परसो अमेरिका के 6 मालवाहक विमान, हथियार लेकर पोलैंड की धरती पर उतरे. ये हथियार रूस के विरुद्ध उपयोग होंगे. इन्हें पोलैंड से यूक्रेन भेजा जाएगा.
इस बीच रूस ने यूक्रेन को लगातार हथियार भेजे जाने पर अमेरिका व ब्रिटेन को गम्भीर नतीजे भुगतने की चेतावनी दी है, साथ ही पोलैंड को गैस सप्लाई भी रोक दी है, क्योंकि पोलैंड ने गैस सप्लाई के बदले रूबल में भुगतान करने से इंकार कर दिया.
ब्रिटेन व अमेरिका लगातार यूक्रेन को घातक हथियार भेजते रहे है. वही कल ब्रुसेल्स में यूरोपीय यूनियन सहित 39 देशों ने एक बैठक कर यूक्रेन युद्ध की समीक्षा की व हर महीने इस तरह की बैठक करने का निर्णय लिया.
इस तरह इस युद्ध मे अब एक तरह से सभी डिप्लोमेटिक चैनल भी बन्द हो गए व यह युद्ध भी गम्भीर चरण की तरफ बढ़ चला है.
उधर रूस अपनी गोपनीय कूटनीति के अनुसार दक्षिण व पूर्व यूक्रेन में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए चल पड़ा. पश्चिम लगातार रूस पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा रहा है तो वे ही प्रतिबन्ध घुम फिरकर पश्चिम के विरुद्ध लग रहे है. रूसी मुद्रा प्रतिबंधों के बावजूद अमेरिकन डॉलर, यूरो व ब्रिटिश स्टर्लिंग के मुकाबले मजबूत हो रही.
पश्चिम द्वारा यूक्रेन को नियमित हथियारो की सप्लाई को देखते हुवे इस युद्ध के और अधिक फैलने व पोलैंड पर रूस के हमले से इंकार नही किया जा सकता.
लगातार यूक्रेन को बेसुमार आधुनिक हथियार दिए जा रहे है व नाम यह लिया जा रहा है कि यह यूक्रेन को सहायता के रूप में दिए जा रहे है. पश्चिम दरसअल दुनिया के सामने यह नही कह रहा है कि वह स्वयं यूक्रेन के नाम पर युद्ध लड़ रहा है.
2014 में यूक्रेन तख़्तापलट के बाद CIA ने ISIS की तर्ज पर यूक्रेन में एक सेना गठित की थी, जिसका नाम अजोव सेना है. इस सेना ने नाजी हत्यारों को महिमामंडन कर पूर्व यूक्रेन में लगभग 14 हजार रूसी मूल के नागरिकों की हत्या की थी. इस नव नाजियों के समूह में CIA ने अलग अलग देशों के भाड़े के सिपाही भर्ती किये व उन्हें ट्रेनिंग दी गई. इस नाजी सेना का मुख्यालय मर्यापुल शहर में है व साथ ही खरकोव, गेर्सन, सुमि, कीव व लीव में इसके मजबूत ठिकाने है.
यूक्रेन सेना की रीढ़ ही अजोव सेना है व जबतक इस सेना को तहसनहस नही किया जाता तब तक रूसी सेना भी अजेय नही होगी. यह युद्ध जिस मोड़ पर पहुंचा है व जिसतरह के प्रतिबंध रूस के विरुद्ध लगे है उससे लग रहा है कि युद्ध जल्द ही समस्त यूरोप को अपनी जद में ले लेगा.
अब तक पोलैंड के अलावा ब्रिटेन ही खुलकर रूस के विरुद्ध सामने आया है. इटली, फ्रांस व जर्मनी खुलकर ब्रिटेन व पोलैंड की तरह रूस के खिलाफ सामने नही आ रहे है.
अमेरिका की चाल है कि रूस के विरुद्ध किसी समय सोवियतों के हिस्सा रहे व समाजवादी मुल्क रहे देशों को ही भिड़ा दिया जाय. इसी चाल की कड़ी में अभी हाल ही में पिछले सप्ताह लातविया, जॉर्जिया, एस्टोनिया , लिथुआनिया आदि 4 देशों के राष्ट्राध्यक्षो को अमेरिका ने यूक्रेन भेजा था ताकि रूस इनपर हमला करे.
पश्चिम के बाहर के लोग अमेरिका की इस चाल को समझ रहे है मगर पोलैंड जैसे पूर्व समाजवादी देशों के राष्ट्राध्यक्ष यह नही समझ रहे है.
अमेरिका चाहता है कि पश्चिम के मजबूत देशों को युद्ध से बचा लिया जाय जिससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था को नुकसान ना हो व पूर्व समाजवादी देश यूक्रेन की भांति लड़ भीड़ मरे.
सोवियतों के विघटन व समाजवादी गणराज्यों के बिखरने के बाद यह देखा गया है कि स्वतंत्रता, समानता, प्रेम, भाईचारे व सहअस्तित्व के मूल्यों को जबरदस्त आघात लगा है व हथियारो की होड़ अचानक बढ़ गई है.
जिन मूल्यों व आदर्शो को लेकर फ्रांसीसी क्रांति हुई, पश्चिम में पुनर्जागरण हुआ व रूस में अक्टूबर क्रांति हुई वे मूल्य आचानक धूलधूसरित हुवे.
रीगन व गोर्बाचेव के मध्य हथियारो की होड़ को बंद करने हेतु जो संधि हुई थी, जिससे आशा बंधी थी कि अमेरिका व सोवियत अब नए हथियार नही बनाएंगे मगर अमेरिका ने इस संधि को अपनी जीत मानकर ना केवल टूटी सोवियतों में नियंत्रण करना चाहा, बल्कि रूस पर लगातार युद्ध थोपे व उसे चारो तरफ से घेरा.
अमेरिका ने उसके बाद निरन्तर उदार लोकतांत्रिक मुल्कों को बर्बाद किया, युद्ध थोपे व गृह युद्ध भड़काए. पूरे तेल क्षेत्र में नियंत्रण के बाद वह रूस की छाती पर चढ़कर बैठा.
आज अगर रूस अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए यूक्रेन में युद्ध मैदान में आ डटा है तो उसके पीछे अमेरिका व पश्चिम की इस छल कपट व आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण की राजनीति को दोषी मानना चाहिए. पश्चिम इससे पहले अफगानिस्तान, इराक, लीबिया व सीरिया में कामयाब होता रहा मगर अब ही उसे वास्तविक चुनौती मिली है.
एक बार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फिर दुनिया ब्यापक व गहरे युद्ध मे फसी है जिसने लोकतंत्र व मानव व्यवहार की मूल कमजोरी को सामने ला दिया है, जिसमे पूरी व्यवस्था की रचना ही बेलगाम व स्वतंत्र व्यक्ति करता है व उसे अपनी इच्छा अनुसार चलाता हैं.
(साभार)