गाँधीजी के सहयोगी भामाशाह- बद्री अहीर

दैनिक समाचार

द्वारा : बी एम प्रसाद

बद्री यादव गाँव-हेतमपुर, थाना-जगदीशपुर, जिला-भोजपुर, आरा, बिहार के रहने वाले थे। वे उस गाँव के एक जमींदार ठाकुर लाल सिंह की धोखाघड़ी का शिकार होकर अपनी सारी जोत उसके यहाँ गिरवी रखकर उसी के यहाँ खेत मजदूर का काम करने लगे थे. एक बार ठाकुर ने अपनी लड़की की शादी में उनको पगड़ी बांधने पर सरेआम अपमानित कर दिया. फिर क्या अपमान से बागी होकर वे पैदल आरा शहर आ गये. 6 फीट की ऊँचाई, गठीला बदन, रौबदार मूंछें, गजब का आकर्षक व्यक्तित्त्व था उनका. उसी समय आरा का सुपरिटेंडेंट मिस्टर डॉल का ट्रांसफर दक्षिण अफ्रीका के नेटाल में हो रहा था. रेलवे स्टेशन पर जब वे अंग्रेज ऑफिसर का सामान उठा कर ट्रेन में रखवा रहे थे तब ऑफिसर ने उनको दक्षिण अफ्रीका ले जाने का प्रस्ताव दे डाला. मरता क्या न करता ? वे 60 वर्षीय मिस्टर डॉल के साथ डरबन, नेटाल, दक्षिण अफ्रीका चले गये. कुछ समय बाद उस ऑफिसर की मृत्यु हो गयी और उसकी 30 वर्षीय पत्नी ने 35 वर्षीय बद्री अहीर से विवाह कर लिया. लगभग दस वर्षों के बाद उनकी नई पत्नी का देहांत हो गया और वे अपनी काबिलियत के दम पर बद्री पैलेस के मालिक बन चुके थे. फिर उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों का संगठन बनाया ओर गांधी जी को 10,000 पौंड की बड़ी रकम भारतीयों का केस लड़ने के लिए दिया. फिर वे गांधी जी को लेकर अपने गांव हेतमपुर से होते हुए चम्पारण तक ले गये. यही नहीं चम्पारण यात्रा सफल बनाने के लिए उन्होंने हेतमपुर से जगदीशपुर तक के समस्त लोगों को इकट्ठा किया और यात्रा को एक सफल आंदोलन का रूप दिया. अचानक उनके दिमाग में अपनी पैतृक जमीन और बीबी बच्चों का खयाल आया और हेतमपुर में आकर लालसिंह की जमींदारी को नीलामी में खरीदा. उनके तीन बेटे शिव प्रसाद बद्री, शिवदयाल बद्री और रामनरेश बद्री थे. सबसे छोटे बेटे रामनरेश बद्री के हवाले जमीन जायदाद करके बाकी दोनों बेटों के साथ वे पुनः बद्री पैलेस डरबन, नेटाल, दक्षिण अफ्रीका चले गये. क्या आप बद्री अहीर को जानते हैं ? बद्री अहीर गांधी जी के साथ जेल जाने वाले पहले भारतीय थे. उन्होंने गांधी जी के शरुआती दिनों में काफी आर्थिक मदद की थी और चम्पारण आन्दोलन को कामयाब बनाने के लिये भारत भी आये थे. हां हां, वही बद्री अहीर, जिसे कुछ लोग ‘बदरिया अहिरा’ भी कहते हैं.
बद्री अहीर जी बिहार के हेतमपुर गांव के रहने वाले थे, जो आज भी भोजपुर (आरा), बिहार, में पड़ता है. 20 वीं सदी के शुरू में वे अफ्रीका में गिरमिटिया मज़दूर से सफल कारोबारी बन चुके थे। गांधी के साथ अफ्रीका में उन्होंने पहली गिरफ्तारी दी थी. वो सन 1902 में मि. डॉल के साथ दक्षिण अफ्रीका गये थे. सन 1916 शुरू में गांधी जी को अफ्रीका में निरामिषहारी गृह बनाने की ज़रूरत हुई तो बद्री जी अपनी पूरी नकदी लेकर पहुंच गए. ये और बात है कि गांधी जी ने उनमें से 10,000 पाउंड ही लिये जिसका उल्लेख खुद गांधी जी अपनी आत्मकथा में किया है. उस वक़्त ये बहुत बड़ी रकम थी.
जुलाई, 1917 में गांधी जी भारत मे चंपारण आंदोलन चलाने आये तो बद्री अहीर जी अपनी नकद पूंजी के साथ भारत भी आ धमके. उन्होंने आंदोलन को सफल बनाने में बहुत श्रम और धन खर्च किया। वे उनके साथ बेतिया भी गए. हजारों किसानों को अपने बल बूते पर चम्पारण यात्रा से जोड़ा. चम्पारण आंदोलन में बद्री अहीर की भूमिका को देख कर उस समय के अखबारों ने उनके बारे में खूब लिखा. खुद गांधी जी ने बद्री जी के बारे में अपने लेखों और संस्मरणों में जम कर तारीफ की. एक तरह से शुरू के दौर में बद्री जी ने गांधी के लिए वही काम किया जो भामाशाह ने प्रताप के लिए किया था, मगर खेद है कि इतिहास में उनको असली मुकाम नहीं मिला.
बद्री अहीर के तीन बेटे थे…शिवप्रसाद बद्री, शिव दयाल बद्री और रामनरेश बद्री. दोनों बड़े बेटों का परिवार अब भी नेटाल, दक्षिण अफ्रीका में है. जबकि तीसरे बेटे रामनरेश बद्री का परिवार हेतमपुर में है।

          शिवप्रसाद बद्री और शिवप्रसाद बद्री नेटाल में बैरिस्टर बने जबकि राम नरेश बद्री हेतमपुर, जगदीशपुर, बिहार में 250 एकड़ जोत के एक बड़े प्रतिष्ठित नागरिक बने. आज भी नेटाल, डरबन में बद्री प्रसाद के वंशज केपटाऊन, जोहांसबर्ग, प्रिटोरिया, डरबन, में कई प्रतिष्ठित पदों पर आसीन हैं.
  हां, अब बिहार सरकार के निर्देश पर भोजपुर के डी.एम. ने उनके गाँव 'हेतमपुर' को आदर्श ग्राम घोषित करने का निर्णय जरूर लिया है. ये और बात है कि कांग्रेस ने बापू के नाम पर राजनीति तो बहुत की मगर इतिहास के इन नायकों को ठिकाने लगा दिया।

[भारतवासी पार्टी द्वारा जनहित में जारी।।।]

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