सत्ताधारी दल को तर्क न करने वाले पसंद हैं

दैनिक समाचार

मैंने आज तक चार बीबी वाला मुसलमान नहीं देखा।

40 बच्चों वाला तो छोड़ो, 10 बच्चों वाला मुसलमान भी नहीं देखा।

अलबत्ता मेरे खुद के ताऊ जी के 18 बच्चे हुए, दादी के 10 हुए

मेरा एक हिंदू दोस्त चौदह भाई बहन थे।

मैं ऐसे बहुत सारे हिंदुओं को जानता हूं जिनके पिता की एक से ज्यादा पत्नियां थी

मेरा एक साथी है जिसकी तीन बीवियां हैं और वह मुसलमान नहीं है।

फिर भी हम लगातार बकर बकर करते रहते हैं कि मुसलमान चार शादियां करते हैं और उनके 40 बच्चे होते हैं।

हमें आंख खोल कर अपने आसपास की सच्चाई से कुछ नहीं सीखना होता, कोई कुछ बता दे उसी को सच मानकर जीवन गुजार देते हैं।

वैसे तो हमारे धर्म ने हमें यही सिखाया है कि प्रश्न मत करो, तर्क मत करो, श्रद्धा पूर्वक चुपचाप सब स्वीकार कर लो

उसने हमारे दिमागों को कुंद कर दिया है।

मैंने एक बार कहा कि आजकल मुसलमान ट्रेनों में नॉन वेज खाना ले जाने में डरने लगे हैं कि कोई बीफ का इल्जाम लगाकर उन्हें लिंच ना कर दे।

इस पर हमारे एक रिश्तेदार बोले, तो यह लोग भी तो पाकिस्तान में हिंदुओं को परेशान करते हैं।

मैंने जवाब दिया पाकिस्तान में मुसलमान क्या कर रहे हैं उसके लिए भारत के मुसलमान से बदला लिया जाएगा क्या?

वह बोले, हां! हैं तो यह सब एक ही।

मैंने कहा अगर एक मुसलमान की गलती की सजा दूसरे को दी जा सकती है तो फिर तो यह नियम हिंदू पर भी लागू होना चाहिए।

फिर तो हाथरस में अगर हिंदुओं ने बलात्कार किया तो सजा आपको दी जा सकती है।

बोले, क्यों? हमें कैसे दी जा सकती है। हम अलग हैं, वे अलग हैं।

मैंने कहा, यह तो कमाल है। आप एक मुसलमान की गलती की सजा दूसरे मुसलमान को देने के लिए तैयार हैं लेकिन एक हिंदू की गलती की सज़ा दूसरे हिंदू को देने के लिए तैयार नहीं हैं।

हिंदू के लिए एक नियम मुसलमानों के लिए दूसरा नियम देश ऐसे कैसे चलेगा ?

लेकिन वे आखिर तक ना ना में सिर हिलाते रहे और मुझ से सहमत नहीं हुए।

असल में, टीवी और व्हाट्सएप नें दिमागों को बिल्कुल सोचने लायक नहीं छोड़ा है।

अब हम सामान्य तर्क इस्तेमाल करने की हालत में भी नहीं बचे हैं।

सत्ताधारी दल को ऐसी ही बेवकूफ जनता चाहिए जो ना तर्क इस्तेमाल कर सके, ना सवाल उठा सके।

इससे उसकी सत्ता को कभी खतरा नहीं पैदा होता।

मैं इस बात से डरता हूं कि अगर देश की जनता आपस में धर्म के आधार पर एक दूसरे से इतनी नफरत करेगी और सामान्य तर्क का भी इस्तेमाल नहीं करेगी तो आखिर यह देश कैसे बचेगा!

(हिमांशु कुमार की वाल से साभार)

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