एक कहानी कहीं पढ़ी थी जिस में एक बादशाह अपने वज़ीर को उसकी किसी बहुत ही गंभीर गलती पर सज़ा सुनाता है। बादशाह कहता है कि या तो तुम 100 कच्चे प्याज़ एक ही बैठक में खा लो या फिर भरे दरबार मे 100 जूते खा लो। वज़ीर सोचता है कि भरे दरबार मे सब के सामने 100 जूते खाने से बड़ी बेइज़्ज़ती होगी, इस से बेहतर है कि 100 कच्चे प्याज़ ही खा लिया जाए। जब वज़ीर को प्याज़ खाने के लिए दिया गया तो कुछ कच्चे प्याज़ खाने के बाद ही उसकी हालत खराब होने लगती है। आंख और नाक से पानी बहने लगते हैं।
अब वज़ीर कहता है कि मुझ से अब और प्याज़ नहीं खाया जाएगा। आप मुझे 100 जूते ही लगा लो। जब वज़ीर को दो चार जूते पड़ते हैं तो उसके होश ठिकाने लग जाते हैं। अब वज़ीर कहता है कि मुझे जूते मत मारो, मैं प्याज़ खाऊंगा। ऐसा करते करते वह जूते भी खाता जाता है और प्याज़ भी खाता जाता है। आखिर में जब 100 प्याज़ की संख्या पूरी होती है तब तक वह 100 जूते भी खा चुका होता है।
यहां तक तो यह एक चुटकुला था मगर वास्तविकता यह है कि हम बहुत ही निम्नस्तर की एक मूर्ख कौम हैं। हमने अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए हर उस व्यक्ति के हाथों में अपना नेतृत्व सौंप दिया जो हमें अपने शासनकाल में 100 प्याज़ भी खिलाये और साथ में 100 जूते भी लगाए। दरअसल हम नेतृत्व के महत्व को ही नहीं समझते। जस्टिस काटजू ने भारत के 90% लोगों को मूर्ख कहा था। काटजू बिल्कुल सही थे।
हमें इस बात की थोड़ी सी भी परवाह नहीं है कि जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे किसान सरकार से अपनी मांग मनवाने के लिए अपना ही मूत्र पी रहे हैं, हम तो बस योगी जी द्वारा किसानों के 1 लाख से कम के ऋण माफ किये जाने से खुश हैं। हम “एक के बदले दस सर” लाने का वादा करके सत्ता में आने वालों से यह नहीं पूछते की कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान क्यों फांसी पर चढ़ा रहा है। हम तो मोदी जी के सियाचिन में दीवाली मनाने से ही प्रफुल्लित हैं।हमें इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं है कि चीन भारत अरुणाचल प्रदेश छः से अधिक ज़िलों का नाम बदल क्यों बदल रहा है। हम तो यह सोचकर ही मंद मंद मुस्काते हैं कि मोदी ही दुनिया का एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जो पाकिस्तान को करारा जवाब दे सकता है। हमें ज़रा भी फिक्र नहीं कि अमेरिका में जातीय हिंसा में अबतक 8 से अधिक भारतीय मार डाले गए। हम तो मोहसिन, इखलाक, मिन्हाज, पहलू खान इत्यादि के मारे जाने को मुल्लों का विकेट गिरने से जोड़कर देखते हैं। हमें वन रैंक वन पेंशन के लिए जंतर मंतर पर महीनों तक संघर्ष करते सैनिक नहीं दिखाई दिए लेकिन हम तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक पर हवा में अपनी टोपियां उछालने लगते हैं। हमें इस बात की तनिक भी चिंता नहीं है कि हमारे समाज की 10000 से अधिक विधवा औरतें मथुरा और वृन्दावन में भीख मांग कर जीवनयापन कर रही हैं। हम तो तीन तलाक जैसे वाहियात मुद्दे पर हो रही बहस से ही खुश हो जाते हैं। हम ज़रा भी नहीं सोचते कि मोदी जी ने जो प्रतिवर्ष 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था उसका क्या हुआ लेकिन हम गौरक्षक और हिन्दू युवा वाहिनी जैसी संस्था द्वारा फैलाये गए धार्मिक उन्माद को देखकर ही अंदर अंदर खुश होते रहते हैं। हमें इस बात से कोई मतलब नहीं कि भारत में किसानों की आत्महत्या रुकी या नही, बस हम तो इस बात से खुश हैं कि मोदी जी ने लालबत्ती कल्चर खत्म कर दिया है। हमें इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं कि गंगा कितनी साफ हुई या साफ हुई भी की नहीं, लेकिन हम मोदी जी की बनारस में गंगा आरती और अक्षरधाम में पूजा करने से ही खुश हो जाते हैं। हमें इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं कि भारत में ट्रेन दुर्घटना कितनी अधिक बढ़ गयी है, लेकिन हम सरकार द्वारा बुलेट ट्रेन की घोषणा मात्र से ही उछलने लगते हैं। हमें आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार की कोई फिक्र ही नहीं है। हम तो बस यह सोचकर खुश हैं कि मोदी जी ने “सबका साथ, सबका विकास” का नारा दिया है।
अनेकों मिसालें ऐसी हैं जहां हम भारतीयों की संवेदनहीनता साफ दिखाई पड़ती हैं। हम बहुत गहरी नींद में सो रहे हैं। हमारी नींद इतनी गहरी हो चुकी है की हमारी संवेदना मृत हो चुकी है। हमारी कौम है ही इसी लायक की हमारा बादशाह हमें 100 जूते भी लगाए और 100 कच्चे प्याज़ भी खिलाये।
प्रो. सरोज मिश्र