित किया जाता है..

गर्भवती औरतों, बूढ़ों, विकलागों, बीमार लोगों को काम न करने की छूट है.

चीन में बाल श्रम प्रतिबंधित है. कोई भी बच्चा पढ़ाई के दौरान इधर-उधर घूमता मिल जाय तो स्थानीय प्रशासन उसे पकड़ कर तुरन्त स्कूल में ले जाता है.

चीन में निजी सम्पत्ति के मुकाबले सार्वजनिक सम्पत्ति का दायरा बढ़ता जा रहा है..

विरासत के अधिकारों को बहुत सीमित और प्रभावहीन कर दिया गया है. चीन में कृषि का औद्योगीकरण बढ़ता जा रहा है.

चीन में सभी बच्चों को सार्वजनिक विद्यालयों में ‘एक समान शिक्षा’ मुफ्त में दी जा रही है. शिक्षा का खर्च उद्योग से हासिल किया जा रहा है. सबको वैज्ञानिक शिक्षा दी जा रही है. अंधविश्वास फैलाने वाली शिक्षा प्रतिबंधित है.

फलस्वरूप चीन में 97 प्रतिशत लोग नास्तिक हैं. वहाँ मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम के बीच खाईं न्यूनतम है.

चीन में देहातों का इतना विकास हुआ कि शहरों और देहातों में कोई विशेष अन्तर नहीं रह गया है. जो सुविधायें शहरों में हैं, वही सुविधायें देहातों में भी सुलभ हो गयी हैं, जिससे आबादी संतुलित है.
चीन में सिर्फ 3% आस्तिक हैं.

चीन में औसत उम्र लगभग 90 वर्ष है. चीन का औद्योगीकरण विराट पैमाने का समाजवादी औद्योगीकरण है. चीन का औद्योगीकरण लगातार विस्तार करता जा रहा है. पिछले एक वर्ष (2015) में चीन ने इतना लोहा पैदा किया था, जितना कि अमेरिका पिछले 100 साल में भी पैदा नहीं कर सका था..

इसी तरह मोबाइल, टी.वी., कम्प्यूटर, कार, घड़ी, मोटर सायकिल आदि का विराट उत्पादन हो रहा है.

चीन के सस्ते सामानों से पूरी दुनिया का बाजार पट गया है और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार अपने सभी सक्षम नागरिकों को रोजगार दे चुकी है. बेरोजगारी के नाम पर वहाँ थोड़े से अर्ध-बेरोजगार हैं जो और अच्छे रोजगार की तलाश में हैं.

चीन का क्षेत्रफल 95,72,900 वर्ग किमी, जनसंख्या 1,38,23,23,332 और प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 8,280 डालर (1 डालर=75 रुपए लगभग), विदेशी मुद्रा भण्डार 5 ट्रिलयन डालर से ज्यादा, रेल नेटवर्क में 86 हजार कि.मी. से ज्यादा, बुलेट ट्रेन की लाइने 25,000 कि.मी.
रोड नेटवर्क 42,37,500 किमी. (ये सारे आंकड़े 2015 तक के हैं)

दूनिया में सबसे अधिक टेलीफोन, मोबाइल एवं इण्टरनेट धारक चीन में हैं..

दुनिया के दस सबसे बड़ें बैंकों में 4 सबसे बड़े बैंक चीन के हैं.

उपरोक्त तथ्यों एवं आँकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि- बाजार में चल रहा युद्ध, सिर्फ दो देशों के बीच का नहीं, बल्कि दो उत्पादन व्यवस्थाओं के बीच का युद्ध है. इसलिए इस युद्ध को चीन-भारत के बीच का युद्ध कहना बहुत ओछी बात होगी.

वास्तव में, यह समाजवादी उत्पादन व्यवस्था और पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था के बीच का युद्ध है, अर्थात समाजवाद और पूँजीवाद के बीच की प्रतियोगिता है जिनसे पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देश विनाशकारी युद्ध-विश्वयुद्ध के द्वारा मानवता और सृष्टि की तबाही का खतरा पैदा हो गया है.

इस प्रकार भारत और चीन के बीच जो बुनियादी अन्तर है, वह दो देशों के बीच का अन्तर नहीं बल्कि दो व्यवस्थाओं के बीच का अन्तर है. यह अन्तर समाजवादी और पूँजीवादी व्यवस्था के बीच का अन्तर है.

जहाँ समाजवादी व्यवस्था चीन को उत्थान की ओर अग्रसर करती जा रही है, वहीं भारत की अर्थव्यवस्था, अर्धसामन्ती-अर्धऔपनिवेषिक बनी हुई है, जिससे देश पिछड़ता जा रहा है..

यहाँ सामन्ती ढाँचे पर साम्राज्यवाद के दलालों द्वारा पूँजीवाद का विकास किया जा रहा है, जो मंदी के साथ बेरोजगारी, महंगाई और टैक्स बढ़ाकर कंगाली की ओर धकेल रहा है, साथ ही सबसे सस्ती मजदूरी, पूंजीपतियों की ऋण माफी, सारे सरकारी क्षेत्रों के बैंक, बीमा, रेल, भेल,सेल, पोर्ट, एयरपोर्ट, शिक्षा,स्वास्थ्य आदि का निजीकरण का तोहफा देकर, हजारों करोड़ के कर्ज लेकर विदेश भागने की छूट देकर, छोटे-बड़े पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों को ऋणमाफी देकर मालामाल किया जा रहा है, साथ ही, मेहनतकश जनता को जिनकी पीढ़ियों के सामाजिक श्रम से बनी पूंजी से वंचित करने के कारण भारत पतन की ओर लगातार बढ़ रहा है.

साथ ही, महँगाई और भ्रष्टाचार के साथ छंटनी, बेरोजगारी भयानक रूप से बढ़ रही है और जिन हाथों के द्वारा देश का विकास होना था, उन हाथों को पूंजीवादी सरकार निकम्मा बना रही है.

आज जरूरत पूरे मेहनतकशों को जागरूक कर हर क्षेत्र में आंदोलन छेड़ने की, सभी धर्मों, जातियों, नस्लों, लैंगिक भेदभावों को त्यागकर सारे पूंजीवादी शोषकों के खिलाफ सर्वव्यापी अनिश्चितकालीन हड़तालों द्वारा पूरी तरह नाकाबंदी कर रूस, चीन, वियतनाम, क्यूबा, वैनेज्वेला आदि जैसे देशों की तरह समाजवादी क्रांति सम्पन्न कर मेहनतकशों के खुशहाल भारत बनाने की….

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