आज अलविदा जुमा है। आज मस्जिदों में अलविदा जुमे की नमाज़ होती है। दिल्ली की फ़तेहपुरी मस्जिद में भी होती है। फ़तेहपुरी मस्जिद एक हिंदू की वजह से महफूज़ रह सकी, वरना हो सकता था कि आज वहाँ मस्जिद नहीं होती ना नमाज़ हो रही होती।
हुआ ये था कि जब सन् 1857 की जंग में क्रांतिकारी हारे, मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र क़ैद कर लिए गए तो अंग्रेज़ों ने दिल्ली के लालक़िले से लेकर जामा मस्जिद तक बीच में जितनी इमारतें थीं, सबको बारूद से उड़ा दिया। वहाँ अंग्रेज़ी सेना के परेड का मैदान बना दिया। लालक़िला एक सौ बीस एकड़ में फैला था, उसकी पचासी फ़ीसद इमारतें गिरा दीं। जामा मस्जिद पर क़ब्ज़ा कर लिया, वहाँ अंग्रेज़ी सेना के घोड़े बंधने लगे और फ़ौज रहने लगी। फिर जामा मस्जिद को नीलाम कर दिया। जामा मस्जिद को नीलामी में मेरठ के एक मुसलमान क़साई ने ख़रीदा जो अंग्रेज़ी सेना को गोश्त सप्लाई करता था। ऐसे जामा मस्जिद तो बच गई, लेकिन फिर अंग्रेज़ों ने फ़तेहपुरी मस्जिद की नीलामी कर दी। जिसमें बोली लगी और नीलामी में उन्नीस हज़ार की बोली लगाकर फ़तेहपुरी मस्जिद को चाँदनी चौक के हिन्दू राय लाला चुन्नामल ने ख़रीद लिया।
अंग्रेज़ों ने अब लाला जी से कहा कि आप तो हिन्दू हैं, मस्जिद अब आपकी हुई, आपको मस्जिद से क्या मतलब। आप ऐसा कीजिए कि मस्जिद में दुकानें खुलवाकर बाज़ार लगवा दीजिए। लेकिन राय लाला चुन्नामल ने ऐसा नहीं किया। वो मस्जिद की हिफ़ाज़त करते रहे। मस्जिद को जस का तस बनाए रखा। मस्जिद अपने स्वरूप में बची रही, वहाँ लाला जी का ताला पड़ा रहा, वो समय-समय पर सफ़ाई करवाते रहते, लेकिन मस्जिद की बेअदबी नहीं होने दी।
जब बीस साल बाद अमन क़ायम हो गया तो अंग्रेज़ों ने लाला जी के वंशजों को मुआवज़े में चार गाँव देकर मस्जिद मुसलमानों को लौटा दी।
~ डॉ. शारिक़ अहमद ख़ान