भारतीयों को बहुत कुछ सीखने की जरूरत है

दैनिक समाचार

द्वारा : रईश खान

भारत में अंग्रेजों से आजादी के लिए 1857 में पहली क्रांति हुई थी जबकि अमेरिका में 1957 तक गोरे लोगों के लिए अलग बस होती थी और काले लोगों के लिए अलग बस।

काले लोग गोरे लोगों एक साथ उठ-बैठ नहीं सकते थे जैसे भारत मे दलित और सवर्ण के बीच मे फर्क होता था। अमेरिका के बाजारों में लोहे की जंजीरों में जकड़े, गले में पट्टा पहनकर जानवरों की तरह महज सौ साल पहले बिकने वाले निग्रो (काले लोग) आज व्हाइट हाउस तक पहुंच गये और ओपरा विनफ्रे जैसी तमाम हस्तियां मीडिया में किंग बन गई, हॉलीवुड पर विल स्मिथ जैसे तमाम नीग्रो का कब्जा है।

अमेरिका के 30% जज नीग्रो है, करीब 40% पुलिस और 32% आर्मी नीग्रो है। अमेरिका के 12 स्टेट के गवर्नर नीग्रो हैं। नीग्रो का अपना बैंक है, अपने उधोग हैं इसके बावजूद गोरे और काले के बीच का फर्क नगण्य हो चुका है क्योंकि वहां जब पहल हुई तो जमीनी स्तर पर हुई। शिक्षित गोरे युवाओं ने नीग्रो युवाओं से अपने पूर्वजों की गलती के लिए सामूहिक माफी मांगी और शक्तिशाली भविष्य बनाने के लिए उन्हें साध्य और साधन सौंपे गए। जिस दिशा में ज्यादा सक्षम थे उस दिशा में प्रोत्साहित किया जैसे खेल, आर्मी आदि और जिस दिशा में समानता के मापदंड बैठ सके वहां उन्हें एफिरमेटिव एक्शन से प्रतिनिधित्व प्रदान किया।

आज हर दिशा में नीग्रो आगे हैं, गोरे और काले के स्पष्ट विभेद होने के बाद भी वहां हर चीज की आजादी है। शादी से लेकर खानपान तक की। वहां खाप पंचायतें नहीं है, वहां इज्जत के लिए गोली नहीं मारी जाती, वहां मॉब लिंचीग या इन्टॉलरेंस नहीं है।

भारत मे हर वक्त सभ्यता, सँस्कृति और संस्कारों की दुहाई के नाम पर मां-बाप ही अपनी औलाद का गला घोटने से नहीं हिचकते और फिर उसे शान समझते हैं जबकि पूरा समाज तो मानों घात लगाए बैठे हों। रहा होगा कभी भारत विश्वगुरु मगर सच यह है कि भारत को अब बहुत कुछ सीखने, बदलने और छोड़ने, अपनाने की आवश्यकता है। हर चीज की एक एक्सपायरी डेट फिक्स है बशर्ते उसकी मैन्युफैक्चरिंग नई हो या पुरानी। पुराने विचारों से नई क्रांति कभी भी सम्भव नहीं है।

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