शिक्षा का निजीकरण

दैनिक समाचार

NEP-2020 में प्रावधान है कि अब UGC की जगह HEFA बनाया जाएगा। अब यूनिवर्सिटी अनुदान आधारित न होकर कर्ज आधारित चलेंगी।उसी का क्रियान्वयन बुलेट ट्रेन की स्पीड से किया जा रहा है।

अब सरकार UGC के द्वारा विश्विद्यालयों को अनुदान नहीं देगी।बल्कि HEFA( Higher education Funding Agency) के द्वारा लोन देगी।

यानी जो कर्ज HEFA के द्वारा दिया जाएगा।उसकी भरपाई विश्विद्यालयों को तय समय में करना होगा।अब खुद ही समझिए कि विश्वविद्यालय ये कर्ज कहाँ से भरेगा? छात्रों और उनके अभिभावकों से ही वसूल करेगा न? अपने खर्च को बचाने के लिए संविदा पर कम वेतन वाले प्रोफेसर रखे जाएंगे यानी नई स्थाई शिक्षक भर्ती होना आसमान में पत्थर मारने जैसा होगा। जो छात्र JRF निकालने और PHd करने के बाद एक सुरक्षित -स्थाई प्रोफेसर बनकर देश की शिक्षा व्यवस्था में अहम योगदान देना चाहते हैं। ये सरकार उनके सपनों पर बुलडोजर चलाकर जमीदोंज कर देने वाली है।

दिल्ली विश्वविद्यालय(DU) में पिछले दिनों 1075 करोड़ रुपये का कर्ज HEFA से अप्रूव हुआ है। DU को ये कर्ज 10 वर्ष में 20 छमाही इंस्टालमेंट में चुकाना होगा। कर्ज नहीं चुकाने पर ब्याज सहित वसूली किया जाएगा।

हरियाणा के मुख्यमंत्री ने भी साफ कर दिया है कि अब यूनिवर्सिटी अपना खर्च खुद जुटाएं।सभी विश्वविद्यालय आर्थिक रूप से सक्षम बनें। हरियाणा के विख्यात “चौधरी देवी लाल विश्विद्यालय(CDLU)” को साफ बोल दिया गया है कि-‘ आपको सरकार से कोई फंड नहीं मिलेगा।कर्ज लेकर काम चलाइये।’ CDLU 40 करोड़ रुपये का कर्ज लेने का फैसला भी कर चुका है। जिसकी भरपाई भी छात्रों और उनके अभिभावकों से ही किया जाएगा।

तो अब आप सभी लोग नई शिक्षा नीति-2020 के कसीदे पढ़ने वाले महाज्ञानी शिक्षाविदों/प्रोफेसरों/अध्यापकों/परम ज्ञानी अभिभावकों,यूटूबरों,ऑनलाइन-ऑफलाइन कोचिंग संस्थानों सहित बड़े बड़े मीडिया घरानों से पूछिए कि क्या इसी शिक्षा नीति से देश को विश्वगुरु बनाने का डंका पीटा जा रहा था? इस तरह शिक्षा को निजी घरानों को बेचने और उसे बाजारु माल बनाने से सबको कैसे पढ़ाया जा सकेगा? शिक्षा का निजीकरण कर, सरकारी यूनिवर्सिटी को कर्ज में डालकर और फिर उसको कौड़ियों के दाम नीलाम कर सबको शिक्षित कैसे किया जा सकेगा? क्या इसी छात्रविरोधी-जनविरोधी नीतियों को लागू करने का डंका प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री, कुलपति,प्रोफेसर तक बजा रहे थे?

जब विभिन्न सेमिनारों/शैक्षिक संगोष्ठियों में NEP-2020 में दर्ज छात्रविरोधी-जनविरोधी नीतियों की आलोचना/विरोध देश के कुछ प्रगतिशील छात्र व नागरिक संगठन कर रहे थे तो बाकी कुछ कथित शिक्षित लोग दांत चियार के मजाक उड़ा रहे थे कि- ” ऐसा कुछ नहीं होगा।ये लोग सिर्फ नकारात्मक बात कर रहे हैं। ऐसा होगा तो देखा जाएगा, हमें सकारात्मक रहकर बदलाव को स्वीकार करना चाहिए वगैरह वगैरह।” अब उनसे ही पूछा जाना चाहिए कि अब ये क्या हो रहा है साहब जी ? क्या अब भी सकारात्मक रहकर शिक्षा के बाजारीकरण-निजीकरण को स्वीकार कर लेना चाहिए?

खैर भारत के प्रधानमंत्री ने सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित भारत की जनता को साफ- साफ बोला है कि आप लोग आत्मनिर्भर बनिये।बाकायदा “आत्मनिर्भर भारत” अभियान ही लांच कर दिया गया। तो इसका मतलब साफ ही था कि देश की जनता अपने अपने हिसाब से सबकुछ करें।अब सरकार उनके लिए कुछ नहीं करने वाली है। जब कोरोनाकाल में देश की जनता ऑक्सिजन ,ईलाज, अस्पतालों, भोजन, सुरक्षा के अभाव में कीड़े मकोड़े की तरह मर रही थी तभी उसी समय सरकार ने छात्रविरोधी-देशविरोधी नई शिक्षा नीति- 2020 लाकर उसी आत्मनिर्भर भारत अभियान का अभिन्न हिस्सा था। उसी समय देश में किसान विरोधी-जनविरोधी 3 काले कृषि कानून और श्रमिक विरोधी-देशविरोधी 4 लेबर कोड भी लाये गए।

NEP-2020 लागू होने के बाद आने वाले 15 वर्ष में देश के सभी विश्विद्यालयों/कॉलेजों को आर्थिक-एकेडमिक-प्रशासनिक रूप से स्वायत्त करके, सरकार शिक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी से भागना चाहती है। सभी विश्विद्यालयों/कॉलेजों को फंड देना बंद कर देगी। यानी सभी शिक्षा संस्थान पूर्ण रूप से प्राइवेट लिमिटेड हो जाएंगे। साथ ही तब तक देश और दुनिया के कॉरपोरेट घरानों को देश मे top-100 निजी विश्विद्यालयों को खोलने और भारत के विश्विद्यालयों को खरीदने का खुला निमंत्रण इसी नीति के तहत दे दिया है। बाकी जो लोग यूनिवर्सिटी में नहीं जा सकते हैं उनके साथ घर बैठे ऑनलाइन डिग्री बेची जाएगी। महंगे लर्निंग गैजेट और इंटरनेट से भी मुनाफा और ऑनलाइन एडुकेशन शॉपिंग complex से अलग मुनाफा। यानी देश की सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था सम्राज्यवादी कारपोरेट घरानों के शैतानी मुँह का निवाला हो जाएगी। करोड़ों गरीब छात्रों को शिक्षा से वंचित कर दिया जाएगा।

अगर आज सचेत होकर NEP-2020 के खिलाफ साझा आवाज नहीं उठेगी तो आने वाले वक्त में पढ़े लिखे लोग अपने बच्चों को नहीं पढ़ा पाएंगे। अनपढ़ या कम पढ़े लिखे अभिभावकों की हम जैसी संतान तो कुछ इसलिए पढ़ पाए कि देश में कुछ सरकारी कॉलेज/यूनिवर्सिटी थी। लेकिन जब सबकुछ प्राइवेट होगा तो हम अपने नस्लों को कैसे पढ़ा पाएंगे?

समाज में जिन लोगों को निजी विश्विद्यालयों/कालेजों में ज्यादा रुचि है।जिन्हें प्राइवेट कॉलेजों में महान पढ़ाई पढ़कर अपना शानदार भविष्य दिखता है। उनसे कहिये की हरियाणा सोनीपत स्थित एक प्राइवेट अशोका यूनिवर्सिटी है।उसमें स्नातक( UG) की एक साल की फीस ही लगभग 10 लाख रुपये है।अब तो NEP-2020 में ग्रेजुएशन 4 साल का हो गया है तो उसके हिसाब से 35-40 लाख रुपये लगेंगे।वहाँ जाकर नाम लिखा लें और पढ़ ले शानदार पढ़ाई। लेकिन सरकारी यूनिवर्सिटी/कॉलेज की खिलाफत अपने गोबर दिमाग से न करें।

आप आप ही तय करिये की आप या आपके संपर्क के कितने लोग अशोका, लवली, गंगोटिया जैसी कथित देशी निजी विश्विद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ाने की औकात रखते हैं? समाज के कितने % लोग ऐसे मुनाफाखोर यूनिवर्सिटीज में अपने बच्चों को दाखिला भी दिला पाएंगे?

आने वाले वक्त में जब 100 विदेशी प्राइवेट यूनिवर्सिटी खुलेगी तो कितने लोगो को पढ़ने का मौका मिलेगा? ये बात ठंडे दिमाग से सोचकर ही NEP-2020 को रद्द करने की बात कीजिये या फिर उसका गुणगान करके देश की शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद बनाने में कारपोरेट घरानों के सेवक सरकारों की मदद करिये।

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