क्या साम्यवाद खुद को निष्प्रभावी होने से बचा पाएगा?

दैनिक समाचार

द्वारा : अरुण सिंह

1952 और 1957 के आम चुनावों में देश की मुख्य विपक्षी कम्युनिस्टों की मौजूदा स्थिति क्या है?

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के लोकसभा में दो सीटें हैं जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की दो सीटें हैं और रिव्योल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी की एक सीट है.

आलोचकों का मत है कि भारत जब ग्रामीण इलाकों से शहरी इलाकों की तरफ बढ़ रहा है वहीं कम्युनिस्ट इसके विपरीत दिशा में चलते हुए शहरी इलाकों से ग्रामीण इलाकों के रास्ते जंगलों की तरफ बढ़ रहा हैं.

वामपंथी पार्टियां अपने मजबूत गढ़ पश्चिम बंगाल में सत्ता गंवा चुकी है और अब कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कैडर वैचारिक स्तर पर अपने विरोधी भारतीय जनता पार्टी की ओर शिफ्ट कर रहे हैं. जिन वामपंथी पार्टियों ने संसदीय लड़ाई के बदले सशस्त्र लड़ाई का रास्ता चुना वे भी संकट के दौर से गुजर रहे हैं.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के नेता कोबाड गांधी ने कुछ साल पहले इकानामिक एंड पॉलिटिकल वीकली (इपीडब्ल्यू) पत्रिका में लिखा था कि उन लोगों को आत्मचिंतन करना होगा कि उनकी पकड़ जंगल के छोटे से हिस्से तक क्यों सीमित हो गई है, क्यों वे मैदानी इलाकों में नहीं बढ़ पा रहे हैं और क्योंकि वे युवा पीढ़ी तक पहुंचने में नाकाम हो रहे हैं.

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