और अब एलआईसी!

दैनिक समाचार

(कैरली टी वी के एग्जीक्यूटिव एडिटर के राजेंद्रन द्वारा प्रस्तुत “देशीयम सार्वदेशीयम”कार्यक्रम को साभार)

देश के सबसे देशभक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एलआईसी को बेच रहे हैं। एलआईसी देश का सबसे गौरवान्वित संस्थान है, जो लाखों को रोजगार और करोड़ों को सुरक्षा प्रदान करती है। एलआईसी का गठन तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1956 में 245 निजी बीमा कंपनियों और प्रोविडेंट सोसायटियों का राष्ट्रीयकरण करते हुए किया था। उस समय एलआईसी की पूंजी 5 करोड़ थी। 78 साल बाद आज एलआईसी की संपत्ति 37.4 लाख करोड़ रुपये है। इस प्रकार, एलआईसी आज दुनिया की सबसे बड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में से एक है। 2021 में एलआईसी का मुनाफा 24741 करोड़ रुपये था, तो एलआईसी ने नरेंद्र मोदी सरकार को 2,500 करोड़ रुपये का लाभांश दिया था । एलआईसी की देशभर में 113 डिवीजनों में 2048 शाखाएं और 15549 उप-केंद्र हैं। कर्मचारी और एजेंट के रूप में एलआईसी में 1323,000 लोग कार्यरत हैं। इतने महत्वपूर्ण संस्थान के शेयर बेचने का नरेंद्र मोदी सरकार का फैसला राष्ट्रहित में नहीं है. पहले चरण में 3.5 फीसदी शेयर बेचने का इरादा है, धीरे-धीरे बहुसंख्यक शेयर बेचे जाएंगे। एलआईसी के शेयर की कीमत को कॉरपोरेट फ्रेंडली बनाने की तैयारी भी गुपचुप तरीके से की गई है।

केरल के पूर्व वित्त मंत्री टीएम थॉमस आईसक एलआईसी शेयरों के मूल्य का निर्धारण करने में मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कॉर्पोरेट समर्थक रुख के बारे में कहा : “मोदी सरकार एलआईसी की वैल्यू को कम करके कॉरपोरेट्स की मदद कर रही है. जब केंद्र सरकार ने फरवरी माह में अपना मसौदा पेश किया, तो उसमे कहा था कि प्रति शेयर के कीमत 2,200 रुपये होगी। अब कह रहा है कि एक शेयर 930 रुपये में बेचेंगे । 2200 रुपये के शेयर की कीमत 930 रुपये कैसे तय की गई? जब किसी बीमा कंपनी के शेयर पहली बार बेचे जाते हैं तो कीमत कैसे निर्धारित की जाती है? इसका निर्धारण कुछ विशेषज्ञ परामर्शी द्वारा किया जाता है। एलआईसी के मामले में मिलमैन नाम की कंपनी शेयर की कीमत तय करती है। वे जांच कर बताएंगे कि निवेशक के नजरिए से स्टॉक की कीमत या कंपनी के एम्बेडेड वैल्यू क्या है । इस तरह एलआईसी की वैल्यू 5.4 लाख करोड़ रुपये बताई गयी है। एलआईसी के बाजार भाव इससे दो, तीन या चार गुना हो सकता है । जब भारत में निजी बीमा कंपनियों ने अपने शेयर जारी किए, तो शेयर की कीमत एम्बेडेड मूल्य के ढाई गुना पर तय की गई थी। इस को भी ध्यान में रख कर सरकार द्वारा फरवरी में प्रति शेयर के कीमत 2,200 रुपये तय की गई थी। लेकिन एम्बेडेड वैल्यू के 2.5 गुना के बजाय अब कीमत को घटाकर 1.1 गुना कर दिया गया है। स्वाभाविक रूप से, शेयर की कीमत भी गिर गई। जैसा कि उल्लेख किया गया है, जब निजी बीमा कंपनियों को 2.5 गुणा पर कैप किया गया था, एलआईसी के कीमत को 1.1 गुणा में सीमित कर दी, जबकि एलआईसी के पास निजी कंपनियों की तुलना में कई गुणा अधिक संपत्ति और पॉलिसियां है । इसलिए एलआईसी की वैल्यू कम से कम निजी कंपनियों द्वारा तय की गई कीमत के बराबर तय होनी चाहिए थी। ऐसे नहीं करने के कारण किसी ने नहीं दिया। एक तर्क यह है कि यूक्रेन के युद्ध के कारण बाजार में गिरावट आई है। फिर सवाल उठता है कि कुछ महीनों बाद युद्ध खत्म हो जाएगा, तब तक इंतजार क्यों नहीं किया? तय है, यूक्रेन युद्ध की आड़ में सरकार जल्दबाजी में एलआईसी के शेयर बेच रही है, किसकी मदद केलिए ?

एलआईसी देश के सबसे बड़े निवेशकों में से एक है। एलआईसी का देश के ज्यादातर कॉरपोरेट संस्थानों में निवेश है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जारी बांडों का सबसे बड़ा खरीदार भी एलआईसी है। वित्त वर्ष 2019-2020 के दौरान एलआईसी की ओर से केंद्र सरकार को 1.39 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया। इसके अलावा 1.28 लाख करोड़ राज्यों को दिए गए। नरेंद्र मोदी सरकार ऐसी एक महत्वपूर्ण संस्था का निजीकरण कर रही है।

देश और जनता को एलआईसी की कैसे जरूरत है, इस पर पीपी कृष्णन उपाध्यक्ष अखिल भारतीय बीमा कर्मचारी संघ ने कहा: “इस कदम को हम एलआईसी के निजीकरण की दिशा में पहला चरण मानते हैं। यहां जो होने जा रहा है वह 1956 से पहले के दौर की वापसी है, जब सिर्फ निजी बिमा कंपनियां होती थीं। अगर ऐसा होता है तो फिर से स्थिति वैसी ही हो जाएगी जैसे किस प्रकार निजी कंपनियों ने उस समय पॉलिसीधारकों और देश को लूटा था।

आज एलआईसी, पॉलिसी धारकों के हितों की पूरी तरह से रक्षा केलिए काम करती है। इसके बजाय, नए सेटअप में शेयरधारकों के हितों की रक्षा होगा, ताकि उन्हें अधिकतम लाभांश प्राप्त करने में मदद मिल सके । लाभांश बढ़ाने के लिए, एलआईसी के व्यवसाय की संरचना, फंड के उपयोग और उसके मुनाफे के वितरण आदि को समायोजित करने जा रही है। जब ऐसा होगा, तो यह स्वाभाविक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और कमजोर लोगों पर ध्यान दिए बिना होगा। आज एलआईसी के कारोबार में बड़ा हिस्सा ग्रामीण इलाकों से है, और आम जनता से है. आज, एलआईसी की पॉलिसी धारकों में से 72% की औसत वार्षिक आय 2 लाख रुपये से कम है। नए सेटअप में उस परिपाटी को एलआईसी आगे नहीं बढ़ा पाएगा क्योंकि निजी कंपनियां शहरी क्षेत्रों और अपेक्षाकृत उच्च आय वाले समूहों पर अपना ध्यान केंद्रित करती हैं। वर्तमान में एलआईसी का औसत वार्षिक प्रीमियम 16156 रुपये है लेकिन निजी कंपनियों का प्रीमियम 89004 रुपये है। जब एलआईसी और निजी कंपनियों के प्रीमियम में इतना बड़ा अंतर है, तब इसका पॉलिसीधारक किस वर्ग से होगा, इस पर ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। निजी कंपनियों के 78 प्रतिशत कार्यालय एक लाख से अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में स्थित हैं, जबकि एलआईसी के केवल 37 प्रतिशत कार्यालय ऐसे क्षेत्रों में हैं। एलआईसी के अधिकांश कार्यालय ग्रामीण क्षेत्रों या पिछड़े क्षेत्रों में स्थित हैं. इन क्षेत्रों में व्यापार कम है और मुनाफा भी। एलआईसी वहां बनी हुई है क्योंकि यह एक सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई है। नए सेटअप में ऐसा नहीं होगा।.

आज एलआईसी के कुल मुनाफे का 95 फीसदी पॉलिसीधारकों के पास जाता है। निजी कंपनियां पॉलिसीधारकों को केवल उनकी पार्टिसिपेटरी पॉलिसी के मुनाफे का भुगतान करती हैं। एलआईसी में भी यह सिस्टम शुरू होने जा रही है. अब सरकार एलआईसी के लाइफ फंड को दो भागों में बांट रही है, यानी बोनस पात्र ‘पार्टिसिपेटरी पॉलिसी और गैर-बोनस पात्र ‘नॉन-पार्टिसिपेटरी पॉलिसी। नॉन-पार्टिसिपेटरी पॉलिसियों के लाभ और बोनस अब शेयरहोल्डर्स को दिया जाएगा। इसके लिए, पार्टिसिपेटरी पॉलिसी के शेयरहोल्डिंग 95 से घटाकर 90 कर दी गई है। पॉलिसी धारक भी शेयर लेने पर लाभांश के पात्र होंगे, ऐसे प्रचार करने वाले लोगों को ध्यान रखना चाहिए, जो लाभांश आज तक पॉलिसीधारकों को मिल रहा था, वह अब शेयरधारक के लाभ में परिवर्तित हो जाएगा। इस प्रकार उन्हें भारी नुकसान होने वाला है।

सबसे बढ़कर, एलआईसी के फंड का इस्तेमाल हमारे देश के विकास के लिए किया जाता है। जब सरकारी क्षेत्र या ग्रामीण विकास पर धन खर्च किया जाता है, तो मुनाफा कम होता है। लेकिन, एलआईसी इसे देश के विकास को ध्यान में रखकर खर्च करती है। वह ध्यान नए सेटअप में नहीं रहेगी।. यदि वह सारा पैसा अधिक लाभदायक क्षेत्र में चला जाता है, तो हमारे देश के विकास के लिए एक विशाल संसाधन क्षमता समाप्त हो जाएगी। संक्षेप में, एलआईसी के शेयरों की बिक्री और इसका निजीकरण पॉलिसीधारकों, आम जनता और इस देश के हितों के खिलाफ है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि एलआईसी को सरकारी संस्था से अधिक पॉलिसीधारकों की पूर्ण स्वामित्व वाली इकाई माना जाता है। सरकार ने जो 5 करोड़ रुपये का शुरुआती निवेश किया, उसे एलआईसी ने वापस कर दिया था। अतः आज की 38 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति पॉलिसीधारकों की छोटी बचत से आई है. इसलिए, सरकार को पॉलिसीधारकों की जानकारी या अनुमति के बिना कंपनी को बेचने का अधिकार नहीं है।“

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, तेल कंपनियों, हवाई अड्डों और रेलवे के अलावा अब एलआईसी का भी निजीकरण किया जा रहा है। यह पता होना बाकी है कि इसे खरीदने वाले अंबानी, अदानी या कोई और कोई अरबपति हैं?

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