मेरे मन की बात

दैनिक समाचार

द्वारा : इं. एस. के. वर्मा

एलआईसी यानि कि भारत की सबसे बड़ी और विश्वसनीय एकमात्र बीमा कंपनी।
शायद यही स्लोगन मैं up आज़ाद लिखना इसकी गुलामी का कारण बन चुका है।
४ मई यानि कल से देश की इस सबसे बड़ी सरकारी बीमा कंपनी का आईपीओ सरकार ने बाजार में उतार दिया है।
यानि कि इसे भी प्राइवेट हाथों में बेचने की तैयारी हो चुकी है।
मोदी सरकार है जनाब यहां उड़ना सख्त मना है!
जो भी उडेगा उसके पंख कतर (काट) लिये जाएंगे।
इसीलिए कहा जाता है कि मोदी है तो मुमकिन है।
कांग्रेस ने सत्तर सालों की अथक मेहनत और लगन से देश में जो भी कुछ राष्ट्रीय संपत्ति के नाम पर बनाया है, मौजूदा सरकार उस सबको प्राइवेट हाथों में सौंपकर (कांग्रेस का सफाया) करने का कार्य बड़ी ही खूबसूरती से कर भी रही है।
कांग्रेस का सत्ता से सफाया तो हो ही चुका है किन्तु देश में कहीं पर भी ऐसा कुछ नहीं बचना चाहिए जो कांग्रेस की उपलब्धि के नाम से गिना जाए,यही तो कांग्रेस का वास्तविक सफाया कहा जाएगा और सरकार अपने इस मंसूबे में भी कामयाबी की बुलंदियों को छूती जा रही है।
अभी स्पीड थोड़ा कम जरुर है किन्तु बेचने की शुरुआत तो पिछले कई साल से हो ही चुकी है।
ज़नता ने साहब के कहने का वास्तविक मतलब नहीं समझा तो इसमें किसी का क्या दोष?
याद करिए क्या कहा था!
मैं देश नहीं बिकने दूंगा,मैं देश नहीं झुकने दूंगा!
अर्थात देश के अलावा सबकुछ बेच डालूंगा बाकी कुछ भी ऐसा नहीं छोड़ूंगा,जिसकी नीलामी न करा दू!
देश भी झूकने नहीं दूंगा, लेकिन कोई एक भी कमर सीधी करके खड़ा नहीं रह सकेगा, इतनी बेरोजगारी और मंहगाई व भूखमरी भी बढा दूंगा। भले ही जनता को मुफ्त राशन का झोला हाथों में देना पड़े, मगर उनके हाथों से रोजगार छीन लूंगा।
हालांकि यह सब बातें मन घडन्त है क्योंकि माननीय मोदी जी ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा था, उन्होंने तो केवल इतना ही कहा था कि मैं देश नहीं बिकने दूंगा,मैं देश नहीं झुकने दूंगा।
इसके अलावा यह सब बातें जो हम लिख रहे हैं वें जनता की नहीं बल्कि हमारे मन की बाते हैं। यानि कि मनघड़ंत ही कह सकते है। इसे सच्चाई बिल्कुल भी नहीं मानना है क्योंकि मन की बातें हैं और मन में कुछ भी आ सकता है, जरुरी तो नहीं कि वो सब सच भी हो ?
बहुत पुरानी ग्रामीण कहावत है भैंसो की लडाई और झुंडो (झुरमुटो) का नुक़सान!
यानि जब दो भैंसे लड़ते हैं तो उनके आसपास की वनस्पति का विनाश होना स्वाभाविक है।
कुछ ऐसा ही संघर्ष तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच नहीं हो रहा है,जिसमें जनता का नुक़सान हर तरफ से हो रहा है?
बहरहाल इस डब्ल्यू डब्ल्यू एफ के रिंग में कांग्रेस और बीजेपी ही है जनता तो सबकुछ बर्बाद होते देखकर भी दर्शक दीर्घा में बैठकर ताली बजा रही है और खुश न भी हो तो आयोजको पर अधिक फर्क नहीं नहीं पड़ता है।
क्योंकि टिकट के पैसे (वोट) तो पहले ही वसूल कर लिया जाता है वो किसी भी कीमत पर वापस करने का प्रावधान नहीं होता है।
जनता भी एकबार अपना कीमती वोट देकर, बेबस और लाचार बनकर तमाशबीन बनी रहतीं हैं क्योंकि संविधान में ऐसा कोई नियम नहीं बनाया गया है जो आम जनता को अपना वोट देने और नेता से उसके द्वारा किए गए कार्यों को लेकर असंतुष्ट होने की दशा में वापस लेने का कोई कानून या नियम हो!
एकबार वोट दे दिया तो पांच साल तक किसी धारावाहिक की तरह चुपचाप बैठकर तमाशा देखती रहती रहे या आँखे बंद कर लें, मगर चिल्ला जरूर सकती है, लेकिन नेता आँखे और कान कसकर बंद कर लें, चिल्लाने का भी कोई फायदा नहीं बल्कि नुकसान ही होगा। क्योंकि भूखा प्यासा इंसान चिल्ला भी कितनी जोर से सकता है?
और चिल्लाकर भी अपनी बची खुची शक्ति का ह्रास ही करेगा।
कहावत भी बनी है कि कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी मदमस्त चाल चलता जाता है।
हाथी से स्पष्ट मौजूदा सरकार से है, कुत्ते किसके लिए प्रयुक्त हो सकता है वो बुद्धिमान व्यक्ति खुद चिंतन कर सकते हैं।
बहरहाल गारंटी और गनीमत यही है कि भले ही विपक्षी जुमलेबाज होने का आरोप लगाते रहे लेकिन देश नहीं बिकने दूंगा और देश नहीं झुकने दूंगा वाला वादा बिल्कुल खरा उतरेगा!
आखिर कोई इन्सान कितना भी झूठा क्यों न हो, किन्तु मजबूरी ही सही लेकिन कभी कभी वह भी सच बोल जाता है।
कांग्रेस के लिए तो यह दौर सुनामी का दौर है,सुनामी की तबाही के बाद क्या क्या बचेगा और क्या नहीं, हर अनुभवी व्यक्ति जानता है।
कांग्रेस अब सिसकती और दम तोड़ती चिड़िया के समान फड़फड़ा रही है जो विरोध करने की हालत में तो बिल्कुल भी नहीं है। बल्कि खुद के अस्तित्व और अपने बाप दादाओं द्वारा बनाई इज्जत और शोहरत व राष्ट्रीय संपत्ति को भी बचा पाए तो बहुत बड़ी उपलब्धि कही जाएगी।

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