द्वारा : आभा शुक्ला
टूथपेस्ट करके साँस छोड़ी, लड़की खींची चली आई…
परफ्यूम लगाया, 2-4 लड़कियाँ आकर लिपट गई….
सेविंग की, देखकर लड़की मर मिटी….. नई लांच बाइक लेकर निकले तो लड़की खुद से पीछे आकर बैठ गयी….
मतलब पुरुषों से संबंधित चीजों के विज्ञापन का सार यही है कि मंजन करो,लड़की पटाओ….. परफ्यूम लगाओ,लड़की पटाओ….. क्रीम लगाओ लड़की पटाओ….. जैसे लड़की भावनाएं,प्रेम कुछ नही देखती बस मंजन, परफ्यूम और बाइक देखती है…….
वो असल मे समाज का मनोविज्ञान जानते हैं….. पर आपको कभी ये बेज्जती नही लगती क्या…… क्या एक विवाहित और पत्नी के लिए समर्पित पुरुष परफ्यूम इसीलिए लगाता है…. मंजन इसीलिए करता है कि लड़की पटा सके….. नही…. कतई नही…..
यही है स्त्री का बाजारीकरण….. पूंजीवाद कभी नैतिकता नही देखता…… वो सिर्फ मुनाफ़ा देखता है….. आपको ये कुछ भी लगता हो पर मुझे स्त्री, पुरुष दोनो के सम्मान पर चोट लगते हैं ऐसे विज्ञापन…….
मेरा आपसे सवाल है कि क्या स्त्री को परफ्यूम, मंजन,क्रीम लगाकर बिस्तर तक ले जाया जा सकता है…. ??
क्या पूंजीवाद मे इतना सस्ता हो गया है आपका वजूद…. ??