मौज़ूदा पावर कट के पीछे कोयले का काला खेल

दैनिक समाचार

द्वारा : अमजद शाह

इसमें अडानी और टाटा का कितना बड़ा रोल है और मोदी सरकार किस तरह मुख्य रूप से दोनों के फ़ायदे के लिए बिजली की कीमत बढ़ाने की साज़िश कर रही है।

देश की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 400 गीगावॉट है। फिलहाल मांग है 220 गीगावॉट। यानी आधा। दिक्कत क्यों है?

क्योंकि देश में कोयला आधारित 173 बिजली उत्पादन इकाइयों में से 105 में 25-30% कोयला बचा है।

मोदी सरकार ने 700 ट्रेनें रद्द कर कोयले की सप्लाई बढ़ाने की बात कही है। इससे बड़ी नालायकी और कुछ हो नहीं सकती।

लेकिन पिछले दरवाज़े से मोदी सरकार राज्यों पर महंगा कोयला आयात करने का दबाव डालती है। पिछले साल के मुकाबले विदेशी कोयला 4 गुना महंगा है।

अगर राज्य सरकारें 10% कोयला भी इम्पोर्ट करें तो आपका बिजली बिल सीधे 1000 रुपये बढ़ जाएगा। यानी देश में कोयला होने के बाद भी बाहर से खरीदने की कोशिश है।

केंद्र सरकार यह भी कहती रही है कि वह राज्यों को कोयला देने के बजाय उन निजी (अडानी जैसे) प्लांट्स को देगी, जो इम्पोर्टेड कोयले का इस्तेमाल करते हैं और कोयला महंगा होने से प्लांट बंद करके बैठे हैं।

मोदी सरकार का खेल यह है कि पहले राज्य 10% कोयला इम्पोर्ट करेंगे। फिर उन्हें अडानी और टाटा के प्लांट में भेजेंगे। वहां बिजली बनेगी और महंगी कीमत जनता चुकायेगी।

अगर मोदी सरकार से पूछा जाए कि रेलवे के 450 से ज़्यादा कोल रैक्स में से कितने अडानी और टाटा के प्लांट में जाते हैं तो बोलती बंद हो जाएगी। क्योंकि देश के खदानों से निकला 40% कोयला प्राइवेट प्लांट्स में जाता है, जो महंगी बिजली बनाते हैं।

यानी नरेंद्र मोदी की सरकार जनता के पैसे से प्राइवेट पावर प्लांट को सब्सिडी दे रही है। अडानी की दौलत यूं ही नहीं बढ़ रही है।

अब राज्यों के पास पावर कट या फिर 12-20 रुपये प्रति यूनिट की दर से प्राइवेट बिजली खरीदने के सिवा कोई विकल्प नहीं होता।

राज्य बिजली इकाइयां तेज़ी से घाटे में जा रही हैं। वे उपभोक्ताओं पर घाटे का बोझ डाल तो रही हैं। लेकिन इसका नतीजा चौतरफ़ा महंगाई और छोटे-मझोले उद्योगों के बंद होने के रूप में सामने आ रहा है, जो असल में नौकरियां देती हैं।

यकीन मानिए, मोदी सरकार कोई बिजली सुधार नहीं करने जा रही है।

बीते अक्टूबर और अब कोयले की फ़र्ज़ी कमी की आड़ में पावर कट से साफ़ है कि बिजली के निजीकरण का रास्ता खोला जा रहा है।

क्या हर महीने 100 यूनिट के 3000 रुपये (सब जोड़कर) दे पाएंगे आप?

नहीं तो बिना बिजली के ज़िन्दगी की आदत डाल लीजिए।

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