1984 को इंदिरा गांधी की हत्या कर दी जाती है. इन परिस्थितियों में इंदिरा गांधी के ज्येष्ठ पुत्र 40 वर्षीय शोकाकुल राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनाए जाते हैं.
21 मई 1991, राजीव गांधी 46 वर्ष की अल्पायु में उन्हें तमिलनाडु में बम से उड़ा दिया जाता है. शरीर के चिथड़े चिथड़े उड़ जाते हैं.
2019 में देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अपनी और अपने पद, दोनों की गरिमा को धूल में मिलाकर देश की विदेश नीति के लिए अपनी जान देने वाले 46 साल के स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के लिये कहते हैं, “तुम्हारा बाप भ्रष्टाचारी नंबर वन होकर मरा।”
आपको दुख नहीं होता? आपको अफसोस नहीं होता? आप इसे आम मानते हो.
देश को विज्ञान और टैक्नोलॉजी की राह पर अग्रसर बनाने वाले भारतवर्ष के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित मर चुके भूतपूर्व प्रधान मंत्री के विषय में इतने बड़े देश का प्रधानमंत्री ऐसा बयान देता है. और उस बयान को नॉर्मल बना दिया जाता है.
दिल्ली के अभूतपूर्व बहुमत से चुने हुए मुख्य मंत्री को कोई आवारा गाड़ी पर चढ़कर थप्पड़ मार देता है. बार-बार यही होता है. और आपको दुख नहीं होता? अफसोस नहीं होता?
आप उस पर चुटकले बनाते हो. हंसते हो. उनका वाला पिटा. इस बार हमारा वाला नहीं पिटा. इस देश की ये संस्कृति, ऐसे संस्कार कभी नहीं रहे. और राजनीतिक संस्कृति तो ऐसी कभी नहीं रही.
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि मैं राजीव गांधी की वजह से जिंदा हूं. नेहरू ने सार्वजनिक तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी जी की तारीफ की. सरदार पटेल ने नेहरू को हमेशा अपना नेता माना. गांधी जी के कहने पर पी एम पद के लिए चूं तक नहीं की. घोर आलोचक होने के बावजूद लोहिया ने नेहरू के लिए ऐसे शब्द कभी नहीं कहे.
चीन से युद्ध हारने के बाद भी तब के संघ के नेताओं ने नेहरू को कायर कभी नहीं कहा. अब मर चुके नेहरू के लिए आपने पिछले 8 साल में क्या-क्या अपशब्द नहीं बोले? नेहरू की आत्मा तक को निचोड़ लिया.
और अब राजीव गांधी का नंबर. हम यह कैसी राजनीतिक संस्कृति विकसित कर रहे हैं? और लोग हंस रहे हैं.
संवेदनशीलता नहीं दिखा सकते तो अपनी अपरिपक्वता और मूर्खता का प्रदर्शन तो मत करिये.
यही देश है जो नेहरू की मौत के बाद पूछ रहा था अब हमारा क्या होगा ? दुनिया सवाल कर रही थी भारत बिखर जाएगा ? यही देश है जो नेहरू की मौत पर लिख रहा था- अब कौन.
यही देश है जो इंदिरा की मौत पर बिलख रहा था. गांव-गांव में लोग मुंडन करा रहे थे. तेरहवीं कर रहे थे.
यही देश है जो राजीव की मौत के बाद सुन्न हो गया था. और अब इसी देश को उनकी मौत का मजाक बनाते चुटकले फॉरवर्ड करने में शर्म नहीं आती.
मरने के बाद तो दुश्मन के लिए भी बुरा नहीं बोलते. हम ऐसे कब से बन गए? सवाल सिर्फ मोदी का नहीं है. सवाल किसी एक थप्पड़ का भी नहीं है. सवाल हमारी अपनी संस्कृति और पहचान का है. आज बड़े-बड़े पत्रकार केजरीवाल को लेकर चुटकले बना रहे हैं.
शर्म है. धिक्कार है. तुम्हारे ज्ञान पर. तुम्हारी सोच पर. तुम्हारे होने पर. सच कहता हूं अगली बार से ऐसा कुछ करो तो अपने घर में रखी किताबों को और अपने बुजुर्गों की यादों को आग लगा देना. क्योंकि तुम ऐसा बनोगे, उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा.