बात उन दिनों की है, जब हमें दिल्ली आये कुछेक साल ही हुये थे, लगभग 1990 के आसपास. नई नई नौकरी लगी थी. तीन बच्चे और किराये का घर।
एक दिन पिताजी के अचानक आ धमकने से पत्नी तमतमा उठी… “लगता है, बूढ़े को पैसों की ज़रूरत आ पड़ी है, वर्ना यहाँ कौन आने वाला था…। अपने पेट का गड्ढा भरता नहीं, घरवालों का कहाँ से भरोगे ?”
मैं नज़रें बचाकर दूसरी ओर देखने लगा। नल पर हाथ-मुँह धोकर सफ़र की थकान दूर कर रहे थे। सोचा अगर पिताजी पैसे मांगेंगे तो क्या बहाना करूं. कह दूंगा इस बार मेरा हाथ कुछ ज्यादा ही तंग हो गया। बड़े बेटे का जूता फट चुका है। वह स्कूल जाते वक्त रोज भुनभुनाता है। पत्नी के इलाज के लिए पूरी दवाइयाँ नहीं खरीदी जा सकीं। बाबूजी आप भी इस समय आये जब महंगाई से घर चलान मुश्किल हो रहा है।
घर में बोझिल चुप्पी पसरी हुई थी। खाना खा चुकने पर पिताजी ने मुझे पास बैठने का इशारा किया। मैं शंकित था कि कोई आर्थिक समस्या लेकर आये होंगे…। पिताजी कुर्सी पर उठकर बैठ गए। एकदम बेफिक्र…!!! “सुनो” कहकर उन्होंने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा। मैं सांस रोककर उनके मुँह की ओर देखने लगा। रोम-रोम कान बनकर अगला वाक्य सुनने के लिए चौकन्ना था।
वे बोले… “खेती के काम में घड़ी भर भी फुर्सत नहीं मिलती। इस बखत काम का जोर है। रात की गाड़ी से वापस जाऊँगा। तीन महीने से तुम्हारी कोई चिट्ठी तक नहीं मिली…, जब तुम परेशान होते हो, तभी ऐसा करते हो। उन्होंने जेब से सौ-सौ के सौ नोट निकालकर मेरी तरफ बढ़ा दिए, “रख लो। तुम्हारे काम आएंगे। गन्ने की फसल अच्छी हो गई थी। घर में कोई दिक्कत नहीं है, तुम बहुत कमजोर लग रहे हो। ढंग से खाया-पिया करो। बहू का भी ध्यान रखो।”
मैं कुछ नहीं बोल पाया। शब्द जैसे मेरे हलक में फंसकर रह गये हों। मैं कुछ कहता इससे पूर्व ही पिताजी ने प्यार से डांटा… “ले लो, बहुत बड़े हो गये हो क्या?” “नहीं तो।” मैंने हाथ बढ़ाया। पिताजी ने नोट मेरी हथेली पर रख दिए। बरसों पहले पिताजी मुझे स्कूल भेजने के लिए इसी तरह हथेली पर पंजी या दस्सी टिका देते थे, पर तब मेरी नज़रें आज की तरह झुकी नहीं होती थीं। मैंने डबडबाई आँखों से रुपयों की तरफ देखा और मन में आये बहानों पर शर्मशार होने लगा।
आज जब बच्चे सयाने हो गये तो पिता की बातें ज्यादा अच्छी लगती हैं. उनका मार्गदर्शन सर्वश्रेष्ठ लगने लगा।
दोस्तों एक बात हमेशा ध्यान रखें…. माँ-बाप अपने बच्चों पर बोझ हो सकते हैं, बच्चे उन पर बोझ कभी नहीं होते है।
आर रवि विद्रोही
25.04.2022